राघोपुर की रणभूमि: क्या तेजस्वी का गढ़ भेद पाएगी BJP? तेज प्रताप की चुनौती

बिहार चुनाव की सबसे हाई-प्रोफाइल सीट राघोपुर: लालू परिवार के गढ़ का इतिहास, जातीय समीकरण और भाई-भाई की टक्कर का राजनीतिक विश्लेषण

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अशोक कुमार
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में कुछ सीटें ऐसी हैं, जिन पर पूरे देश की नज़रें टिकी हुई हैं। इन्हीं में से एक है राघोपुर विधानसभा सीट। यह सीट न सिर्फ़ राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता और महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव का गढ़ है, बल्कि यह लालू प्रसाद यादव के परिवार का राजनीतिक भाग्य भी तय करती है। इस बार, यह लड़ाई सिर्फ़ महागठबंधन बनाम NDA (जिसने भाजपा के उम्मीदवार सतीश कुमार को मैदान में उतारा है) तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पारिवारिक द्वंद्व के कारण भी चर्चा के केंद्र में है, जहाँ तेजस्वी के बड़े भाई तेज प्रताप यादव भी उन्हें खुली चुनौती दे रहे हैं। राघोपुर की रणभूमि इस बार, ज़मीनी राजनीति, जातीय समीकरण और वंशवाद की आंतरिक कलह का एक जटिल मिश्रण पेश कर रही है।

लालू परिवार का गढ़: राघोपुर सीट पर लालू यादव (दो बार), राबड़ी देवी (तीन बार), और तेजस्वी यादव (दो बार) जीत चुके हैं, लेकिन यह उलटफेर भी देख चुकी है।

जातीय समीकरण: यह सीट यादव बहुल (करीब 31%) है, जो लालू परिवार का आधार है, लेकिन राजपूत (19%) और दलित (18%) मतदाता भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

आंतरिक चुनौती: तेज प्रताप यादव की राघोपुर में बढ़ती सक्रियता और खुली बयानबाजी तेजस्वी के लिए वोट काटने और आंतरिक कलह को सार्वजनिक करने का जोखिम पैदा कर रही है।

मुख्य प्रतिद्वंद्वी: भाजपा के सतीश कुमार ने 2010 में राबड़ी देवी को हराकर उलटफेर किया था और इस बार भी वह कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं।

1. राघोपुर का राजनीतिक इतिहास: लालू परिवार का किला

राघोपुर विधानसभा सीट का इतिहास 1995 में उस समय सुर्खियों में आया जब लालू प्रसाद यादव ने सोनपुर सीट छोड़कर यहाँ से चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया। तब से, यह सीट लालू परिवार का पारंपरिक गढ़ बन गई है।

लालू यादव: उन्होंने 1995 और 2000 में इस सीट से जीत दर्ज की।

राबड़ी देवी: लालू यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी पत्नी राबड़ी देवी ने इस सीट से तीन बार जीत हासिल की।

तेजस्वी यादव: उन्होंने 2015 में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत यहीं से की और 2020 में 38,174 वोटों के बड़े अंतर से जीत हासिल कर अपनी पकड़ मज़बूत की।

हालांकि, यह किला अभेद्य नहीं रहा है। 2010 में, जेडीयू (उस समय एनडीए का हिस्सा) के सतीश कुमार ने राबड़ी देवी को हराकर एक बड़ा उलटफेर किया था। यह घटना दर्शाती है कि यहाँ का मतदाता केवल परिवार के नाम पर नहीं, बल्कि ज़मीनी मुद्दों और समीकरणों पर भी प्रतिक्रिया देता है। इस बार सतीश कुमार भाजपा के टिकट पर फिर से मैदान में हैं।

2. राघोपुर का जटिल जातीय समीकरण: गणित जो बदल सकता है परिणाम

राघोपुर वैशाली जिले में स्थित है और इसे यादव बहुल क्षेत्र माना जाता है, जो RJD का मूल वोट बैंक है।

समुदाय       अनुमानित प्रतिशत      राजनीतिक रुझान

यादव             31-32%                   पारंपरिक रूप से लालू परिवार का समर्थक

राजपूत              19%                      NDA (BJP) की ओर झुकाव

दलित (SC)       18%                    विभाजित, लेकिन NDA/लोजपा का प्रभाव

मुस्लिम             3%                       महागठबंधन (RJD) का मज़बूत आधार

अन्य              27-29%                   निर्णायक भूमिका निभाते हैं

तेजस्वी यादव की जीत का मुख्य आधार 31% यादव और 3% मुस्लिम वोट बैंक रहा है। हालाँकि, भाजपा ने फिर से यादव समुदाय से आने वाले सतीश कुमार को मैदान में उतारकर यादव वोटों में सेंधमारी करने की कोशिश की है। 19% राजपूत और 18% दलित वोटों को एकजुट करने में NDA की सफलता निर्णायक साबित हो सकती है। इस बार जन सुराज पार्टी जैसे नए खिलाड़ियों के आने से भी वोटों के विभाजन की संभावना बढ़ गई है, जिससे परिणाम और अनिश्चित हो गया है।

‘महाभारत’ की रणभूमि: तेज प्रताप यादव की चुनौती

इस चुनाव में राघोपुर सीट को सबसे ज़्यादा चर्चा में लाने वाला कारक लालू परिवार की आंतरिक कलह है। तेजस्वी यादव के बड़े भाई तेज प्रताप यादव ने खुले तौर पर उनके ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है।

खुली बयानबाजी: तेज प्रताप यादव ने राघोपुर में हेलीकॉप्टर से प्रचार करते हुए तेजस्वी पर सीधा हमला किया है। उन्होंने इस चुनावी लड़ाई को ‘महाभारत की रणभूमि’ बताया, जहाँ कोई भाई नहीं, सिर्फ़ शत्रु होता है। उन्होंने खुद को ‘कृष्ण’ बताते हुए तेजस्वी को ‘जयचंदों’ (पार्टी के कुछ नेताओं) के प्रभाव में रहने के लिए चेतावनी दी है।

प्रतीकात्मक विरोध: तेज प्रताप ने राघोपुर में ‘तेलपीलावन लाठी’ गाड़कर खुद को ‘असली यादव’ का प्रतिनिधि बताया। इस तरह के सांकेतिक और भावनात्मक प्रचार का यादव वोटों के एक वर्ग पर भावनात्मक असर पड़ सकता है।

वोटों का कटाव: राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तेज प्रताप भले ही सीधे चुनाव न लड़ रहे हों, लेकिन उनकी सक्रियता लालू परिवार के समर्थक वोटों में विभाजन पैदा कर सकती है। यदि वह RJD के 5-10% वोट भी खींचने में सफल होते हैं, तो यह सीधे तौर पर तेजस्वी यादव के जीत के अंतर को कम कर सकता है और भाजपा उम्मीदवार सतीश कुमार को फ़ायदा पहुँचा सकता है।

तेजस्वी के लिए 3 प्रमुख चुनौतियाँ

मुख्यमंत्री पद के दावेदार होने के बावजूद, तेजस्वी यादव के लिए यह चुनाव आसान नहीं है:

बढ़ी हुई अपेक्षाएं और ट्रैक रिकॉर्ड: मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होने के कारण, राघोपुर की जनता की अपेक्षाएँ बढ़ गई हैं। स्थानीय लोग अब केवल नाम पर नहीं, बल्कि विकास कार्यों और बाढ़ (Flood) की समस्या के स्थायी समाधान पर सवाल उठा रहे हैं। बाढ़ और कटाव यहाँ का सबसे बड़ा स्थायी मुद्दा है।

सतीश कुमार की निरंतरता: भाजपा ने सतीश कुमार को लगातार तीसरी बार मैदान में उतारा है। 2010 का उलटफेर करने के कारण वह एक मज़बूत दावेदार हैं, जो जानते हैं कि लालू परिवार को उनके ही गढ़ में कैसे घेरा जाए।

भाई की चुनौती और नकारात्मकता: तेज प्रताप का नकारात्मक प्रचार न केवल यादव वोटों को बाँट रहा है, बल्कि यह लालू परिवार की एकजुटता पर भी सवाल खड़े कर रहा है, जिसका राजनीतिक लाभ NDA उठाना चाहेगी।

राघोपुर सीट का परिणाम बिहार के राजनीतिक भविष्य के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होगा। तेजस्वी यादव की जीत न केवल उनके मुख्यमंत्री बनने के सपने को मज़बूती देगी, बल्कि यह RJD के लिए एक मानसिक बढ़त भी स्थापित करेगी। वहीं, यदि यहाँ कोई उलटफेर होता है, तो यह तेजस्वी के नेतृत्व पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा देगा और NDA के लिए एक ऐतिहासिक विजय साबित होगी।

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