कफ सिरप का कहर: MP-राजस्थान में 11 बच्चों की मौत
छिंदवाड़ा में 9 और राजस्थान में 2 मासूमों की मौत से हड़कंप; केंद्र ने जारी की एडवाइजरी
- 11 बच्चों की मौत: मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा और राजस्थान के सीकर/भरतपुर में कफ सिरप से जुड़ी मौतों के बाद कुल 11 बच्चों की मौत की पुष्टि।
- किडनी फेलियर की आशंका: अधिकांश मामलों में एक्यूट रीनल फेल्यूर (Acute Renal Failure) को मौतों का प्रमुख कारण माना जा रहा है।
- स्वास्थ्य मंत्रालय की एडवाइजरी: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2 साल से कम उम्र के बच्चों को कफ सिरप न देने की सख्त सलाह जारी की है।
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 4 अक्तूबर 2025: मध्य प्रदेश और राजस्थान में खांसी की सिरप से जुड़ी मौतों के मामले ने पूरे देश के स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मचा दिया है। दोनों राज्यों से अब तक कुल 11 बच्चों की मौत की पुष्टि हुई है।
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में पिछले 26 दिनों में 9 बच्चों की मौत हो चुकी है, जिनमें से अधिकांश को रहस्यमयी किडनी फेलियर (Kidney Failure) का सामना करना पड़ा। प्रारंभिक जांच में पता चला है कि इन बच्चों में से कई को ‘कोल्ड्रिफ (Coldrif)’ और ‘नेक्स्ट्रॉस-डीएस (Nextro-DS)’ नामक कफ सिरप दिए जाने की हिस्ट्री मिली है। छिंदवाड़ा प्रशासन ने इन संदिग्ध कफ सिरप की बिक्री पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया था।
वहीं, राजस्थान में भी कफ सिरप से जुड़ी दो बच्चों की मौत हुई है। सीकर जिले में 5 साल के एक बच्चे की और भरतपुर जिले में एक 2 साल के बच्चे की मौत की सूचना है। दोनों ही मामलों में सिरप के सेवन से किडनी फेलियर को प्रमुख कारण माना गया।
जांच रिपोर्ट पर विरोधाभास और डीईजी/ईजी की अनुपस्थिति
इन मौतों के सामने आने के बाद राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC) और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मामले की जांच तेज कर दी। शुरुआती आशंका जताई गई थी कि कफ सिरप में डायथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) या एथिलीन ग्लाइकॉल (EG) जैसे जहरीले रसायन मिले हो सकते हैं, जो किडनी को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं। ये रसायन वही हैं जो कार के कूलेंट में डाले जाते हैं।
हालांकि, 3 अक्टूबर 2025 को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि कफ सिरप के नमूनों की जांच में खतरनाक डीईजी/ईजी केमिकल नहीं मिला है। मंत्रालय ने कहा कि सभी कफ सिरप सैंपल सुरक्षित पाए गए हैं। मध्य प्रदेश राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन (SFDA) ने भी तीन सैंपल का परीक्षण किया और इन जहरीले रसायनों की अनुपस्थिति की पुष्टि की। इसके बावजूद, डेक्सट्रोमेथॉर्फन-आधारित यह फॉर्मूलेशन बच्चों के लिए (बाल चिकित्सा उपयोग) अनुशंसित नहीं माना गया।
स्वास्थ्य मंत्रालय की सख्त एडवाइजरी
जांच रिपोर्ट में किसी खतरनाक टॉक्सिन के न मिलने के बावजूद, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के डीजीएचएस (DGHS) ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को बच्चों में कफ सिरप के इस्तेमाल को लेकर सख्त एडवाइजरी जारी की है:
2 साल से कम उम्र के बच्चों को खांसी और जुकाम की दवा बिल्कुल न दी जाए।
5 साल से छोटे बच्चों को सिरप देने से पहले डॉक्टर द्वारा सावधानीपूर्वक क्लीनिकल मूल्यांकन किया जाए।
पहला विकल्प हमेशा गैर-दवा उपाय होना चाहिए, जैसे पर्याप्त पानी, आराम और सहायक देखभाल।
राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन (RMSCL) ने भी संदिग्ध सिरप के 19 बैचों की बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है।
झोलाछाप डॉक्टर और लापरवाही पर सवाल
इन घटनाओं ने स्वास्थ्य व्यवस्था और चिकित्सा प्रोटोकॉल पर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कुछ माता-पिता अपने बच्चों का इलाज झोलाछाप डॉक्टरों से करवा रहे थे। इसके अलावा, डेक्सट्रोमेथॉर्फन हाइड्रोब्रोमाइड सिरप, जिसे 4 साल से कम उम्र के बच्चों को नहीं दिया जाना चाहिए, को भी कुछ मामलों में दिए जाने की बात सामने आई है।
जब तक मौतों के सटीक कारण की निष्पक्ष और पारदर्शी जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक स्वास्थ्य विभाग ने माता-पिता, डॉक्टरों और मेडिकल संचालकों को अत्यधिक सतर्क रहने की सलाह दी है।