ममता बनर्जी ,भारतीय सेना पर विवाद: पश्चिम बंगाल ‘संप्रभु राज्य’ की राह पर ?

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पूनम शर्मा
पश्चिम बंगाल की राजनीति में पिछले कुछ वर्षों से लगातार एक नई प्रवृत्ति दिख रही है — राज्य और केंद्र के बीच टकराव, सेना पर सवाल और अलग पहचान की राजनीति। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने बयानों और नीतियों के कारण केंद्र सरकार और भारतीय सेना के साथ कई बार सीधा संघर्ष खड़ा किया है। हाल के दिनों में उनकी पार्टी के नेताओं द्वारा भारतीय सेना को लेकर दिए गए विवादास्पद बयान और उनके रवैये ने यह सवाल और गहरा कर दिया है कि क्या पश्चिम बंगाल एक ‘संप्रभु राज्य’ की ओर बढ़ रहा है या यह केवल राजनीतिक रणनीति है।

भारतीय सेना पर बयान और विवाद

सबसे बड़ा विवाद तब खड़ा हुआ जब पश्चिम बंगाल विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस के मंत्री ब्रत्य बसु ने 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम का उदाहरण देते हुए भारतीय सेना की तुलना पाकिस्तानी सेना से कर दी। यह बयान विधानसभा की कार्यवाही में दर्ज है। आलोचकों का कहना है कि यह न केवल भारतीय सेना का अपमान है, बल्कि देश की अखंडता और उसके गौरव को भी ठेस पहुँचाता है।

ममता बनर्जी ने भी कई मौकों पर सेना की गतिविधियों को लेकर आपत्ति जताई है। एक घटना में जब भारतीय सेना कोलकाता के टोल प्लाज़ा पर डाटा एकत्र कर रही थी, तो ममता बनर्जी ने इसे ‘राजनीतिक साज़िश’ कहकर सवाल उठाए। सेना के साथ इस तरह का सार्वजनिक टकराव पहले कभी किसी राज्य सरकार के साथ नहीं देखा गया था।

अलग पहचान की राजनीति

पिछले 15 वर्षों के शासन में ममता बनर्जी ने बंगाल में एक अलग सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान बनाने पर जोर दिया है।

“जय बांग्ला” जैसे नारे को प्रोत्साहन दिया गया, जिसे आलोचक बांग्लादेश के राष्ट्रीय नारे से जोड़ते हैं।

राज्य के लिए अलग गान और प्रतीक चिह्न जैसी पहलें की गईं।

राज्य पुलिस को अपने निजी सुरक्षा बल की तरह इस्तेमाल करने के आरोप भी लगे।

इन कदमों को विपक्ष बंगाल को धीरे-धीरे एक ‘संप्रभु’ छवि देने की कोशिश मानता है, जबकि तृणमूल कांग्रेस इसे बंगाल की सांस्कृतिक अस्मिता बताती है।

सेना के साथ टकराव के हालिया मामले

तृणमूल कांग्रेस ने भारतीय सेना की अनुमति से एक कार्यक्रम आयोजित किया था। अनुमति की अवधि समाप्त होने के बाद भी मंच और पंडाल नहीं हटाए गए। इसके बाद सेना ने खुद पंडाल हटाया। इस पर ममता बनर्जी घटनास्थल पर पहुँचीं और सेना के अधिकारियों से बहस की। इसके बाद विधानसभा में सेना के खिलाफ बयान दिए गए।

यह घटना दिखाती है कि राज्य सरकार और सेना के बीच विश्वास का संकट गहरा गया है। अगर किसी राज्य में सेना को ही सार्वजनिक रूप से अपमानित किया जाने लगे तो यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी चिंता का विषय है।

विदेशी प्रभाव और धार्मिक ध्रुवीकरण

विपक्ष और कुछ विश्लेषकों का आरोप है कि ममता बनर्जी की नीतियाँ पश्चिम बंगाल को “इस्लामीकृत” करने की ओर ले जा रही हैं और वह बाहरी ताकतों को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल कर रही हैं। जिहादी नेटवर्क, अवैध प्रवासियों और सीमावर्ती इलाकों में बढ़ती तस्करी पर लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं। यह भी आरोप है कि राज्य पुलिस और प्रशासन इन मुद्दों पर सख्ती नहीं दिखाता।

अगर किसी राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति इतनी कमजोर हो जाए कि सेना को भी निशाना बनाया जाए, तो यह केवल राजनीतिक टकराव नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला बन जाता है।

केंद्र सरकार की भूमिका

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह कई बार स्पष्ट कर चुके हैं कि भारतीय सेना पर किसी भी प्रकार का सवाल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। लेकिन पश्चिम बंगाल के मामलों में केंद्र सरकार ने अब तक सीधे हस्तक्षेप से परहेज किया है। आलोचक कहते हैं कि यह नरमी ममता बनर्जी को और साहस दे रही है।

संविधान के अनुच्छेद 355 और 356 के तहत केंद्र सरकार के पास राज्यों में कानून-व्यवस्था बिगड़ने पर कार्रवाई करने का अधिकार है। लेकिन यह कदम अत्यंत गंभीर और संवेदनशील होता है।

राजनीतिक रणनीति या राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न?

यह भी संभव है कि ममता बनर्जी जानबूझकर केंद्र के साथ टकराव की राजनीति कर रही हों ताकि बंगाल में उन्हें “दिल्ली के खिलाफ बंगाल की आवाज़” के रूप में पेश किया जा सके। यह उनकी चुनावी रणनीति का हिस्सा हो सकता है। लेकिन सेना पर सवाल और उसकी तुलना पाकिस्तान जैसी ताकतों से करना किसी भी लोकतांत्रिक राजनीति के लिए खतरनाक संकेत हैं।

आगे का रास्ता

केंद्र और राज्य के बीच संवाद बढ़े: सेना और राज्य सरकार के बीच किसी भी विवाद को तुरंत सुलझाने के लिए स्पष्ट तंत्र बने।

राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि: राजनीतिक लाभ के लिए सेना या सुरक्षा बलों को निशाना बनाने की प्रवृत्ति पर रोक लगे।

जनता की जागरूकता: बंगाल की जनता को समझना होगा कि राज्य और देश की सुरक्षा में सेना की भूमिका सर्वोच्च है।

संविधान के दायरे में कार्रवाई: यदि राज्य सरकार बार-बार राष्ट्रीय सुरक्षा को चुनौती देती है, तो केंद्र को कानूनी और संवैधानिक विकल्पों पर विचार करना चाहिए।

निष्कर्ष

पश्चिम बंगाल की मौजूदा परिस्थितियाँ केवल राजनीतिक खींचतान नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और संवैधानिक मूल्यों की परीक्षा भी हैं। ममता बनर्जी और उनकी सरकार को समझना चाहिए कि भारतीय सेना पर टिप्पणी और अलग पहचान की राजनीति देश की एकता के लिए घातक है। वहीं केंद्र सरकार को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि सेना और देश की गरिमा से खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ संवैधानिक दायरे में रहते हुए सख्त कदम उठाए जाएँ।

भारत की ताकत उसकी विविधता और लोकतांत्रिक संस्थाओं में है। अगर इन संस्थाओं को कमजोर किया जाएगा तो यह न केवल एक राज्य बल्कि पूरे देश के लिए खतरे की घंटी होगी।

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