हॉट सीट राघोपुर: तेजस्वी की राह आसान नहीं
यादव बहुल राघोपुर में तेजस्वी के सामने बीजेपी के सतीश कुमार और प्रशांत किशोर की चुनौती
- राघोपुर विधानसभा लालू परिवार के लिए एक पारंपरिक यादव बहुल हॉट सीट रही है, जहां से लालू और राबड़ी देवी चुनाव लड़ चुके हैं और वर्तमान में तेजस्वी यादव विधायक हैं।
- तेजस्वी यादव का पलड़ा भारी होने के बावजूद, बीजेपी के संभावित उम्मीदवार सतीश कुमार यादव (जिन्हें तेजस्वी ने 2015 और 2020 में हराया) और राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर (जिनका चुनावी अभियान यहीं से शुरू हुआ) चुनौती पेश कर रहे हैं।
- स्थानीय जनता तेजस्वी को भले ही भावी मुख्यमंत्री के रूप में देखती है, लेकिन सोशल मीडिया की सीमित पहुंच और जमीनी स्तर पर प्रचार की कमी प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज’ क्रांति को राघोपुर में बेअसर बना रही है।
समग्र समाचार सेवा
पटना, 13 अक्टूबर: बिहार की राजनीति में राघोपुर विधानसभा क्षेत्र हमेशा से एक हाई-प्रोफाइल और हॉट सीट रही है। यह सीट दशकों से लालू प्रसाद यादव के परिवार का गढ़ मानी जाती है। खुद लालू यादव (1995, 2000 में विजेता) और उनकी पत्नी राबड़ी देवी (2010 में पराजित) यहां से चुनाव लड़ चुके हैं। वर्तमान में, तेजस्वी यादव, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के प्रमुख और महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के दावेदार, इस सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं।
हालांकि, तेजस्वी की यह राह उतनी आसान नहीं दिख रही है, जितनी पहली नजर में लगती है। भले ही यह यादव बहुल इलाका है, जहां किसी दूसरी जाति के उम्मीदवार के लिए जीतना मुश्किल माना जाता है, फिर भी यहां मुकाबला त्रिकोणीय होने के संकेत मिल रहे हैं।
तेजस्वी के सामने दो प्रमुख प्रतिद्वंद्वी
राघोपुर में असली और सीधा मुकाबला RJD और BJP के बीच माना जा रहा है। बीजेपी की तरफ से संभावित उम्मीदवार सतीश कुमार यादव हैं, जिन्होंने अतीत में लालू परिवार के खिलाफ कड़ा संघर्ष किया है।
पिछले चुनाव परिणाम (तेजस्वी बनाम सतीश कुमार):
चुनाव वर्ष तेजस्वी यादव (वोट / %) सतीश कुमार यादव (वोट / %)
2015 91,236 (49.15%) 68,503 (36.9%)
2020 97,404 (48.74%) 59,230 (29.64%)
2020 के चुनाव में, लोजपा के राकेश रोशन ने भी 24,947 वोट पाकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि भले ही जीत तेजस्वी की हुई, लेकिन उन्हें अपने प्रतिद्वंद्वी से एक कड़ी टक्कर मिलती रही है।
प्रशांत किशोर का चुनावी अभियान और जमीनी हकीकत
राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) ने अपना चुनावी अभियान राघोपुर से शुरू किया है, जिससे यह संकेत मिल रहा है कि वह यहीं से उम्मीदवार हो सकते हैं। हालांकि, उन्होंने अभी तक इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की है।
प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज’ पार्टी सोशल मीडिया और शहरी क्षेत्रों में भले ही चर्चा का विषय हो, लेकिन राघोपुर की जमीनी हकीकत कुछ और ही है।
पहचान का संकट: राघोपुर में अधिकतर लोग प्रशांत किशोर को पहचानते तक नहीं हैं। ग्रामीण इलाकों में, जहां मोबाइल या सोशल मीडिया की पहुंच सीमित है, यूट्यूबर और इन्फ्लुएंसर के सारे प्रयास बेअसर साबित हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर चल रही उनकी “क्रांति” राघोपुर तक नहीं पहुंच पाई है।
प्रशांत किशोर की दुविधा: पीके जानते हैं कि यादव बहुल इस गढ़ में चुनाव लड़ना हार का खतरा बड़ा सकता है, इसीलिए वे सीधे जवाब देने से बच रहे हैं। उनका कहना है कि उनकी मौजूदगी से क्षेत्र के लोगों की पूछ बढ़ जाएगी।
राघोपुर की जनता का ‘भावी मुख्यमंत्री’ वाला भाव
तेजस्वी यादव का पलड़ा इस सीट पर मुख्य रूप से इसलिए भारी है, क्योंकि राघोपुर की जनता उन्हें केवल एक विधायक के रूप में नहीं, बल्कि बिहार के भावी मुख्यमंत्री के रूप में देख रही है।
2015 में तेजस्वी की एंट्री के समय लालू यादव ने जनता से उनका परिचय कराते हुए कहा था — “हमर छोटका बेटा हई, आशीर्वाद दीजिए।” जनता ने उन्हें न केवल आशीर्वाद दिया, बल्कि एक युवा और लोकप्रिय चेहरा होने के नाते वह अपने प्रतिद्वंद्वियों से काफी आगे माने जा रहे हैं। स्थानीय वोटर किसी प्रतिनिधि को नहीं, बल्कि बिहार के अगले सीएम को वोट देना चाहती है, और यह भावना तेजस्वी के पक्ष में एक बड़ा फैक्टर है।
चुनाव के नज़दीक आने पर, यह हॉट सीट बिहार की राजनीतिक दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, जहां लालू परिवार की विरासत, बीजेपी की संगठनात्मक शक्ति और प्रशांत किशोर की नई राजनीतिक पहल आमने-सामने होंगी।