पूनम शर्मा
नोबेल पुरस्कार विजेता डेमिस हासाबिस ने हाल ही में एक बयान दिया जिसने विश्वभर में शिक्षा नीति से जुड़े लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने कहा कि आने वाले दशकों में STEM—यानि Science, Technology, Engineering और Mathematics—की मजबूत नींव ही किसी भी देश की असली पूंजी होगी। उन्होंने बिल्कुल सही निशाना साधा है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के इस दौर में अगर किसी चीज़ की सबसे अधिक आवश्यकता है, तो वह है वैज्ञानिक सोच और समस्या-समाधान की क्षमता।
भारत में STEM शिक्षा का विरोधाभास
भारत में STEM शिक्षा एक अजीब विरोधाभास से गुजर रही है। एक ओर इंजीनियरिंग और विज्ञान के स्नातक लाखों की संख्या में निकल रहे हैं, वहीं दूसरी ओर रोज़गार और गुणवत्ता को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं।
इंडिया स्किल्स रिपोर्ट 2024 के अनुसार, भारत के केवल 50% स्नातक ही रोजगार योग्य माने जाते हैं। वहीं Aspiring Minds (अब SHL) की रिपोर्ट में कहा गया है कि 80% इंजीनियरिंग ग्रेजुएट ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था में अप्रयुक्त हैं, क्योंकि उनमें व्यावहारिक अनुभव, संवाद कौशल और आधुनिक पाठ्यक्रम की समझ की कमी है।
इसका नतीजा यह है कि विज्ञान और इंजीनियरिंग जैसे कठिन विषयों में दाखिले घट रहे हैं। कई छात्र त्वरित लाभ या “AI टूल्स” से तैयार समाधानों की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जिससे वे असली सीखने की प्रक्रिया से दूर हो रहे हैं।
एआई पर निर्भरता: चेतावनी की घंटी
एक हालिया उदाहरण बताता है कि यह प्रवृत्ति कितनी खतरनाक है। एक नामी आईटी कंपनी ने 450 कोडिंग नौकरियों के लिए आवेदन आमंत्रित किए। 12,000 उम्मीदवारों ने आवेदन किया, लेकिन चौंकाने वाली बात यह रही कि एक भी उम्मीदवार को चयनित नहीं किया जा सका। कारण? अधिकांश उम्मीदवारों ने समस्याओं को हल करने के बजाय केवल AI टूल्स का सहारा लिया। यह घटना बताती है कि जब तक विद्यार्थी अपने तार्किक और गणनात्मक कौशल को विकसित नहीं करेंगे, तब तक तकनीक भी उनके लिए सीमित उपयोग की वस्तु बन जाएगी।
STEM का सार: प्रणाली की समझ
STEM केवल समीकरण या प्रयोगशाला तक सीमित नहीं है; यह प्रणालियों की समझ सिखाता है — चाहे वे जैविक हों, भौतिक हों, सूचना आधारित हों या यांत्रिक।
उदाहरण के लिए, एक छात्र अगर STEM में निपुण है तो वह केवल ChatGPT से उत्तर पाने के बजाय, उसके पीछे के एल्गोरिद्म की संरचना को समझने का प्रयास करेगा। यही मानसिकता वास्तविक नवाचार का आधार बनती है।
STEM से विज्ञान में क्रांति
डेमिस हासाबिस स्वयं इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। न्यूरोसाइंस में पीएचडी रखने वाले हासाबिस ने AlphaFold प्रोजेक्ट के माध्यम से प्रोटीन फोल्डिंग जैसी जटिल समस्या को सुलझाया—एक ऐसा कारनामा जिसे दशकों से विज्ञान की सबसे कठिन पहेली माना जाता था। यह उपलब्धि केवल कृत्रिम बुद्धिमत्ता की नहीं, बल्कि जीवविज्ञान, भौतिकी और मशीन लर्निंग के मेल का परिणाम थी।
भारत में भी ऐसा ही उदाहरण है इसरो का चंद्रयान-3 मिशन। यह मिशन केवल कोडिंग का कमाल नहीं था; इसके पीछे सटीक इंजीनियरिंग, ऑर्बिटल मैकेनिक्स, मटेरियल साइंस और गणितीय मॉडलिंग जैसी STEM शाखाओं का अद्भुत समन्वय था।
समस्या: सिलेबस में जड़ता और व्यवहारिकता की कमी
भारत में STEM शिक्षण अक्सर सिलो आधारित (Siloed) होता है — यानी विषय आपस में जुड़े नहीं लगते। यह छात्रों को वास्तविक दुनिया से काट देता है। इसका समाधान है STEM को सिस्टम एजुकेशन के रूप में पुनः परिकल्पित करना —
जहां छात्र इंटरडिसिप्लिनरी प्रोजेक्ट्स, उद्योगों के साथ साझेदारी और आधुनिक प्रयोगशालाओं के जरिए सीखें।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के अनुरूप एक्टिव लर्निंग की अवधारणा इसी दिशा में कदम है — जहां छात्र केवल पढ़ते नहीं, बल्कि प्रयोग करते हैं, सवाल पूछते हैं, और समाधान खोजते हैं।
एआई का डर और STEM की भूमिका
आज AI के बढ़ते प्रभाव से कई लोग नौकरी के भविष्य को लेकर भयभीत हैं। लेकिन यह डर अधूरा है।
वास्तविकता यह है कि AI उन्हीं के लिए मूल्य-वर्धक उपकरण (Value Multiplier) बनेगा, जो विज्ञान और तकनीक की गहराई को समझते हैं।
जनरेटिव AI कोड लिख सकता है, लेकिन क्या वह एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में जटिल सिमुलेशन की वैधता जांच सकता है? नहीं। ऐसे कामों के लिए मानव दिमाग और वैज्ञानिक अंतर्दृष्टि की जरूरत हमेशा रहेगी।
भारतीय संदर्भ में पहल और संभावनाएं
भारत सरकार की अटल इनोवेशन मिशन और नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (NRF) जैसी पहलें तभी सफल होंगी, जब STEM शिक्षा का पाइपलाइन मजबूत रहेगा।
STEM केवल नौकरी का माध्यम नहीं है — यह एक राष्ट्रीय सुरक्षा कवच भी है।
वैज्ञानिक सोच झूठे विज्ञान, फेक न्यूज़ और विचारधारात्मक अतिवाद के खिलाफ समाज की रक्षा करती है। STEM संस्कृति तथ्य, प्रमाण और प्रश्न करने की आदत सिखाती है — ये वे मूल्य हैं जो किसी भी आधुनिक समाज को खड़ा रखते हैं।
निष्कर्ष: STEM से ही बनेगा आत्मनिर्भर भारत
आने वाले वर्षों में रोजगार की मांग कोडिंग से हटकर एल्गोरिद्म डिज़ाइन, गणितीय मॉडलिंग और सिस्टम इंटीग्रेशन की ओर जाएगी।
इसलिए यह जरूरी है कि भारत के विद्यालय और विश्वविद्यालय STEM शिक्षा को केवल डिग्री नहीं, बल्कि बुद्धि-विकास और राष्ट्र निर्माण का औजार मानें।
जैसा कि डेमिस हासाबिस ने कहा, “AI को समझने के लिए पहले विज्ञान को समझो।” यही भारत की दिशा होनी चाहिए — एक ऐसी शिक्षा जो न केवल तकनीक चलाना सिखाए, बल्कि उसे निर्माण करने की क्षमता भी दे।