धर्मांतरण का संकट और घर वापसी : ओडिशा से उत्तर-पूर्व व पंजाब तक

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पूनम शर्मा
ओडिशा के केओंझार ज़िले के घासिपुरा ब्लॉक में हाल ही में छह मुण्डा और संथाल आदिवासी परिवारों के 40 सदस्यों ने ईसाई धर्म छोड़कर सनातन  में वापसी की। यह घटना सिर्फ़ एक धार्मिक बदलाव नहीं, बल्कि भारत के कई हिस्सों में चल रहे धर्मांतरण और उसके विरुद्ध उठते प्रतिरोध की गूँज  है।

ओडिशा में घर वापसी की गूँज

स्थानीय सूत्रों के अनुसार इन आदिवासी परिवारों ने समाज और संस्कृति से जुड़ाव के चलते घर वापसी की। उनके अनुसार ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों ने लंबे समय से आर्थिक और सामाजिक तौर पर कमज़ोर वर्गों को निशाना बनाया। लेकिन अब धीरे-धीरे आदिवासी समाज अपने मूल धर्म और परंपराओं की ओर लौट रहा है।

धर्मांतरण का उत्तर-पूर्व भारत में स्वरूप

उत्तर-पूर्व भारत, विशेषकर नागालैंड, मिज़ोरम, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में दशकों से मिशनरी गतिविधियां सक्रिय हैं। यहां ईसाई धर्म की आबादी कई जगह बहुमत तक पहुंच चुकी है। कई मामलों में स्थानीय परंपराओं को तोड़ा-मरोड़ा गया, जिससे अलगाववादी सोच को भी बल मिला। यह स्थिति राष्ट्रीय एकता के लिए चुनौती बन चुकी है।

पंजाब में धर्मांतरण का उभार

पंजाब में भी हाल के वर्षों में ईसाई धर्मांतरण में वृद्धि देखी गई है। दलित और मज़दूर वर्गों को लालच या प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन कराया जाता है। कई स्थानों पर अवैध चर्च बनते हैं और स्थानीय धार्मिक-सामाजिक ढांचे पर दबाव बढ़ता है। पंजाब का यह बदलता धार्मिक परिदृश्य समाजिक सामंजस्य को प्रभावित कर रहा है।

धर्मांतरण का पैटर्न और परिणाम

इन तीनों क्षेत्रों—ओडिशा, उत्तर-पूर्व और पंजाब—में धर्मांतरण का पैटर्न लगभग समान है:

आर्थिक व शैक्षिक सहायता का वादा

स्वास्थ्य व नौकरी की सुविधाओं के नाम पर प्रलोभन

स्थानीय संस्कृति व परंपरा को “पिछड़ा” बताकर नकारना

समाज में विभाजन और अलगाव की भावना पैदा करना

इस प्रक्रिया के चलते न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक असंतुलन भी पैदा हुआ है। आदिवासी या स्थानीय समुदाय अपनी मौलिक पहचान खोने लगते हैं और बाहरी प्रभावों के तहत नई राजनीतिक मांगें या अलगाववादी विचारधाराएं जन्म लेती हैं।

घर वापसी आंदोलन क्यों ज़रूरी

घर वापसी सिर्फ़ धार्मिक आस्था की पुनर्स्थापना नहीं बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक पुनरुद्धार भी है। यह उन समुदायों के लिए पहचान की वापसी है जिन्हें बरसों से उनकी जड़ों से काटा गया। ओडिशा की घटना ने साबित किया है कि जब लोगों को सही जानकारी और सामाजिक समर्थन मिलता है तो वे अपनी मूल परंपरा में लौटने को तैयार होते हैं।

सरकार और समाज की भूमिका

भारत के संविधान ने धार्मिक स्वतंत्रता दी है, लेकिन ज़बरदस्ती या लालच देकर धर्मांतरण करना गैरक़ानूनी है। कई राज्यों ने धर्मांतरण-विरोधी कानून बनाए हैं। आवश्यकता है कि इन कानूनों को सख़्ती से लागू किया जाए।
साथ ही समाज को भी अपनी परंपराओं, संस्कृति और आध्यात्मिक धरोहर के प्रति सजग रहना होगा। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार जैसी बुनियादी ज़रूरतें पूरी कर समाज को आत्मनिर्भर बनाने से धर्मांतरण की प्रवृत्ति को रोका जा सकता है।

निष्कर्ष

ओडिशा के केओंझार की घर वापसी घटना संकेत देती है कि भारत के पारंपरिक समाज में अपनी जड़ों को लेकर एक नई चेतना जाग रही है। उत्तर-पूर्व और पंजाब में भी अगर समाज और सरकार मिलकर रणनीतिक प्रयास करें तो धर्मांतरण की इस चुनौती को काबू किया जा सकता है। धर्मांतरण के बजाय सांस्कृतिक समावेश और मूल परंपरा की ओर लौटना ही भारत के लिए स्थायी समाधान है।

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