जर्मनी में हिंदू धर्म का उदय: ऐतिहासिक सम्मेलन से सनातन चेतना का पुनर्जागरण

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पूनम शर्मा
जर्मनी के फ्रैंकफर्ट शहर ने 30–31 अगस्त 2025 को एक ऐसा दृश्य देखा जिसने यूरोप में बसे हिंदू समाज को नई ऊर्जा और दिशा दी। 33 साल बाद आयोजित हुआ यह पहला बड़ा हिंदू सम्मेलन न केवल सांस्कृतिक पहचान का उत्सव था, बल्कि यह सनातन मूल्यों और वैश्विक स्तर पर हिंदू धर्म के बढ़ते प्रभाव का प्रतीक भी बना। इस दो दिवसीय कार्यक्रम में जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों से आए 400 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया। सम्मेलन का मुख्य संदेश था – “सनातन धर्म और एकजुटता”।

यूरोप में हिंदू धर्म का बढ़ता प्रभाव

पिछले कुछ दशकों में यूरोप में हिंदू धर्म की लोकप्रियता लगातार बढ़ी है। योग, ध्यान, आयुर्वेद, शाकाहार और पर्यावरणीय दृष्टिकोण जैसे तत्व यूरोपीय जीवनशैली में धीरे-धीरे शामिल हो चुके हैं। जर्मनी, ब्रिटेन, नीदरलैंड और फ्रांस में हजारों प्रवासी भारतीय और नेपालियों ने मंदिर, सांस्कृतिक संस्थान और सामुदायिक संगठन स्थापित किए हैं।
फ्रैंकफर्ट सम्मेलन में विद्वानों ने बताया कि जर्मनी में हिंदू मंदिरों की संख्या 50 से अधिक हो चुकी है, जबकि 1990 के दशक में यह केवल मुट्ठी भर थी।

फ्रैंकफर्ट सम्मेलन के प्रमुख बिंदु

सम्मेलन का उद्घाटन मंत्रोच्चारण और वेदपाठ के साथ हुआ। इसमें धार्मिक विद्वान, सामाजिक कार्यकर्ता, प्रवासी भारतीय नेता और जर्मन शोधकर्ता शामिल हुए।
मुख्य विषय थे –

यूरोप में हिंदू धर्म के प्रसार की चुनौतियाँ और अवसर।

दूसरी पीढ़ी के प्रवासी युवाओं में सनातन मूल्यों को सुदृढ़ करना।

मीडिया और अकादमिक जगत में हिंदू धर्म की सकारात्मक छवि बनाना।

पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास में वैदिक दृष्टिकोण।

प्रतिभागियों ने यूरोपीय समाज में बढ़ते धार्मिक असंतुलन और हिंसक चरमपंथ के बीच हिंदू धर्म की अहिंसक और समन्वयकारी भूमिका पर बल दिया।

सनातन संस्कृति और आधुनिकता का संगम

जर्मनी में बसे भारतीय समुदाय ने सम्मेलन के दौरान योग, भरतनाट्यम, कथक और वेदांत पर कार्यशालाएँ आयोजित कीं। जर्मन नागरिकों ने भी इन सत्रों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। यह इस बात का संकेत है कि हिंदू संस्कृति केवल प्रवासियों तक सीमित नहीं रही बल्कि स्थानीय लोगों में भी रुचि पैदा कर रही है।
सम्मेलन में प्रदर्शनी और पुस्तक मेले का भी आयोजन हुआ, जहाँ गीता, उपनिषद, रामायण और महाभारत के जर्मन अनुवाद उपलब्ध कराए गए।

जर्मनी के बौद्धिक जगत में सनातन की गूंज

जर्मनी का भारतीय दर्शन से जुड़ाव नया नहीं है। 19वीं सदी में मैक्स मूलर ने वेदों का जर्मन और अंग्रेज़ी अनुवाद किया था। 20वीं सदी में भी कई जर्मन दार्शनिकों ने उपनिषदों और भगवद्गीता पर काम किया।
फ्रैंकफर्ट सम्मेलन ने इस ऐतिहासिक धारा को फिर से जीवंत किया। कई जर्मन विश्वविद्यालय अब “इंडोलॉजी” और “हिंदू स्टडीज़” को फिर से सक्रिय कर रहे हैं।

विदेश नीति और सांस्कृतिक कूटनीति

विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसे आयोजन भारत-जर्मनी संबंधों में सांस्कृतिक गहराई जोड़ते हैं। भारत सरकार के प्रवासी भारतीय और संस्कृति मंत्रालय भी इस तरह के आयोजनों को प्रोत्साहन दे रहे हैं।
सम्मेलन में उपस्थित भारतीय राजनयिकों ने कहा कि हिंदू समाज यूरोप में “सॉफ्ट पावर” की भूमिका निभा सकता है। इससे न केवल भारतीय मूल के लोगों की पहचान मजबूत होगी, बल्कि भारतीय मूल्यों की वैश्विक स्वीकार्यता भी बढ़ेगी।

महिला और युवा नेतृत्व की नई भूमिका

फ्रैंकफर्ट सम्मेलन में महिलाओं और युवाओं की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। विशेष रूप से दूसरी और तीसरी पीढ़ी के प्रवासी भारतीय युवाओं ने कार्यशालाओं में डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर हिंदू धर्म की सकारात्मक छवि बनाने, गलत सूचनाओं को चुनौती देने और सोशल मीडिया कैम्पेन चलाने पर चर्चा की।
महिला प्रतिनिधियों ने वैदिक परंपराओं में नारी के स्थान और आधुनिक समाज में उनकी भूमिका पर महत्वपूर्ण व्याख्यान दिए। चुनौतियाँ भी कम नहीं

यूरोप में हिंदू धर्म के सामने कुछ चुनौतियाँ भी हैं—

मंदिर निर्माण में कानूनी जटिलताएँ।

हिंदू विरोधी नैरेटिव या गलत जानकारी।

युवाओं का अपनी जड़ों से दूर होना।

सम्मेलन ने इन मुद्दों पर ठोस समाधान सुझाए, जैसे कि स्थानीय प्रशासन के साथ समन्वय, सामुदायिक शिक्षा कार्यक्रम और डिजिटल कंटेंट निर्माण।

निष्कर्ष: सनातन चेतना का वैश्विक पुनर्जागरण

फ्रैंकफर्ट में हुआ हिंदू सम्मेलन यह दिखाता है कि हिंदू धर्म अब केवल भारत की सीमा तक सीमित नहीं है, बल्कि वह वैश्विक मंच पर भी अपनी जगह बना रहा है। यह सम्मेलन सिर्फ़ प्रवासी भारतीयों का आयोजन नहीं था, बल्कि यह एक संकेत था कि सनातन संस्कृति अपनी मूल आत्मा को बचाते हुए आधुनिक दुनिया में नया स्थान पा रही है। जर्मनी में हिंदू धर्म का उदय न केवल सांस्कृतिक बहुलता को मजबूती देगा, बल्कि यूरोप को अहिंसा, सहिष्णुता और सतत विकास जैसे मूल्यों की दिशा में प्रेरित करेगा। आने वाले वर्षों में ऐसे और सम्मेलन यूरोप भर में होंगे, जो भारत और हिंदू समाज की वैश्विक पहचान को और मजबूत करेंगे।

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