भारतीय रेलवे के लिए गुटखे के दाग बनी आफत: सालाना ₹1200 करोड़ से अधिक खर्च

स्वच्छ भारत अभियान को झटका: दाग हटाने की लागत में बन सकती हैं कई 'वंदे भारत' ट्रेनें; रेलवे की नई 'पीकदान पाउच' योजना

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  • भारी वित्तीय बोझ: एक रिपोर्ट के अनुसार, गुटखा और पान मसाला के दागों को साफ करने में रेलवे सालाना ₹1200 करोड़ या उससे अधिक खर्च करता है, जो कई महत्वपूर्ण विकास परियोजनाओं के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • पानी की बर्बादी: इन दागों को हटाने की प्रक्रिया में भारी मात्रा में पानी भी खर्च होता है, जो जल संरक्षण के प्रयासों के विपरीत है।
  • स्वास्थ्य और स्वच्छता: गंदगी के कारण रेलवे परिसर में अस्वच्छता फैलती है, जिससे कर्मचारियों और यात्रियों के स्वास्थ्य जोखिम बढ़ जाते हैं।

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 18 अक्टूबर: भारतीय रेलवे, जो देश की जीवन रेखा मानी जाती है, यात्रियों द्वारा पान, पान मसाला और गुटखा खाकर थूकने की आदत के कारण हर साल ₹1200 करोड़ से अधिक की भारी-भरकम राशि केवल दागों की सफाई पर खर्च करने को मजबूर है। यह चौंकाने वाला आंकड़ा रेलवे के लिए एक गंभीर चुनौती बन चुका है, जो न केवल वित्तीय संसाधनों को बर्बाद करता है, बल्कि स्वच्छ भारत अभियान की भावना को भी ठेस पहुंचाता है।

रेलवे स्टेशनों, प्लेटफॉर्मों और ट्रेन के डिब्बों की दीवारों पर लाल रंग के धब्बे इतने गहरे होते हैं कि उन्हें हटाने के लिए विशेष केमिकल और श्रम की आवश्यकता होती है, जिससे सफाई का खर्च कई गुना बढ़ जाता है।

₹1200 करोड़ में क्या-क्या संभव था?

रेलवे अधिकारियों और विशेषज्ञों का कहना है कि यह ₹1200 करोड़ का खर्च केवल सफाई के केमिकल्स, पानी और अतिरिक्त श्रम पर आता है। इस विशाल राशि से कई महत्वपूर्ण कार्य किए जा सकते थे:

वंदे भारत ट्रेनें: अनुमानित तौर पर, इस खर्च से कई ‘वंदे भारत’ जैसी आधुनिक और लग्जरी ट्रेनें बनाई जा सकती थीं, जिससे यात्री सुविधाओं में बड़ा सुधार होता।

बुनियादी ढांचे का उन्नयन: इस धन का उपयोग रेलवे के बुनियादी ढांचे के उन्नयन, सुरक्षा प्रणालियों को मजबूत करने या यात्री सुविधाओं में सुधार के लिए किया जा सकता था।

स्वास्थ्य खर्च: कुछ आकलन यह भी बताते हैं कि गुटखा-पान मसाले से सरकार को जितनी आमदनी होती है, उसका एक बड़ा हिस्सा इन दागों को साफ करने में ही खर्च हो जाता है।

समस्या से निपटने के लिए रेलवे की पहल

रेलवे इस समस्या से निपटने और लोगों के व्यवहार में बदलाव लाने के लिए कई उपाय कर रहा है, जिनमें जुर्माना लगाना और जागरूकता अभियान चलाना शामिल है। इसी क्रम में, एक नया और अभिनव समाधान पेश किया गया है:

स्पिटर कियोस्क और पाउच: रेलवे ने देश के चुनिंदा 42 स्टेशनों पर बायोडिग्रेडेबल स्पिटून (पीकदान) पाउच की वेंडिंग मशीन या कियोस्क लगाने की योजना बनाई है।

इस्तेमाल का तरीका: ये पाउच, जिनकी कीमत ₹5 से ₹10 तक है, यात्रियों को दिए जाते हैं। पाउच की खासियत यह है कि थूकते ही उसमें मौजूद तरल पदार्थ ठोस में बदल जाता है, जिससे गंदगी फैलने का खतरा नहीं होता। इन पाउचों को बाद में कचरा पेटी में फेंका जा सकता है।

स्टार्टअप सहयोग: पश्चिमी, उत्तरी और मध्य रेलवे जोन ने इस पहल के लिए EzySpit नामक एक स्टार्टअप के साथ अनुबंध किया है।

रेलवे परिसर में गंदगी फैलाने पर ₹500 तक का जुर्माना लगाया जाता है, लेकिन यात्रियों की आदत में सुधार न होने के कारण जुर्माने का प्रावधान भी पूरी तरह से प्रभावी नहीं हो सका है। रेलवे अब इस ‘पॉकेट पीकदान’ योजना की सफलता पर निगाहें जमाए हुए है ताकि इस भारी-भरकम अनावश्यक खर्च को कम किया जा सके।

रेलवे प्रशासन ने यात्रियों से बार-बार अपील की है कि वे सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान न पहुंचाएं और देश के इस सबसे बड़े परिवहन माध्यम को साफ रखने में सहयोग करें।

 

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