‘ जो बीवी से करे प्यार, वो प्रेस्टिज़ से कैसे करे इंकार ?’

जयललिता की बेंचमेट से भारत के किचन किंग तक: टीटी जगन्नाथन की विरासत

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पूनम शर्मा
10 अक्टूबर 2025 को बेंगलुरु में 82 वर्ष की आयु में टीटीके प्रेस्टिज़ के चेयरमैन एमेरेटस, टीटी जगन्नाथन का निधन हो गया। उनका जीवन भारतीय उद्यमिता के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा। उन्होंने साबित कर दिया कि भारतीय व्यवसाय न केवल विश्व-स्तरीय हो सकते हैं, बल्कि उसमें मानवता और सादगी भी बनी रह सकती है।

1 जनवरी 1975 की सुबह, एक युवा, नए नियुक्त मैनेजिंग डायरेक्टर को अपने ही फैक्ट्री के गेट पर रोका गया। यह वही जगन्नाथन थे, जिन्होंने प्रेस्टिज़ प्रेशर कुकर के क्षेत्र में भारतीय उद्योग को नई दिशा दी। IIT गोल्ड मेडल और कॉर्नेल की डिग्री के साथ फैक्ट्री पहुँचे जगन्नाथन को सुरक्षा गार्ड्स ने प्रवेश से रोक दिया। यह विरोध उनके करियर की शुरुआत थी, और उनके धैर्य और समझदारी को प्रदर्शित करता है। उन्होंने सीधे प्रबंध निदेशक की कुर्सी पर बैठने की बजाय, एक छोटे डेस्क से काम करना शुरू किया और मशीनिस्ट तथा कर्मचारियों के साथ चाय साझा की। यह उनकी विनम्रता और नेतृत्व की पहली झलक थी।

उनका पहला बड़ा कारपोरेट संघर्ष भी इसी समय सामने आया। उन्होंने Aluminium Controller of India से 35 टन एल्यूमीनियम प्रतिमाह खरीदने की अनुमति हासिल की। इस सफलता ने प्रोडक्शन को सुचारू किया और कर्मचारियों के बीच उनका विश्वास बढ़ा। धीरे-धीरे जगन्नाथन ‘टीटीजे सर’ बन गए – कोई दूर का बॉस नहीं, बल्कि कंपनी के अस्तित्व के लिए लड़ने वाला नेता।

जयललिता की बेंच से भारतीय रसोई तक

जगन्नाथन का जीवन शुरू में अकादमिक दुनिया की ओर अग्रसर था। चेन्नई के चर्च पार्क कॉन्वेंट स्कूल में उन्होंने पाँच वर्षों तक जया लक्ष्मी जयललिता के साथ बेंच शेयर की थी। IIT मद्रास से गोल्ड मेडल प्राप्त करने और कॉर्नेल विश्वविद्यालय से मास्टर्स करने के बाद, उन्होंने अमेरिका में PhD करने और अकादमिक जीवन बिताने का सपना देखा। लेकिन 1972 में पारिवारिक व्यवसाय में संकट ने उन्हें भारत वापस बुला लिया।

उनका पहला कार्य केवल कुकर उद्योग से जुड़ा नहीं था। उन्होंने कंपनी के मैप्स और एटलस यूनिट को घाटे से बचाया और उसे कॉन्ट्रैक्ट प्रिंटिंग में बदल दिया। जब उन्होंने बेंगलुरु प्रेस्टिज़ फैक्ट्री संभाली, तब यह ब्रांड पहले से ही भारतीय रसोईयों के बीच लोकप्रिय था, लेकिन सुरक्षा के मुद्दों के कारण इसका नाम खराब था। बाजार भ्रमण के दौरान उन्हें साफ शब्दों में बताया गया, “आपके कुकर खतरनाक हैं। कौन खरीदेगा?”

यह चुनौती जगन्नाथन के लिए एक नवाचार का अवसर बन गई। उनकी टीम ने गास्केट रिलीज़ सिस्टम (GRS) विकसित किया, जिससे कुकर में अधिक भाप होने पर सुरक्षित निकासी सुनिश्चित होती थी। यह सरल, किफायती और क्रांतिकारी समाधान था। उन्होंने इसे पेटेंट नहीं कराया, ताकि प्रतिस्पर्धियों द्वारा इसका पालन हो और पूरे उद्योग में भरोसा बढ़े।

1980 के दशक में, ‘जो बीवी से करे प्यार, वो प्रेस्टिज़ से कैसे करे इंकार?’ विज्ञापन अभियान ने प्रेस्टिज़ को केवल एक घरेलू उपकरण नहीं, बल्कि घरेलू स्नेह का प्रतीक बना दिया।

विस्तार और सतर्कता

जगन्नाथन के नेतृत्व में, प्रेस्टिज़ ने प्रेशर पैन, नॉन-स्टिक कुकवेयर, स्टेनलेस स्टील कुकर, और 2011 में माइक्रोवेव फ्रेंडली कुकर MicroChef लॉन्च किया। समूह ने ब्रिटेन सहयोगी से प्रेस्टिज़ ब्रांड के भारतीय अधिकार भी खरीदे।

उन्होंने अपने करियर में भारत की कठोर कर प्रणाली और लाइसेंस-राज के नियमों से भी जूझा। 1979 में 100% आयात शुल्क ने उनके शेविंग क्रीम व्यवसाय को प्रभावित किया। लेकिन उन्होंने मेहनत और रणनीति से TTK ग्रुप को दिवालियापन से बचाया और 2002 तक समूह का सारा ऋण समाप्त कर दिया। TTK समूह में टीटीके हेल्थकेयर, कंज्यूमर केयर उत्पाद, हृदय और ऑर्थो इम्प्लांट्स सहित कई विविध उद्योग शामिल हैं।

किचन से बेडरूम तक: डिस्रप्शन की कला

अगर रसोई जगन्नाथन का पहला क्षेत्र था, तो बेडरूम उनका दूसरा क्षेत्र। 1963 में TTK ने लंदन रबर कंपनी के साथ मिलकर भारत का पहला कंडोम फैक्ट्री स्थापित किया। 2012 में Skore ब्रांड लॉन्च कर उन्होंने 3 वर्षों में भारत के कंडोम बाजार का 10% हिस्सा हासिल किया। Skore के लिए उनका दृष्टिकोण सरल था: ‘इसे पारिवारिक नियोजन के रूप में मत बेचो, इसे मज़ा के रूप में बेचो।’

व्यावहारिक और दार्शनिक दृष्टिकोण

जगन्नाथन परिवार के व्यवसाय में पेशेवर प्रबंधन पर विश्वास रखते थे। उन्होंने अपने बच्चों को कंपनी के लिए पेशेवरों को प्राथमिकता देने की सलाह दी। साथ ही, उन्होंने TT Ranganathan Clinical Research Foundation, IIT मद्रास के बायोमेडिकल अनुसंधान, और रक्तदान संबंधी पहल में योगदान दिया।

सच्चे किचन किंग

जगन्नाथन केवल बोर्डरूम के नेता नहीं थे। वे प्रशिक्षित खिलाड़ी, संगीत प्रेमी, कुशल रसोइया और क्राफ्ट्समैन थे। उनकी तीन प्रबंधन मंत्र थे: रोज़ काम पर दिखो, विवरणों का ध्यान रखो, और सामान्य बुद्धि का उपयोग करो।

उनकी जीवन गाथा यह सिखाती है कि भारतीय उद्यमिता विश्व-स्तरीय हो सकती है, लेकिन उसमें सादगी, विनम्रता और हास्य का भाव भी रह सकता है। TT जगन्नाथन ने न केवल हमारे किचन के कुकरों या विज्ञापन वाले कंडोम ब्रांड के लिए नाम कमाया, बल्कि यह दिखाया कि भारतीय व्यवसाय अपनी जड़ों से जुड़ा रहकर आधुनिकता के साथ खिल सकता है।

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