आप सभी पाठकों को नवरात्रि और दुर्गा पूजा की शुभकामनाएँ – देवी माँ हम सभी पर अपनी कृपा बरसाती रहे! एवं असम के महान गायक, प्रिय ज़ुबीन गर्ग को हमारी अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि। समस्त असम, सांस्कृतिक प्रतीक और युवा दिलों की धड़कन ज़ुबीन गर्ग के अचानक, दुःखद और अप्राकृतिक रूप से हुई असमय मृत्यु (19 सितंबर 2025, सिंगापुर ) पर शोकाकुल है। सिंगापुर में वे ‘नॉर्थईस्ट फेस्टिवल’ में अपने संगीत का कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले थे। ज़ुबीनदा इतने लोकप्रिय थे कि उनकी अंतिम यात्रा के समय दर्शकों , उनके प्रेमियों की भीड़ ने विश्व-रिकॉर्ड बनाया ।
जुबीन गर्ग की अनोखी, युगांतकारी संगीत यात्रा
ज़ुबीन गर्ग एक कालातीत संगीतकार, गायक, रॉक स्टार, गीतकार, वाद्ययंत्र वादक, अभिनेता, निर्देशक, फिल्म निर्माता, कवि, परोपकारी, पशु और प्रकृति प्रेमी थे, और पुस्तकें पढ़ने में रुचि रखते थे। एक उत्कृष्ट रचनात्मक प्रतिभा। विश्व के हमिंग किंग, जो असमिया संगीत, परंपराओं, भावनाओं को अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से परे ले गए। एक बहुमुखी गायक , जो अपनी व्यापक स्वर सीमा, कशिश-भरी गायिकी-वाणी, जो सहानुभूति, जुनून और दर्द के एक अनोखे जादुई-संगम से ओत-प्रोत थी , के लिए जाने जाते थे । उनके गाने हमारे दिल और आत्मा को गहराई में कहीं छू जाते हैं । जुबीनदा अक्सर अपने गीतों में अलंकार के लिए अमूर्त शब्दों का प्रयोग किया करते थे – इस करिश्माई कलाकार की रचनात्मकता के अनोखे पहलुओं में से ये मात्र एक पहलू है।
जुबीनदा ने अपने प्रथम गीत की रचना तब की जब वे कक्षा आठवीं एवं नवम श्रेणी में थे। 1992 में अनामिका एल्बम से अपने संगीत-कैरियर को आरम्भ करते हुए ज़ुबीनदा ने लगभग 40 भाषाओं में 38,000 से अधिक , विभिन्न शैलियों के गीत गाए । उन्होंने गुवाहाटी के एक स्टूडियो में मात्र 20 मिनट में अति शीघ्रता से 3 गीतों की रचना कर डाली थी, एक ही रात्रि में जुबीनदा के 36 तक गाने रिकॉर्ड करने के भी उदाहरण हैं। ज़ुबीनदा ने विलय (fusion) संगीत में भी अपनी जादुई प्रतिभा के रंग बिखेरे, और वे उत्तर पूर्व भारत के पारंपरिक, लोक संगीत को पश्चिमी संगीत के साथ विलय किया करते थे । वे विदेशों के गानों से भी प्रेरणा लेते थे। उनके गीत युवाओं को भक्ति-संगीत, संस्कृति, आध्यात्मिकता और जड़ों से जोड़ने के उत्प्रेरक बने। ज़ुबीन गर्ग समय के साथ बदलाव में विश्वास करते थे, और इसलिए वे दशकों तक युवाओं की नब्ज से जुड़े रहे। 90 के दशक में, जब हिंसा से प्रभावित असम संघर्ष कर रहा था, जुबीनदा के संगीत ने असमिया लोगों को जैसे प्यासी धरती में वर्षा की बूंदों की भाँति राहत दी । उन्होंने असमिया सिनेमा परिदृश्य में बड़े बजट की फिल्म निर्माण को नया रूप दिया और कई फिल्मों में निर्देशन किया, संगीत दिया, गाने गाए और अभिनय भी किया। एक बार मुंबई के अस्पताल में वे अस्वस्थ अवस्था में भर्ती थे वहाँ भी ज़ुबीनदा संगीत की धुनें गुनगुनाते थे, और अस्पताल में ही एक दिन में 5 गीतों की रचना कर डाली !
ज़ुबीनदा का व्यक्तित्व
ज़ुबीनदा अपने परिचितों के घरों में जब मिलने जाते और जो भी खाद्य उपलब्ध होता, खा लेते थे। वे जनता के साथ रहना पसंद करते थे, आम लोगों के लिए उनका शुद्ध प्रेम और स्नेह उन्हें असमिया लोगों के दिल से जोड़ता है । वे जरूरतमंदों की मदद करते जो उनके घर के सामने पंक्ति लगाया करते – कोई फीस के लिए, कोई चिकित्सा उपचार के लिए। अगर उनके पास पैसे नहीं भी होते, तो वे दूसरों से उधार लेकर मदद करते। मानवता उनका धर्म था। एक कलाकार से विशाल उनका उदार-हृदय वाला व्यक्तित्व था जो लोगों और मातृभूमि के लिए जीता था।
वे एक अलौकिक आत्मा के सदृश लगते थे, संगीत के दीवाने, और कई गीतों में उन्होंने मृत्यु, अंधेरे, बेचैनी, दुख, पीड़ा और जीवन की आंधियों का जिक्र किया ! मृत्यु से कुछ दिन पहले एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा- “मैं एक यात्री हूँ , मैं एक क्रांतिकारी हूँ , एक तैराक हूँ , मैं बस तैरते रहना चाहता हूँ … मुझे अभी अपना जहाज नहीं मिला… उन्होंने मुझे मशीन बना दिया है!”
किसने उन्हें मशीन बना दिया था और क्यों ?
हम अपनी इस ‘जातीय संपदा’ को क्यों नहीं बचा सके? अब मीडिया में कई दर्दनाक बातें सामने आ रही हैं रही है कि ज़ुबीन गर्ग के वित्तीय मामलों का प्रबंधन कैसे किया जा रहा था, और अगर उनकी मेहनत की कमाई के साथ पिछले कई वर्षों से धांधली चल रही थी – तो क्या उनके निकटतम परिवार के सदस्यों को इसकी जानकारी नहीं थी ?
क्या हम जुबीन गर्ग को जीवित रख सकते हैं?
असम के युवा और जन-मानस को इस पर चिंतन और कार्य करना होगा। अगर युवा उनके आदर्शों का अनुसरण करें जैसे कि – सफलता और लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अविचलित होकर आगे बढ़ते रहें; कि हम अपनी संस्कृति, परंपराओं और जड़ों से जुड़े रहें; कि हमें मातृभूमि के लिए जीना और लड़ना चाहिए; कि हम लक्ष्य-केंद्रित हो कार्यरत रहें, कि हम जरूरतमंद लोगों और पर्यावरण के लिए संवेदनशील हों; कि जीवन में पैसा ही सब कुछ नहीं है; कि मातृभूमि स्वयं से बड़ी है।
तो ज़ुबीनदा जीवित रह सकते हैं हमारे साथ। सिर्फ नारे लगाना कि – “ज़ुबीनदा, तुम सदैव हमारे दिलों में जीवित रहोगे”, और “जय ज़ुबीनदा” पर्याप्त नहीं होगा। ज़ुबीनदा की रचनाओं, गुणों और पेशेवर जीवन पर शोध कार्य किया जाए। संगीतकार/लेखक आगे आएं और उनकी रचनाओं को संकलित करें (सभी गाने नोटेशन के साथ), उनकी जीवनी लिखें, उसके बाद उन पर फिल्म बनाएं, ताकि वे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनते हुए अमर हो जायें!
ज़ुबीन गर्ग के जीवन से शिक्षा
कुछ गलतियां कभी सुधारी नहीं जा सकतीं। असम के सांस्कृतिक परिदृश्य में ज़ुबीन गर्ग की मृत्यु से बने शून्य को कौन पूर्ण करेगा?
कठोर सत्य है कि सभी को एक दिन इस पृथ्वी को छोड़ कर जाना ही होगा, लेकिन ज़ुबीन गर्ग केवल 52 वर्ष के थे ? वे और अधिक योगदान दे सकते थे… उनके और अनेक सपने थे, जैसा कि ज़ुबीनदा स्वयं कहते थे कि – “मेरा शिखर पर अभी आना बाकी है, मैं और अधिक कार्य करना चाहता हूँ “।
और हमारे पास सीखने के लिए कई सबक हैं। हमें अपनी संपत्ति और विरासतों की संवेदनशीलता से देखभाल करनी चाहिए इससे पहले कि वे हमारी आँखों के सामने समाप्त हों – चाहे वे हमारी जन-संपदा हों, भूमि, अर्थव्यवस्था, संस्कृति या धर्म हो। हमें अपने घनिष्ठ निकट-संबंधियों के प्रति भी सतर्क और जागरूक रहना चाहिए। अगर ज़ुबीन गर्ग का विभिन्न वर्गों द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा था, उनके निजी हितों के लिए – चाहे वित्तीय मामले, व्यक्तिगत या सामाजिक-राजनीतिक लाभ हों, तो उन्हें इन खतरों के प्रति थोड़ा जागरूक तो होना चाहिए था। काश वे अपने जीवन और स्वास्थ्य की थोड़ी सावधानी से देखभाल करते? युवाओं को इससे सबक सीखना चाहिए – कि व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य और अन्य मामलों की देखभाल अच्छे से करनी चाहिए – इस अमूल्य जीवन को हमें यूँ ही गंवाना नहीं चाहिए! और विशेष रूप से जब आप एक लोकप्रिय जन-संपद हों!
जब कुछ वस्तुएँ तथा लोग हमारे जीवन का हिस्सा बन जाते हैं तो हम उन्हें हल्के में लेने लगते हैं, किंतु ज़ुबीनदा, जिनका व्यक्तित्व किसी भी पुरस्कार से बड़ा है, निश्चित रूप से इसका पात्र नहीं था। ब्रह्मांड में सबसे चमकीले तारे बहुत तेज चमकते हैं और जल्दी बुझ जाते हैं। ज़ुबीन गर्ग ऐसे ही एक तारे की तरह थे, जिनका हमारे साथ समय हमारी इच्छा से कम था। एक जीवन में, ज़ुबीन गर्ग ने कई जीवन जीए! हमें उन्हें जीवित रखना है, उनके गुणों और आदर्शों को जीकर।
क्या आप उनकी आत्मा को आकाश में कहीं ध्रुव तारे के पास सुलगते देख पा रहे हैं, असम के युवाओं को प्रेरणा देते हुए, जो एक खुशहाल और बेहतर असम और भारतवर्ष के लिए योगदान दे? उनकी आत्मा और असम के जुबीन-प्रेमी जन-मानस ज़ुबीनदा की अकाल मृत्यु के लिए न्याय की माँग करते हैं। साथ ही, हमें क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर अखंड भारतवर्ष के लिए काम करते रहना होगा, असमिया होने की अनोखी पहचान बनाए रखते हुए। युवाओं को मातृभूमि के लिए काम करते रहना होगा, कानून और लोकतंत्र व्यवस्था को बिगाड़े बिना । यही ज़ुबीन गर्ग को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।