नीतीश का यू-टर्न: मोदी की तारीफ पर निकाले सबीर अली को JDU ने दिया टिकट

बिहार चुनाव में बड़ा राजनीतिक दांव, अमौर सीट से सबा जफर की जगह पूर्व सांसद को मौका

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  • निष्कासन का कारण: सबीर अली को 2014 में तब JDU से निकाल दिया गया था, जब उन्होंने पार्टी लाइन से हटकर तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों की सार्वजनिक रूप से प्रशंसा की थी।
  • टिकट वापसी: 11 साल बाद, JDU ने अमौर सीट पर पहले घोषित सबा जफर का टिकट काटकर साबिर अली को दिया, जिन्होंने शनिवार (18 अक्टूबर) को ही पार्टी की सदस्यता ली थी।
  • AIMIM को चुनौती: सबीर अली का मुख्य लक्ष्य अमौर सीट पर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के विधायक अख्तरुल ईमान को चुनौती देना है, जिनके पास 2020 के चुनाव में 50% से अधिक वोट थे।

समग्र समाचार सेवा
पटना, 20 अक्टूबर: बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections 2025) के पहले चरण के मतदान की उल्टी गिनती के बीच, जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने एक अप्रत्याशित राजनीतिक दांव चलकर सबको चौंका दिया है। पार्टी ने 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खुलेआम तारीफ करने के कारण निष्कासित किए गए पूर्व राज्यसभा सांसद सबीर अली को 11 साल बाद न केवल पार्टी में वापस लिया, बल्कि उन्हें पूर्णिया जिले की अमौर विधानसभा सीट से अपना प्रत्याशी भी बना दिया है।

यह फैसला इसलिए भी सनसनीखेज है क्योंकि JDU ने इस सीट से एक दिन पहले ही घोषित उम्मीदवार सबा जफर का टिकट ऐन मौके पर काट दिया है। यह घटनाक्रम बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार के एक बड़े और रणनीतिक बदलाव का संकेत दे रहा है।

क्यों लिया गया यह अप्रत्याशित फैसला?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि JDU का यह यू-टर्न अमौर सीट की जटिल राजनीतिक गणित और सीमांचल क्षेत्र के मुस्लिम वोट बैंक को साधने की एक सोची-समझी रणनीति है। अमौर विधानसभा सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अधिक है, और 2020 के पिछले चुनाव में AIMIM के अख्तरुल ईमान ने इस सीट पर 52.58% वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी, जबकि JDU के सबा जफर दूसरे स्थान पर रहे थे।

AIMIM की घेराबंदी: सबीर अली को टिकट देकर JDU ने AIMIM के बढ़ते प्रभाव को रोकने का प्रयास किया है। अली की मुस्लिम समुदाय में गहरी पकड़ मानी जाती है, और पार्टी को उम्मीद है कि वह AIMIM के वोटों में सेंध लगा सकते हैं।

नीतीश पर भरोसा: सबीर अली ने JDU में वापसी के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपना अभिभावक बताया और कहा कि वह उनकी सोच और विकास की नीतियों के कारण वापस आए हैं। यह कदम एक स्पष्ट संदेश देता है कि JDU पसमांदा मुस्लिम समुदाय के बीच अपनी खोई हुई पैठ मजबूत करना चाहती है।

सबीर अली का उतार-चढ़ाव भरा राजनीतिक सफर

सबीर अली का राजनीतिक करियर उतार-चढ़ाव से भरा रहा है।

उन्होंने अपने करियर की शुरुआत लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) से की और उसी के टिकट पर राज्यसभा सांसद बने थे।

इसके बाद, वह JDU में शामिल हुए और 2008 से 2014 तक नीतीश कुमार के सहयोग से दूसरा राज्यसभा कार्यकाल पूरा किया।

2014 में मोदी की तारीफ पर JDU से निष्कासित होने के बाद, वह भाजपा में शामिल हुए, लेकिन आतंकवादियों से संबंध रखने के आरोपों के चलते उन्हें तुरंत हटा दिया गया था।

हालांकि, 2015 में उनकी भाजपा में पुनः वापसी हुई और 2021 में उन्हें भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा का राष्ट्रीय महामंत्री बनाया गया।

अब, 11 साल के ‘वनवास’ के बाद, वह फिर से JDU में लौट आए हैं और उन्हें तुरंत टिकट भी दे दिया गया है, जिसने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है।

यह राजनीतिक घटनाक्रम दर्शाता है कि चुनावी समर में जीत सुनिश्चित करने के लिए पार्टियां अपने कड़े सिद्धांतों से भी समझौता करने को तैयार रहती हैं, और सबीर अली की यह वापसी बिहार की राजनीति में नए समीकरण का संकेत देती है।

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