पूनम शर्मा
विश्व राजनीति और वैश्विक अर्थव्यवस्था के समीकरण इस समय तेजी से बदल रहे हैं। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के बाद से अंतरराष्ट्रीय व्यापार के पुराने नियमों में व्यापक फेरबदल हो चुका है। पारस्परिक टैरिफ (reciprocal tariffs) की नीति ने वैश्विक सप्लाई चेन को झकझोर दिया है और दुनिया के तमाम देश नए व्यापारिक साझेदारों की ओर रुख कर रहे हैं। ऐसे समय में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर की पहली भारत यात्रा सिर्फ एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक स्पष्ट रणनीतिक संकेत है — भारत और ब्रिटेन अपने ऐतिहासिक संबंधों को नए युग में व्यावहारिकता और उद्देश्यपूर्ण दिशा में ले जाना चाहते हैं।
ब्रिटेन की ओर से बड़ा संदेश: सबसे बड़ा व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल
कीर स्टार्मर जब भारत पहुंचे, तो उनके साथ ब्रिटेन का अब तक का सबसे बड़ा व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल — 125 सीईओ और उद्योगपति — था। यह सिर्फ एक प्रतीकात्मक कदम नहीं, बल्कि ब्रिटेन की प्राथमिकताओं का ठोस संकेत था। ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन अपनी नई व्यापारिक दिशा तय कर रहा है और भारत उसके केंद्र में है। हाल ही में हुए यूके-इंडिया व्यापार समझौते को ज़मीन पर उतारना स्टार्मर का स्पष्ट एजेंडा है।
स्टार्मर ने ज़ोर देकर कहा कि इस समझौते का तेज़ी से क्रियान्वयन दोनों देशों के हित में है। यह समयबद्धता बताती है कि ब्रिटेन, जो ब्रेक्जिट के झटकों से उबरने की कोशिश में है, भारत को केवल बाज़ार नहीं बल्कि एक भरोसेमंद रणनीतिक साझेदार के रूप में देख रहा है।
भारत की स्थिति: आत्मविश्वास और वैश्विक नेतृत्व की दिशा में
भारत 2028 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है। ऐसे में ब्रिटेन जैसे परिपक्व और तकनीकी रूप से सक्षम देश के साथ व्यापारिक रिश्ते गहराई से जुड़ने से न केवल निवेश और तकनीक का प्रवाह बढ़ेगा, बल्कि स्वच्छ ऊर्जा, डिजिटल नवाचार, रक्षा निर्माण, शिक्षा और दवा उद्योग जैसे क्षेत्रों में दीर्घकालिक साझेदारी मजबूत होगी।
भारत की ओर से इस यात्रा के प्रति गर्मजोशी, यह संकेत देती है कि नई दिल्ली अब अपने हितों को लेकर कहीं अधिक आत्मविश्वासी और स्पष्ट है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्टार्मर के साथ नई दिल्ली में हुई वार्ता को “ऐतिहासिक” बताया और ‘विजन 2035’ रोडमैप को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई।
ऐतिहासिक रिश्तों से आधुनिक रणनीतिक साझेदारी तक
भारत और ब्रिटेन का रिश्ता उपनिवेश काल की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से शुरू होकर आज व्यापक रणनीतिक साझेदारी में तब्दील हो चुका है। 2021 में दोनों देशों ने अपने रिश्तों को “Comprehensive Strategic Partnership” का दर्जा दिया था और “रोडमैप 2035” की रूपरेखा तैयार की थी। इसका मकसद व्यापार, स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन और सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में गहरी साझेदारी बनाना है।
ब्रिटेन में बसे भारतीय मूल के नागरिक — जो दुनिया के सबसे प्रभावशाली प्रवासी समूहों में से एक हैं — इस रिश्ते में एक मजबूत सामाजिक और सांस्कृतिक पुल का काम करते हैं।
मतभेद भी हैं — पर संवाद बना हुआ है
हालांकि रिश्तों में गर्मजोशी के साथ-साथ कुछ मतभेद भी मौजूद हैं। भारत ने ब्रिटेन में बढ़ती खालिस्तानी गतिविधियों पर चिंता जताई है, वहीं ब्रिटेन भारत में व्यापारिक बाधाओं और मानवाधिकार जैसे मुद्दों पर खुलापन चाहता है। लेकिन इन मतभेदों को दोनों देशों ने कभी भी रिश्तों की बुनियाद पर हावी नहीं होने दिया। संवाद हमेशा रचनात्मक और आगे की दिशा में रहा है।
इस यात्रा का एक रोचक प्रतीकात्मक पहलू था स्टार्मर का पहला पड़ाव — यशराज फिल्म्स। यह केवल एक सांस्कृतिक मुलाकात नहीं थी, बल्कि इस बात का संकेत था कि आर्थिक रिश्तों के समानांतर संस्कृति भी दोनों देशों को जोड़ती है।
भारत की वैश्विक भूमिका पर ब्रिटेन का समर्थन
एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संदेश भी इस यात्रा में सामने आया। कीर स्टार्मर ने कहा कि वे चाहते हैं कि भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में “अपनी वैध जगह” हासिल करे। यह भारत की लंबे समय से चली आ रही मांग रही है और ब्रिटेन का यह समर्थन भारत की वैश्विक भूमिका की स्वीकृति है।
स्टार्मर ने रूस से तेल खरीद के मुद्दे पर भी भारत के रुख को समझदारी से लिया और प्रधानमंत्री मोदी की शांति की अपील को रेखांकित किया। यह संकेत है कि लंदन अब नई दिल्ली को एक ‘ग्लोबल प्लेयर’ के रूप में स्वीकार कर चुका है।
नए भू-राजनीतिक युग में भारत-ब्रिटेन की साझेदारी
स्टार्मर की यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब वैश्विक आर्थिक और सामरिक शक्ति का केंद्र धीरे-धीरे एशिया की ओर शिफ्ट हो रहा है। भारत को ऐसे समय में पश्चिम का एक भरोसेमंद साझेदार चाहिए और ब्रिटेन को एशिया में एक मज़बूत मित्र। इस समीकरण में दोनों के हित एक-दूसरे से गहराई से जुड़ते हैं।
भारत-ब्रिटेन का रिश्ता सिर्फ अतीत की विरासत नहीं, बल्कि भविष्य की साझेदारी बन सकता है। जब ट्रंप की व्यापारिक नीतियों ने पारंपरिक साझेदारियों में अनिश्चितता पैदा की है, तब यह यात्रा बताती है कि नई दिल्ली और लंदन व्यावहारिकता, आर्थिक साझेदारी और भू-राजनीतिक सामंजस्य पर आधारित एक नई दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
निष्कर्ष: आत्मविश्वास से भरा भारत, व्यावहारिक ब्रिटेन
कीर स्टार्मर की भारत यात्रा सिर्फ एक कूटनीतिक कार्यक्रम नहीं है — यह एक संदेश है कि भारत अब वैश्विक मंच पर न केवल अपनी आवाज़ बुलंद कर रहा है बल्कि अपनी आर्थिक और रणनीतिक दिशा स्वयं तय कर रहा है। वहीं ब्रिटेन, जिसने ब्रेक्जिट के बाद नए साझेदारों की तलाश शुरू की थी, अब उसे भारत में एक भरोसेमंद सहयोगी नज़र आ रहा है।
आने वाले वर्षों में ‘विजन 2035’ और व्यापार समझौते का सफल क्रियान्वयन न केवल इन दो देशों को करीब लाएगा, बल्कि यह वैश्विक व्यापारिक और राजनीतिक व्यवस्था में भी एक नए समीकरण को जन्म देगा। इस दृष्टि से स्टार्मर की यात्रा वास्तव में एक निर्णायक मोड़ मानी जाएगी।