भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की उम्मीद से झींगा निर्यातक कंपनियों के शेयरों में उछाल
भारत की झींगा (श्रिम्प) फीड और समुद्री उत्पाद निर्यातक कंपनियों के शेयरों में गुरुवार को जोरदार तेजी देखी गई। अवंती फीड्स, एपेक्स फ्रोजन फूड्स और वॉटरबेस लिमिटेड के शेयरों में 12% तक की बढ़त दर्ज हुई। यह उछाल भारत और अमेरिका के बीच संभावित व्यापार समझौते की खबरों के चलते आया है।
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अवंती फीड्स के शेयर 6% बढ़े, एपेक्स फ्रोजन फूड्स में 9% की तेजी।
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कोस्टल कॉर्पोरेशन के शेयर 20% अपर सर्किट में पहुंचे।
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भारत-अमेरिका व्यापार समझौता जल्द हो सकता है, जिससे आयात शुल्क घट सकता है।
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अमेरिका भारत के झींगा निर्यात का सबसे बड़ा बाजार है।
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 23 अक्टूबर:
संभावित व्यापार समझौता:
रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत और अमेरिका एक नए व्यापार समझौते के करीब हैं। इसके तहत अमेरिका भारत से होने वाले कुछ आयातों पर शुल्क 50% से घटाकर 15–16% कर सकता है।
यह समझौता ऊर्जा और कृषि क्षेत्रों पर केंद्रित रहेगा। इसमें भारत द्वारा रूस से तेल की खरीद घटाने की भी बात शामिल है।
मोदी-ट्रंप के बीच बातचीत:
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मंगलवार को बातचीत की, जिसमें मुख्य रूप से व्यापार और ऊर्जा पर चर्चा हुई।
मोदी ने भी इस बातचीत की पुष्टि की, लेकिन विस्तार से जानकारी नहीं दी।
संभावना है कि इस समझौते की घोषणा आसियान शिखर सम्मेलन में की जा सकती है।
निर्यात पर असर:
अमेरिका भारत के लिए सबसे बड़ा समुद्री खाद्य बाजार है।
अवंती फीड्स की 77% आमदनी
एपेक्स फ्रोजन फूड्स की 53% आमदनी
अमेरिकी बाजार से आती है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2024-25 में भारत ने 16.98 लाख टन समुद्री उत्पादों का निर्यात किया, जिसकी कीमत 62,408 करोड़ रुपये ($7.45 बिलियन) रही।
इनमें से अमेरिका को निर्यात $2.71 बिलियन का हुआ, जो पिछले साल से ज्यादा है।
वर्तमान चुनौती:
अमेरिका ने हाल ही में भारतीय समुद्री उत्पादों पर कुल 59.71% तक शुल्क लगा दिया है। इसमें 5.76% प्रतिपूरक शुल्क और 3.96% एंटी-डंपिंग शुल्क शामिल हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह भारी शुल्क भारत के झींगा निर्यात को नुकसान पहुंचा रहा है, और यही कारण है कि नए व्यापार समझौते से निवेशकों में उम्मीद जगी है।
निष्कर्ष:
अगर भारत-अमेरिका के बीच यह समझौता तय होता है, तो झींगा निर्यातक कंपनियों के लिए बड़ा राहत भरा कदम साबित हो सकता है। इससे भारतीय समुद्री उत्पादों की अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और निर्यात को नई रफ्तार मिल सकती है।