पूनम शर्मा
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर खींचतान चरम पर पहुँच चुकी है। खासतौर पर कांग्रेस पार्टी में अंदरूनी आक्रोश इस कदर बढ़ गया है कि कार्यकर्ता खुलकर अपने ही प्रदेश नेतृत्व के खिलाफ़ लामबंद हो गए हैं। महागठबंधन के घटक दलों—राजद, कांग्रेस, वीआईपी और वामदलों—के बीच अब तक कोई ठोस सीट शेयरिंग फार्मूला तय नहीं हो पाया है। ऐसे में कार्यकर्ताओं में असमंजस और असंतोष बढ़ता जा रहा है।
सीट शेयरिंग पर सहमति नहीं, कार्यकर्ता में नाराज़गी
कांग्रेस ने अब तक कई महत्वपूर्ण विधानसभा सीटों को लेकर कोई स्पष्ट फैसला नहीं लिया है। इसी देरी के कारण कार्यकर्ताओं में भारी असंतोष देखा जा रहा है। एस.बी.आई. यादव जैसे वरिष्ठ नेताओं ने पहले ही नामांकन दाखिल कर दिया है, लेकिन पार्टी संगठन का बाकी ढांचा अब तक ठोस रणनीति नहीं बना पाया। इससे कार्यकर्ताओं में गुस्सा है कि आख़िर नेतृत्व क्या करना चाहता है और अंतिम रणनीति क्या होगी।
राजद और कांग्रेस के बीच तनातनी
महागठबंधन में सबसे बड़ी तनातनी राजद और कांग्रेस के बीच देखी जा रही है। लालू यादव की पार्टी ने कई सीटों पर अपना दावा ठोक दिया है, वहीं कांग्रेस भी अपने पुराने जनाधार वाली सीटों को छोड़ना नहीं चाहती। राहुल गांधी और लालू यादव के बीच दिल्ली में हुई बैठकों के बावजूद सहमति नहीं बन सकी। पटना में भी दोनों दलों की बैठकों में कोई ठोस फार्मूला सामने नहीं आया। इससे स्थिति और उलझती जा रही है।
वीआईपी और लेफ्ट दलों का दबाव
राजद-कांग्रेस के बीच चली खींचतान में वीआईपी (मुखेश सहनी) और वामदलों की भूमिका भी उलझन बढ़ा रही है। सहनी खुलकर 30 सीटों और डिप्टी सीएम पद की मांग कर रहे हैं। कांग्रेस और राजद दोनों ही इस मांग से नाखुश हैं। वामपंथी दल भी अपनी सीटों को लेकर पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। इस बीच खबरें यह भी आ रही हैं कि वीआईपी भाजपा के संपर्क में भी है, जिससे महागठबंधन में बेचैनी और बढ़ गई है।
एक ही सीट पर दो उम्मीदवार — हास्यास्पद स्थिति
सबसे गंभीर स्थिति पछवाड़ा सीट पर देखने को मिली, जहां महागठबंधन से दो-दो उम्मीदवारों ने नामांकन कर दिया। यह घटना कार्यकर्ताओं में गुस्से की वजह बनी। कार्यकर्ताओं का कहना है कि जब एक ही सीट पर दो लोग लड़ेंगे तो एनडीए को ही फायदा मिलेगा। यह स्थिति बताती है कि महागठबंधन में न तो अनुशासन बचा है और न ही कोई स्पष्ट रणनीति।
कांग्रेस नेतृत्व पर उठ रहे सवाल
कांग्रेस कार्यकर्ता खुले तौर पर अपने प्रदेश अध्यक्ष और प्रभारी के खिलाफ बोल रहे हैं। आरोप है कि टिकट वितरण में पारदर्शिता नहीं है और निर्णय केवल “ऊपर के स्तर” पर हो रहे हैं। कई जगहों पर टिकट को लेकर स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं में हाथापाई और विवाद की नौबत आ चुकी है।
एनडीए को हो सकता है बड़ा फायदा
जहाँ महागठबंधन सीट शेयरिंग को लेकर अब तक सहमति नहीं बना पाया है, वहीं एनडीए लगातार अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर रहा है। भाजपा और जदयू ने कई सीटों पर पहले ही प्रत्याशी तय कर दिए हैं और ग्राउंड लेवल पर प्रचार भी शुरू कर दिया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि महागठबंधन में चल रहा यह घमासान एनडीए के लिए बड़ा राजनीतिक लाभ बन सकता है।
‘परिवारवाद बनाम विकास’ का नैरेटिव
एनडीए महागठबंधन में मची अव्यवस्था को ‘परिवारवादी राजनीति’ बनाम ‘विकास की राजनीति’ के नैरेटिव में पेश कर रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार विकास योजनाओं को सामने रखकर जनता को साधने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि महागठबंधन के नेताओं का आपसी झगड़ा जनता के बीच गलत संदेश दे रहा है।
कांग्रेस के लिए दोहरी चुनौती
कांग्रेस के सामने दोहरी चुनौती है—एक ओर अपने कार्यकर्ताओं का बढ़ता आक्रोश शांत कराना, और दूसरी ओर सीट शेयरिंग में सम्मानजनक हिस्सेदारी सुनिश्चित करना। यदि पार्टी ने जल्द कोई ठोस निर्णय नहीं लिया तो न केवल कार्यकर्ताओं में बगावत हो सकती है, बल्कि चुनावी मैदान में उसे भारी नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।
नतीजा — एकजुटता पर सवाल
कुल मिलाकर, बिहार महागठबंधन में दरार अब खुलकर सामने आ चुकी है। सीट बंटवारे पर सहमति न बनना, कार्यकर्ताओं का नेतृत्व से नाराज़ होना, घटक दलों की आपसी खींचतान और अनुशासनहीनता—ये सभी कारक मिलकर चुनावी संभावनाओं को कमजोर कर रहे हैं। ऐसे में एनडीए को खुला मैदान मिलना तय माना जा रहा है। अगर महागठबंधन ने अगले कुछ दिनों में स्थिति नहीं संभाली, तो यह लड़ाई चुनावी हार में बदल सकती है।