बिहार: 6 करोड़ का पुल बना, अप्रोच रोड नदारद

कटिहार में PMGSY के तहत बने पुल का 4 साल बाद भी उपयोग नहीं, भूमि अधिग्रहण की चूक बनी वजह

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  • बिहार के कटिहार जिले में ₹6 करोड़ की लागत से पसंता पुल (Pasanta Bridge) बनकर तैयार है, लेकिन अप्रोच रोड न होने के कारण अनुपयोगी है।
  • पुल का एक खंभा निजी जमीन पर है, जिसका भूमि अधिग्रहण पूरा नहीं हो पाया, जिसके बावजूद पुल निर्माण शुरू कर दिया गया।
  • पुल के उपयोग न होने से 10-12 गाँवों के निवासियों को जिला मुख्यालय जाने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ रही है।

समग्र समाचार सेवा
पटना/कटिहार, 9 अक्टूबर: बिहार में सरकारी परियोजनाओं के कार्यान्वयन में लापरवाही का एक चौंकाने वाला उदाहरण सामने आया है। कटिहार जिले के डंडखोरा ब्लॉक में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) के तहत लगभग ₹6 करोड़ की लागत से एक पुल का निर्माण किया गया, लेकिन काम शुरू होने के चार साल बाद भी यह पुल पूरी तरह से अनुपयोगी खड़ा है। इसका कारण है कि पुल को स्थानीय सड़क नेटवर्क से जोड़ने वाली अप्रोच रोड (Approach Road) आज तक पूरी नहीं हो पाई है।

दूर से देखने पर, कटिहार का पसंता पुल एक ऐसा सरकारी निर्माण लगता है जो बाढ़ प्रभावित गांवों के एक समूह के अलगाव को समाप्त करने के लिए बनाया गया है। हालांकि, हकीकत यह है कि पुल के एक तरफ खेत हैं, कोई सड़क नहीं है, और पुल का एक खंभा निजी स्वामित्व वाली भूमि पर टिका हुआ है।

पुल का निर्माण कार्य 3 सितंबर 2020 को शुरू हुआ था और ठेकेदारों को यह परियोजना 2 सितंबर 2021 तक पूरी करनी थी। स्थानीय निवासियों का कहना है कि पुल का मुख्य ढांचा तो बनकर तैयार है, लेकिन भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी न होने के कारण अप्रोच रोड और निजी जमीन पर पड़ने वाला खंभा कभी नहीं बन पाया।

DPR में लापरवाही: ग्रामीणों का सीधा आरोप

स्थानीय ग्रामीणों का आरोप है कि परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) आवश्यक निजी भूमि अधिग्रहण को सुनिश्चित किए बिना ही तैयार कर दी गई थी, और इसके बावजूद निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया। निवासियों का कहना है कि यही प्रशासनिक चूक इस पुल को एक “सफेद हाथी” (White Elephant) बनाकर खड़ा रखने का मुख्य कारण है।

इस पुल का निर्माण आसपास के लगभग 10-12 गांवों के निवासियों को जिला मुख्यालय तक पहुंचाकर उनकी यात्रा को छोटा करने के लिए किया गया था। लेकिन अप्रोच रोड के अभाव में, आज भी ग्रामीणों को लंबी दूरी का चक्कर लगाकर मुख्यालय तक पहुंचना पड़ता है, जिससे उनका समय और संसाधन दोनों बर्बाद होते हैं।

इस परियोजना में हुई करोड़ों रुपये की बर्बादी और प्रशासनिक लापरवाही को लेकर लोगों में भारी गुस्सा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इतनी बड़ी लागत लगाने के बावजूद, जब पुल का उपयोग ही नहीं हो सकता, तो यह सरकारी धन का दुरुपयोग है।

प्रशासन ने दिया जांच का आश्वासन

जब इस मामले में कटिहार के जिला अधिकारी (District Officer) मनीष मीना से संपर्क किया गया, तो उन्होंने समस्या को स्वीकार किया। जिला अधिकारी ने आश्वासन दिया कि वह तुरंत मामले की जांच करेंगे और जल्द से जल्द बिहार पुल अप्रोच रोड की समस्या का समाधान निकालने का प्रयास किया जाएगा।

यह घटना दर्शाती है कि कैसे अपर्याप्त योजना और विभागों के बीच समन्वय की कमी के कारण सार्वजनिक धन बर्बाद हो सकता है और विकास परियोजनाओं का लाभ वास्तविक लाभार्थियों तक नहीं पहुंच पाता है। अब यह देखना होगा कि प्रशासन इस पुल को उपयोग में लाने के लिए भूमि अधिग्रहण और सड़क निर्माण के लंबित कार्य को कितनी जल्दी पूरा कर पाता है।

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