मालदीव में लोकतांत्रिक असंतोष के बढ़ते संकेत

माले में विरोध प्रदर्शन पर झड़पें

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पूनम शर्मा
माले की सड़कों पर  एक बार फिर राजनीतिक असंतोष की गूँज  सुनाई दी। विपक्षी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (MDP) द्वारा आयोजित एक विरोध मार्च के दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पें हुईं। इस दौरान आठ लोगों को गिरफ्तार किया गया, जबकि राजधानी में तनाव का माहौल बना रहा। यह घटना ऐसे समय में हुई है जब मालदीव में राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के नेतृत्व में सत्ता केंद्रीकरण और संवैधानिक संशोधनों को लेकर राजनीतिक विवाद तेजी से गहराता जा रहा है।

घटना का क्रम: विरोध से टकराव तक

प्रदर्शनकारियों ने राजधानी माले की मुख्य सड़क मजीदी मजजु  पर सरकार विरोधी नारे लगाए और लोकतांत्रिक अधिकारों की बहाली की मांग की। हालांकि, पुलिस ने आरोप लगाया कि प्रदर्शनकारियों ने पूर्व निर्धारित शर्तों का उल्लंघन किया — वे तय मार्गों से हट गए, सार्वजनिक व्यवस्था भंग की और सुरक्षा कर्मियों पर पत्थर व पानी की बोतलें फेंकीं।
पुलिस के अनुसार, कुछ प्रदर्शनकारियों ने बैरिकेड तोड़े, पुलिस की ढालें छीन लीं और बल प्रयोग को उकसाने की कोशिश की।

दूसरी ओर, MDP ने पुलिस पर “अत्यधिक बल प्रयोग” का आरोप लगाया और कहा कि शांतिपूर्ण विरोध को दबाने के लिए पेपर स्प्रे और दंगा नियंत्रण बल का अनुचित प्रयोग किया गया। पार्टी ने गिरफ्तार किए गए लोगों की “तत्काल और बिना शर्त रिहाई” की मांग की।

सरकार का रुख: ‘कानून के भीतर विरोध का अधिकार’

मालदीव सरकार ने शनिवार को जारी बयान में कहा कि वह शांतिपूर्ण विरोध के संवैधानिक अधिकार का सम्मान करती है। बयान में संविधान के अनुच्छेद 32 और Freedom of Assembly Act (Act No. 1/2013) का हवाला देते हुए कहा गया कि हर नागरिक को शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार है, लेकिन यह अधिकार कानून की सीमाओं में रहकर ही प्रयोग किया जा सकता है।

सरकार ने दावा किया कि प्रदर्शनकारियों ने पुलिस के बार-बार के निर्देशों की अनदेखी की और ज़बरदस्ती मजीदी माघु में प्रवेश कर सार्वजनिक व्यवस्था भंग की। सरकार ने यह भी कहा कि पुलिस ने संयम बरतते हुए केवल आवश्यक बल प्रयोग किया ताकि नागरिक सुरक्षा बनी रहे।

विपक्ष की मांगें और व्यापक असंतोष

MDP ने हाल ही में पारित उन संवैधानिक संशोधनों का विरोध किया है जिन्हें वह “लोकतांत्रिक मूल्यों पर प्रहार” मानती है। पार्टी का कहना है कि ये बदलाव राष्ट्रपति कार्यालय में शक्ति का केंद्रीकरण करते हैं और संसद व न्यायपालिका की स्वायत्तता को कमज़ोर करते हैं।

इसके अलावा, MDP ने मीडिया की स्वतंत्रता, सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार और द्वीपों को अधिक स्वशासन देने की मांग भी उठाई है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, ये मुद्दे केवल विपक्षी राजनीति का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि मालदीव के आम नागरिकों के बीच भी बढ़ती असंतुष्टि का प्रतीक बनते जा रहे हैं।

लोकतंत्र बनाम स्थिरता का संतुलन

राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू, जिन्हें 2023 में सत्ता मिली, ने हाल ही में कहा था कि सरकार के नए सुधार राष्ट्रीय सुरक्षा और सुशासन के लिए आवश्यक हैं। उनका तर्क है कि विकेंद्रित प्रशासन ने भ्रष्टाचार और निर्णयहीनता को जन्म दिया, इसलिए सशक्त केंद्रीय नेतृत्व जरूरी है।

लेकिन मानवाधिकार संगठनों और विपक्षी दलों का कहना है कि यही केंद्रीकरण लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर रहा है। विशेष रूप से मीडिया पर बढ़ते नियंत्रण और विरोध प्रदर्शनों पर कड़ी निगरानी ने इस बहस को और तीखा कर दिया है।

राजनीतिक पृष्ठभूमि: एक द्वीपीय लोकतंत्र में अस्थिरता

लगभग 5 लाख की आबादी वाला यह हिंद महासागर का छोटा द्वीपीय राष्ट्र 1,200 से अधिक मूंगा द्वीपों पर फैला हुआ है। पर्यटक स्वर्ग के रूप में प्रसिद्ध मालदीव ने पिछले एक दशक में राजनीतिक अस्थिरता और सत्ता परिवर्तन के कई दौर देखे हैं।

2018 में जब अब्दुल्ला यामीन की अधिनायकवादी सरकार को हटाकर इब्राहिम सोलिह की सरकार आई थी, तब मालदीव में लोकतंत्र की वापसी की उम्मीद जगी थी। लेकिन 2023 में मुइज्जू की जीत के बाद से देश एक बार फिर “मजबूत नेतृत्व बनाम लोकतांत्रिक आज़ादी” की बहस में उलझ गया है।

भविष्य की दिशा: कानून, विपक्ष और सिविल सोसाइटी

सरकार ने संकेत दिया है कि बिना अनुमति के आयोजित किसी भी भविष्य के प्रदर्शन पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। वहीं, विपक्षी दलों का कहना है कि यदि सरकार ने दमन की नीति अपनाई, तो जनता का आक्रोश और भड़केगा।

सिविल सोसाइटी समूहों ने सरकार और विपक्ष दोनों से संवाद और संयम की अपील की है। उनका कहना है कि मालदीव जैसे छोटे द्वीपीय राष्ट्र में राजनीतिक ध्रुवीकरण से शासन और पर्यटन दोनों को खतरा हो सकता है।

 लोकतंत्र की दिशा पर सवाल

माले में हुई हालिया झड़पें केवल एक विरोध प्रदर्शन नहीं, बल्कि उस गहरे राजनीतिक असंतोष का प्रतीक हैं जो मालदीव के लोकतांत्रिक भविष्य को लेकर उभर रहा है। एक ओर सरकार कानून व्यवस्था की दुहाई दे रही है, तो दूसरी ओर विपक्ष संविधानिक स्वतंत्रता की।

इस द्वंद्व के बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या मालदीव अपने लोकतांत्रिक संतुलन को बनाए रख पाएगा या फिर शक्ति के केंद्रीकरण की यह प्रक्रिया उसे फिर से अधिनायकवाद की ओर धकेल देगी।

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