अपने गृह राज्य बिहार के विकास को लेकर दुगुनी ऊर्जा के साथ जुटे सैयद शाहनवाज़ हुसैन

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सुनील अग्रवाल।
बिहार विधानसभा चुनाव के बाद छोटे भाई से बड़े भाई की भूमिका में पहुंच चुकी भाजपा पुराने व दिग्गज नेताओं को हासिए पर रख नये तेवर के साथ आगे बढ़ने को व्याकुल दिखती है। पार्टी में नये सिरे से किये जा रहे बदलाव से भाजपा आखिर बिहार की जनता को क्या संदेश देना चाहती है। इसके पीछे कोई न कोई गहरा राज छिपा हुआ है। तभी तो पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी सरीखे दिग्गज नेता को बिहार की राजनीति से दूर कर राज्य सभा के रास्ते दिल्ली शिफ्ट कर दिया गया और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके बिहार के इकलौते अल्पसंख्यक नेता शहनवाज हुसैन को दिल्ली की विरासत से दूर कर बिहार सरकार में सत्ता के करीब पहुंचा दिया।

मजे की बात तो यह है कि यह बात किसी से छिपी नहीं है कि जहां सुशील मोदी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सबसे प्रिय और करीबियों में से एक रहे हैं और वो हमेशा नीतीश कुमार के साथ कांधे से कांधा मिलाकर चलते रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर शहनवाज हुसैन को नीतीश कुमार के विरोधी के रूप में देखा जाता रहा है। चर्चा तो यह भी है कि बीते लोकसभा चुनाव में भागलपुर सीट से उन्हें टिकट नीतीश के अड़ियल रवैए के कारण हीं नहीं मिल पाया और काफी हल्के में भागलपुर लोकसभा की सीट जदयू के खाते में चली गई। जिसका मलाल शहनवाज को हमेशा सताता रहा है।
वहीं भाजपा ने नंदकिशोर यादव, प्रेम कुमार, बिनोद नारायण झा,राम नारायण मंडल जैसे दिग्गजों को दरकिनार कर नये चेहरे को कैबिनेट में जगह देकर यह साबित करने का प्रयास किया है कि आने वाले दिनों में भाजपा बिहार में सिमटकर रहने वाली नहीं है बल्कि विस्तारवादी नीतियों पर काम करते हुए इससे भी बेहतर प्रदर्शन करने वाली है। कुछ इन्हीं कारणों से पार्टी ने अल्पसंख्यक नेता शहनवाज हुसैन पर दांव खेला है। ताकि सीमांचल के साथ-साथ सम्पूर्ण बिहार में पार्टी के मुस्लिम विरोधी छवि पर ब्रेक लगाया जा सके।

जानकारों की मानें तो भाजपा की मंशा शहनवाज को गृह मंत्रालय दिलाने की रही है, मगर सूबे के सूबेदार इसके लिए कतई तैयार नहीं। कारण नीतीश कुमार जब से बिहार की कमान संभालें हैं, तभी से गृह मंत्रालय अपने पास रखते आए हैं और इस मंत्रालय पर कोई और काबिज हो, यह उन्हें बर्दास्त नहीं। ऐसे में शहनवाज को उधोग मंत्रालय से हीं संतोष करना पड़ा है। संभव है कि आने वाले दिनों में भाजपा शहनवाज हुसैन को बतौर मुख्यमंत्री प्रपोज करे तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए, कारण यूं भी पार्टी को इस पद के काबिल चेहरे की कमी खलती रही है।

यह ओर बात है कि शहनवाज को बिहार की राजनीति में इंट्री देकर भाजपा ने नीतीश कुमार को तनाव में भले हीं ला दिया हो, मगर इतना तय है कि यह सब भाजपा की सोची समझी रणनीति का हीं हिस्सा है। इसी हिस्से के मातहत पार्टी बड़े व कद्दावर नेता कहे जाने वालों को हासिए पर लाकर नई नवेली दुल्हन की तरह पार्टी को नया आकार देने में लगी है। तभी तो नये एवं युवा चेहरे को पार्टी व मंत्रिमंडल में जगह दी जा रही है। पार्टी सब कुछ सिलसिलेवार तरीके से करना चाहिए है, ताकि किसी के मान सम्मान को ठेस ना पहुंचे। पार्टी जहां पहले चरण में एक के बजाय दो नये चेहरे को उपमुख्यमंत्री के तौर पर पेश किया वहीं कैबिनेट विस्तार में नये व युवा चेहरे को तब्बजो देने का फैसला किया।

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