ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत – ईरान, चीन ,मध्य एशिया में रणनीतिक बढ़त

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पूनम शर्मा
भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति लगातार बहुस्तरीय और दूरगामी होती जा रही है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल की हाल की कूटनीतिक सक्रियता इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। पिछले कुछ महीनों में उन्होंने ईरान, कजाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों के साथ गहन बातचीत और रणनीतिक साझेदारियों की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। यह केवल सुरक्षा नहीं बल्कि आर्थिक और भू-राजनीतिक दृष्टि से भी भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

ईरान के साथ बढ़ता सहयोग

अजीत डोभाल की ईरान यात्रा केवल एक शिष्टाचार भेंट नहीं थी। यह बैठक भारत-ईरान के बीच आर्थिक, सामरिक और आधारभूत ढांचे को मजबूत करने की दिशा में उठाया गया बड़ा कदम थी। छाबहार बंदरगाह (Chabahar Port) की क्षमता को सात से आठ गुना तक बढ़ाने की योजना इसका बड़ा उदाहरण है। इस बंदरगाह को विकसित कर भारत पाकिस्तान को बाइपास कर सीधे मध्य एशिया और यूरोप से जुड़ सकता है। इससे न केवल भारत की व्यापारिक क्षमता बढ़ेगी बल्कि ऊर्जा सुरक्षा और लॉजिस्टिक्स लागत में भी बड़ी कमी आएगी।

छाबहार से ज़ाहिदान तक रेलवे लाइन का निर्माण कार्य तेज़ी से चल रहा है, जो दिसंबर तक पूरा हो सकता है। यह रेलवे लाइन भारत के सामान को सीधे अफगानिस्तान, कजाकिस्तान और अन्य मध्य एशियाई देशों तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाएगी। यह पहल पाकिस्तान को दरकिनार कर भारत के लिए एक वैकल्पिक कॉरिडोर तैयार करेगी।

चीन पर बढ़ता दबाव

ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने चीन को स्पष्ट संकेत दे दिया है कि अगर वह क्षेत्रीय स्थिरता चाहता है तो पाकिस्तान को दी जाने वाली सहायता रोकनी होगी। SCO (शंघाई सहयोग संगठन) के इर्द-गिर्द बनते नए समीकरणों में भारत की यह शर्त और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।

भारत की तीन प्रमुख शर्तें चीन के सामने रखी गई हैं –

पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक और सामरिक मदद बंद करना।

भारत-चीन सीमा पर बने अवैध या विवादित इंफ्रास्ट्रक्चर को हटाना और व्यापारिक रास्तों को सामान्य करना।

पाकिस्तान में निवेश कम करना और अफगानिस्तान व भारत जैसे सुरक्षित और रिटर्न देने वाले बाजारों की ओर रुख करना।

सूत्रों के अनुसार चीन पहले ही संकेत दे चुका है कि वह पाकिस्तान के साथ अपने कॉरिडोर प्रोजेक्ट (CPEC) को सीमित करने को तैयार है। चीन ने पाकिस्तान में लगभग 50 मिलियन डॉलर के प्रोजेक्ट शुरू किए थे, जिनमें से 25 मिलियन डॉलर निवेश हो चुका है, लेकिन अपेक्षित रिटर्न नहीं मिल रहा। भारत ने सुझाव दिया है कि बाकी 25 मिलियन डॉलर अफगानिस्तान या भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में निवेश करें जिससे रिटर्न तेज़ी से मिलने लगेगा।

मध्य एशिया में भारत की पैठ

भारत, ईरान और कजाकिस्तान के बीच बन रहा यह नया आर्थिक गलियारा मध्य एशिया में भारत की मौजूदगी को अभूतपूर्व रूप से बढ़ा देगा। लंबे समय से भारत को मध्य एशिया तक पहुंचने में पाकिस्तान की बाधाओं का सामना करना पड़ता था। लेकिन अब छाबहार पोर्ट और रेल नेटवर्क के माध्यम से भारत बिना पाकिस्तान से गुज़रे इन देशों तक सीधी पहुंच बना रहा है।

मध्य एशिया के देश भी पाकिस्तान से दूरी बनाकर भारत की ओर झुक रहे हैं। कजाकिस्तान सहित कई देशों ने अब भारत को एक भरोसेमंद साझेदार के रूप में देखना शुरू कर दिया है। इससे ऊर्जा, खनिज और कनेक्टिविटी के क्षेत्र में नए अवसर पैदा होंगे।

SCO में बदलते समीकरण

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में भारत की सक्रियता और ईरान की भागीदारी ने इस संगठन के स्वरूप को भी बदलना शुरू कर दिया है। जहां पहले पाकिस्तान और चीन का दबदबा था, वहीं अब भारत-ईरान-कजाकिस्तान की तिकड़ी एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में उभर रही है। यह केवल रणनीतिक दबाव नहीं बल्कि आर्थिक साझेदारी के नए अवसर भी खोल रहा है।

भविष्य की दिशा

अजीत डोभाल की कूटनीतिक पहल दिखाती है कि भारत अब केवल प्रतिक्रियात्मक राजनीति नहीं कर रहा, बल्कि आक्रामक कूटनीति के जरिए अपने हितों को आगे बढ़ा रहा है। छाबहार पोर्ट का विस्तार, ज़ाहिदान रेलवे लाइन, मध्य एशिया में बढ़ते संबंध और चीन पर दबाव – ये सभी पहल भारत के भू-राजनीतिक प्रभाव को व्यापक बना रही हैं।

भारत के लिए यह भी महत्वपूर्ण है कि वह इन प्रोजेक्ट्स को समय पर पूरा करे और उन्हें दीर्घकालिक रणनीति से जोड़े। इससे भारत केवल एशिया में ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर भी एक प्रमुख ट्रेड और स्ट्रेटेजिक हब के रूप में स्थापित होगा।

निष्कर्ष

ईरान, कजाकिस्तान और अफगानिस्तान में वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण और चीन पर दबाव डालकर भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि 21वीं सदी में एशिया की राजनीति अब नई दिशा में बढ़ रही है। पाकिस्तान को दरकिनार कर भारत का यह नया गलियारा न केवल व्यापार बल्कि सामरिक दृष्टि से भी दक्षिण एशिया का संतुलन बदल सकता है।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद की यह कूटनीतिक सक्रियता भारत को मध्य एशिया, पश्चिम एशिया और वैश्विक मंच पर एक निर्णायक शक्ति बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है।

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