अब महिलाओं को स्वयं लेना होगा अपना हक: ज्योतिरादित्य सिंधिया
- केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने महिलाओं को उनका हक खुद लेने का आह्वान किया।
- उन्होंने ‘प्रधानपति’ और ‘सरपंचपति’ जैसी परंपराओं को खत्म करने पर जोर दिया।
- यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है और महिला सशक्तिकरण के लिए एक मजबूत संदेश बन गया है।
समग्र समाचार सेवा
अशोकनगर, 12 सितंबर 2025 – केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने आज अशोकनगर में आयोजित एक कार्यक्रम में महिला सशक्तिकरण पर एक बेहद मजबूत और सीधा संदेश दिया है। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि देश में “प्रधानपति, सरपंचपति और अध्यक्षपति” जैसी परंपराओं को खत्म किया जाए और महिलाएं अपना असली हक खुद अपने हाथों में लें। सिंधिया का यह बयान तुरंत ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है और लोग इसे महिलाओं को उनके राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों के प्रति जागरूक करने की दिशा में एक बड़ा कदम मान रहे हैं।
सिंधिया के इस बयान ने देश की उन अनगिनत महिला प्रतिनिधियों की स्थिति को उजागर किया है, जो भले ही संवैधानिक पदों पर हों, लेकिन उनके अधिकारों का इस्तेमाल उनके पति या परिवार के अन्य पुरुष सदस्य करते हैं। सिंधिया ने साफ शब्दों में कहा कि महिला आरक्षण का उद्देश्य केवल सीटों को भरना नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि महिलाएं वास्तव में निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल हों।
‘पति’ परंपरा: लोकतंत्र का उपहास
भारत में पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण एक ऐतिहासिक कदम था, जिसका उद्देश्य ग्रामीण लोकतंत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना था। लेकिन, अक्सर यह देखा गया है कि जहां महिला सरपंच, जिला पंचायत सदस्य या नगर निगम अध्यक्ष बनती हैं, वहां उनके पति ही असल में सारी शक्तियां संभालते हैं। वे ही बैठकों में जाते हैं, फैसले लेते हैं और सरकार से संवाद स्थापित करते हैं। इस अनौपचारिक सत्ता संरचना को ही बोलचाल की भाषा में ‘प्रधानपति’ या ‘सरपंचपति’ कहा जाता है।
केंद्रीय मंत्री सिंधिया ने अपने बयान से सीधे तौर पर इस समस्या पर प्रहार किया है। उनका मानना है कि जब तक यह ‘पति’ परंपरा चलती रहेगी, तब तक महिला आरक्षण अपने वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाएगा। उन्होंने महिलाओं से आग्रह किया कि वे आगे बढ़कर खुद नेतृत्व करें और अपने अधिकारों के लिए लड़ें। उन्होंने कहा कि महिलाओं में नेतृत्व की क्षमता और निर्णय लेने की शक्ति स्वाभाविक रूप से होती है, और उन्हें इसे पहचानना होगा।
सोशल मीडिया पर वायरल हुआ संदेश
सिंधिया का यह बयान सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर तेजी से फैल रहा है। ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर लोग इस बयान की तारीफ कर रहे हैं। कई यूजर्स ने लिखा कि यह सिर्फ एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि एक सामाजिक क्रांति का आह्वान है। यह पहली बार है जब किसी बड़े नेता ने इतनी मुखरता से इस संवेदनशील मुद्दे पर बात की है। सिंधिया के इस बयान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ और महिला आरक्षण विधेयक जैसी पहलों से जोड़कर देखा जा रहा है।
इस तरह के बयान न केवल राजनीतिक बहस को एक नई दिशा देते हैं, बल्कि जमीनी स्तर पर महिलाओं के बीच जागरूकता भी बढ़ाते हैं। इससे महिलाएं सशक्त महसूस कर सकती हैं और खुद को केवल एक ‘रबर स्टैंप’ के रूप में देखने के बजाय वास्तविक नेता के रूप में देखना शुरू कर सकती हैं। उम्मीद है कि सिंधिया का यह संदेश ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में महिलाओं को प्रेरित करेगा कि वे अपनी भूमिका को पूरी जिम्मेदारी और आत्मविश्वास के साथ निभाएं, और अपने नाम के साथ जुड़े ‘पति’ के प्रभाव से मुक्त होकर अपनी पहचान बनाएं।
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