अमेरिका में ‘हिंदूज़ फ़ॉर ह्यूमन राइट्स’ के बैनर तले भारत-विरोधी पत्रकारिता का मंच

इस्लामिस्ट विचारधारा से जुड़े ज़ोहरान ममदानी समर्थक और जॉर्ज सोरोस की फंडिंग से सक्रिय कार्यकर्ता सुनीता विष्णवनाथ का संगठन ‘हिंदूज़ फ़ॉर ह्यूमन राइट्स’ अमेरिका में आयोजित कर रहा है एक ऐसा कार्यक्रम, जिसमें भारत और प्रधानमंत्री मोदी विरोधी पत्रकार एकजुट हुए।

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 4 नवंबर:अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया के पेलो ऑल्टो में 19 अक्टूबर 2025 को ‘हिंदूज़ फ़ॉर ह्यूमन राइट्स’ (HfHR) नामक संस्था द्वारा “Journalism in Today’s India: A Conversation with Veteran Journalists” शीर्षक से एक कार्यक्रम आयोजित किया गया।

कार्यक्रम में भारत के सात पत्रकार, आनंद वर्धन सिंह, प्रो. अभय दुबे, आशुतोष, डॉ. राकेश पाठक, शीतल पी. सिंह, राजकेश्वर सिंह और ज्ञानेश तिवारी ने हिस्सा लिया।

कार्यक्रम का विषय “पत्रकारिता की स्वतंत्रता और राजनीतिक दबावों” पर केंद्रित बताया गया, पर सोशल मीडिया पर कई लोगों ने इसकी टाइमिंग और फंडिंग पर सवाल उठाए हैं, ख़ासकर तब जब इनमें से कुछ पत्रकार हाल के महीनों में लगातार अमेरिका में सक्रिय दिखाई दे रहे हैं।

सुनीता विष्णवनाथ और विवादित नेटवर्क:

इस आयोजन के पीछे रहीं सुनीता विष्णवनाथ—जो लंबे समय से अमेरिकी धरती पर भारत और उसकी नीतियों की आलोचना करने वाले मंचों से जुड़ी रही हैं।

उन्होंने 2019 में ‘Hindus for Human Rights’ की सह-स्थापना की थी, जो Indian American Muslim Council (IAMC) और Organization for Minorities of India (OFMI) जैसे संगठनों से जुड़ा माना जाता है।

इन संगठनों पर पहले भी भारत-विरोधी अभियानों को बढ़ावा देने के आरोप लगते रहे हैं। IAMC के कई सदस्य Islamic Circle of North America (ICNA) जैसे समूहों से जुड़े बताए जाते हैं, जिनके पाकिस्तान की जमात-ए-इस्लामी से रिश्ते रहे हैं।

राजनीतिक प्रभाव और छवि निर्माण:

सुनीता विष्णवनाथ का नाम उस समय भी सुर्खियों में आया था जब उन्होंने 2023 में राहुल गांधी के अमेरिकी कार्यक्रम में सहयोग किया था।

वे न्यूयॉर्क सिटी के विधायक ज़ोहरान ममदानी की समर्थक भी हैं,वही ममदानी जो राम मंदिर निर्माण को “फासीवादी प्रतीक” कह चुके हैं और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को “वॉर क्रिमिनल” बताने वाले बयानों के लिए चर्चित रहे हैं।

इन पृष्ठभूमियों को देखते हुए यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या “पत्रकारिता की स्वतंत्रता” पर होने वाला यह संवाद वस्तुतः एक राजनीतिक नैरेटिव निर्माण का प्रयास तो नहीं है?

भारत की छवि पर असर:

भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्रों में से एक है, जहाँ मीडिया की विविधता और स्वतंत्रता असंदिग्ध है।

ऐसे में जब विदेशी धरती पर कुछ समूह बार-बार “भारत में अभिव्यक्ति की आज़ादी ख़तरे में” जैसे बयान देते हैं, तो यह देश की छवि पर प्रतिकूल असर डालता है।

कई विश्लेषक मानते हैं कि इस तरह के कार्यक्रम भारत की आंतरिक राजनीति से अधिक बाहरी वित्तपोषण और एजेंडा से प्रेरित लगते हैं।

फिर भी, भारत सरकार ने हमेशा आलोचना को लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा माना है, यह बात भारत की लोकतांत्रिक परिपक्वता को भी दर्शाती है।

निष्कर्ष:

अमेरिकी धरती पर आयोजित यह कार्यक्रम और इसके पीछे सक्रिय नेटवर्क इस बात की याद दिलाते हैं कि भारत के लोकतंत्र पर सवाल उठाना अब एक अंतरराष्ट्रीय रणनीति बन चुकी है।

परंतु यह भी उतना ही सच है कि भारत की लोकतांत्रिक संस्थाएँ और उसकी जनता इतनी मज़बूत हैं कि किसी बाहरी एजेंडे से देश की दिशा प्रभावित नहीं हो सकती।

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