सीट बंटवारे पर अड़े चिराग-मांझी, BJP पर बढ़ा दबाव
बिहार NDA में सीटों को लेकर मचा घमासान; छोटे घटक दल नहीं छोड़ रहे 'अड़ियल रुख'
- बिहार विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए गठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर भाजपा पर भारी दबाव बना हुआ है।
- गठबंधन के दो प्रमुख सहयोगी दल, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के चिराग पासवान और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के जीतन राम मांझी, अपनी मांगों पर अड़ियल बने हुए हैं।
- चिराग पासवान 35 सीटें और जीतन राम मांझी 15 सीटों से कम पर चुनाव लड़ने को तैयार नहीं हैं, जिससे बीजेपी-जदयू का गणित बिगड़ रहा है।
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली/पटना, 11 अक्टूबर: बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा होते ही, राजनीतिक सरगर्मियां चरम पर हैं, लेकिन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के भीतर सब कुछ ठीक नहीं दिख रहा है। गठबंधन के दो छोटे घटक दल—लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम)—सीट बंटवारे को लेकर अड़ियल रुख अपनाए हुए हैं, जिससे भाजपा और जनता दल यूनाइटेड (JDU) के शीर्ष नेतृत्व पर दबाव लगातार बढ़ रहा है।
गठबंधन में सीटों का बंटवारा फिलहाल 95 प्रतिशत तक पूरा होने का दावा किया जा रहा है, लेकिन अंतिम घोषणा में देरी का मुख्य कारण इन्हीं दोनों पार्टियों की बढ़ी हुई मांगें हैं। भाजपा के शीर्ष नेता, जिनमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा शामिल हैं, दिल्ली में लगातार बिहार कोर कमेटी के साथ इस मुश्किल को सुलझाने के लिए मंथन कर रहे हैं।
चिराग पासवान की 35 सीटों की मांग, गठबंधन की मजबूरी
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान ने स्पष्ट कर दिया है कि वह 35 सीटों से कम पर चुनाव नहीं लड़ेंगे। सूत्रों के अनुसार, भाजपा और जदयू उन्हें 28 सीटें देने पर सहमत थे, लेकिन चिराग अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं और युवा नेतृत्व की छवि को भुनाने के लिए अधिक सीटों पर जोर दे रहे हैं।
चिराग पासवान का तर्क है कि उनकी पार्टी का राज्य में जनाधार बढ़ा है और कम सीटों पर चुनाव लड़ना कार्यकर्ताओं के मनोबल को कमजोर करेगा। अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि बातचीत सकारात्मक ढंग से अंतिम चरण में है, लेकिन उनकी मांगों को नजरअंदाज करना गठबंधन के हित में नहीं होगा। चिराग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भरोसा जताते हुए कहा कि “जहाँ मेरे प्रधानमंत्री हैं, वहाँ मुझे अपने सम्मान की चिंता नहीं है,” लेकिन सीटों की संख्या पर उन्होंने कोई समझौता न करने का मन बना लिया है।
जीतन राम मांझी का ‘राज्य पार्टी’ का तर्क, 15 सीटों पर जोर
पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। हम पार्टी को गठबंधन की तरफ से 8 सीटें देने का प्रस्ताव मिला था, लेकिन मांझी ने इस प्रस्ताव को यह कहते हुए सिरे से खारिज कर दिया कि उन्हें 15 सीटों से कम पर चुनाव लड़ना मंजूर नहीं है।
मांझी ने अपनी मांग के पीछे तर्क दिया है कि बिहार में किसी भी पार्टी को ‘राज्य स्तरीय पार्टी’ का दर्जा प्राप्त करने के लिए कम से कम 8 विधायक होने चाहिए। उनकी पार्टी के पास पहले से ही 4 विधायक हैं। मांझी का कहना है कि अगर वे 15 सीटों पर चुनाव लड़ते हैं, तभी उनके पास राज्य पार्टी का दर्जा पाने के लिए ज़रूरी 8 विधायक जिताने का पर्याप्त मौका होगा। कम सीटें मिलने पर उनके राजनीतिक अस्तित्व पर खतरा आ सकता है।
उपेंद्र कुशवाहा और अन्य घटक दलों की स्थिति
राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने भी अपनी पार्टी के लिए 24 सीटों की मांग की थी, हालांकि उन्हें लगभग 5 सीटें दिए जाने की बात चल रही है। आरएलएम की मांगें भी भाजपा के लिए सिरदर्द बनी हुई हैं, क्योंकि हर छोटे सहयोगी को उसकी मांग के अनुसार सीटें देना मुख्य दल भाजपा और जदयू के लिए अपनी सीटों को कम करने जैसा होगा, जो दोनों दल नहीं चाहते।
जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने एक ओर दावा किया है कि “एनडीए के घटक दलों में कहीं कोई मतभेद नहीं है” और वे “एकजुट” हैं, लेकिन दूसरी ओर, चिराग और मांझी के अड़ियल रुख ने इस दावे को सवालों के घेरे में ला दिया है।
BJP की रणनीति और अंतिम घोषणा की संभावना
एनडीए में इस घमासान को सुलझाने के लिए केंद्रीय चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान लगातार चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा के साथ बैठकें कर रहे हैं। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इस बात से अवगत है कि बिहार में जीत के लिए गठबंधन की एकता और सामंजस्य आवश्यक है, खासकर जब महागठबंधन एक मजबूत चुनौती पेश कर रहा है।
दिल्ली में हो रही भाजपा की महाबैठक में अब यही तय किया जाना है कि इन दोनों सहयोगी दलों को कितनी सीटें देकर संतुलन बनाया जाए और बाकी बची सीटों पर भाजपा और जदयू अपने उम्मीदवार कैसे उतारें। माना जा रहा है कि आज शाम तक या कल सुबह तक सीट बंटवारे की औपचारिक घोषणा कर दी जाएगी, जिसके बाद सभी घटक दल चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंकेंगे।