पूनम शर्मा
युवाओं के आंदोलन ने हिला दी सत्ता
नेपाल में हाल ही में हुए छात्र-नेतृत्व वाले ‘जेन-ज़ेड’ आंदोलन ने ओली सरकार की नींव हिला दी। जुलाई 2025 में सीपीएन (यूएमएल) और नेपाली कांग्रेस के संयुक्त समर्थन से बनी सरकार को जनता ने अच्छे शासन और समृद्धि के वादों के साथ चुना था। लेकिन 8-9 सितंबर के शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा और 19 छात्रों सहित 74 मौतों ने सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया।
शांतिपूर्ण आंदोलन से हिंसक मोड़ तक
शुरुआत में नेपाल के युवाओं को आगजनी और तोड़फोड़ के लिए दोषी ठहराया गया। सवाल उठा कि उच्च शिक्षा संस्थानों के वे छात्र, जो भविष्य में सार्वजनिक सेवा में प्रवेश कर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना चाहते थे, वे ही कैसे हिंसा और आगजनी की साज़िश कर सकते हैं? यह समीकरण मेल नहीं खाता।
भ्रष्टाचार और असंतोष की जड़ें
नेपाल लंबे समय से भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जूझ रहा है। नेताओं का असीमित विस्तार, सरकारी तंत्र की नाकामी और युवाओं की आकांक्षाओं की अनदेखी ने असंतोष को जन्म दिया। हाल के महीनों में भ्रष्टाचार कांडों ने अख़बारों की सुर्ख़ियाँ बटोरीं। यही माहौल 8 सितंबर के शांतिपूर्ण छात्र-आंदोलन की पृष्ठभूमि बना।
हिंसा के पीछे कौन?
जेन-ज़ेड आंदोलन में शुरुआत में पूरे देश का समर्थन था। लेकिन कुछ ही घंटों में हालात बिगड़ गए। असंतुष्ट युवाओं के बीच घुसपैठ कर हिंसक गतिविधियों को भड़काने वालों की भूमिका पर सवाल उठने लगे। इतिहास गवाह है कि बीस साल पहले भी कथित जनयुद्ध के नाम पर युवा दिमागों को गुमराह कर ‘बाल सैनिक’ बनाया गया था। अब वही रणनीति ‘जेन-ज़ेड एक्टिविज़्म’ के नाम पर दिखाई दे रही है।
नक़ली क्रांतियों का कारोबार
नेपाल में बार-बार होने वाले छात्र आंदोलनों ने सत्ता परिवर्तन और राजनीतिक सुधार की भूमिका निभाई है। मगर इस बार भीड़ को हिंसक बनाकर वास्तविक मुद्दों को धुंधला करने और ‘शहीद’ बनाने की साज़िश रची गई। यह न केवल नेपाल की युवा आकांक्षाओं के साथ अन्याय है बल्कि देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ भी।
नेपाल के आम नागरिक की पीड़ा
नेपाल की आर्थिक धारा ठप हो गई है। व्यवसाय बंद, पर्यटन प्रभावित और शिक्षा व्यवस्था चरमरा गई है। अभिजात वर्ग के लिए यह बस इतिहास की एक और घटना है, मगर आम नेपाली के लिए यह दशकों की बर्बादी साबित हो सकती है।
जेन-ज़ेड और अभिभावकों के लिए चेतावनी
आज नेपाल का युवा भ्रष्टाचार, गैर-कार्यशील राजनीतिक प्रणाली और वैचारिक बंधनों का शिकार है। अभिभावक भी बच्चों को ‘वीयूसीए’ (Volatility, Uncertainty, Complexity, Ambiguity) दुनिया के लिए तैयार करने में असफल रहे हैं। समय आ गया है कि युवा और उनके अभिभावक मिलकर सच्चाई स्वीकारें और किसी भी गुमराह करने वाले समूह से सतर्क रहें।
आगे की राह – तीन महत्वपूर्ण बिंदु
भ्रष्टाचार एक दिन में समाप्त नहीं होगा – समाज में दशकों से उसकी स्वीकृति ने नेताओं को ताक़त दी है।
अनुभवी और साख वाले नेता – अंतरिम सरकार को चाहिए कि ऐसे नेताओं को सहयोग में लाए जिनकी प्रतिष्ठा साफ हो।
खुला संवाद – युवा और अभिभावकों के बीच पारदर्शी संवाद ताकि उन्हें गुमराह होने से बचाया जा सके।
अंतरिम सरकार और भारत की भूमिका
नेपाल की अंतरिम सरकार का मुख्य फोकस शांति और स्थिरता बहाल करना है। इस माहौल में चुनाव कराना जल्दबाज़ी होगी। भारत, जो नेपाल का सभ्यतागत मित्र है, संकट में ‘फ़र्स्ट रिस्पॉन्डर’ की भूमिका निभा सकता है। प्रधानमंत्री स्तर पर संयुक्त कार्ययोजना और पारदर्शी परिणाम तय करने की ज़रूरत है।
नई राजनीतिक चेतना की शुरुआत
8 सितंबर का जेन-ज़ेड आंदोलन नेपाल के इतिहास में वैध विरोध आंदोलन के रूप में याद किया जाएगा। इसने वर्षों से सत्ता में जमे नेताओं के अहंकार को चुनौती दी है। अब ज़रूरत है कि नेपाल इस त्रासदी को चेतावनी की तरह ले, नक़ली क्रांतियों से सावधान रहे और युवाओं को सकारात्मक राष्ट्रनिर्माण की दिशा में आगे बढ़ाए।