- बसुकेदारमें राहत कार्य: रुद्रप्रयाग के बसुकेदार क्षेत्र में 48 स्वयंसेवक आपदा पीड़ितों की मदद कर रहे हैं।
- भावनात्मक समर्थन: स्वयंसेवक प्रभावित परिवारों से मिलकर उनका दर्द बांट रहे हैं और उन्हें मानसिक रूप से मजबूत कर रहे हैं।
- आवश्यक सहायता: टीमें प्रभावित क्षेत्रों में परिवारों की पहचान कर रही हैं ताकि उन्हें कपड़े, भोजन और अन्य जरूरी चीजें मुहैया कराई जा सकें।
समग्र समाचार सेवा
देहरादून, 7 सितंबर 2025: उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा के बाद, राहत और बचाव कार्य तेजी से जारी हैं। इसी कड़ी में, 48 स्वयंसेवकों की 6 टोलियां रुद्रप्रयाग जनपद के बसुकेदारक्षेत्र में आपदा प्रभावितों की मदद के लिए लगातार काम कर रही हैं। ये स्वयंसेवक न केवल प्रभावित गांवों तक पहुंच रहे हैं, बल्कि पीड़ितों का दर्द साझा कर उन्हें मानसिक और भावनात्मक संबल भी प्रदान कर रहे हैं। उनका मुख्य उद्देश्य प्रभावित परिवारों को आवश्यक सहायता पहुंचाना और उन्हें दोबारा जीवन की शुरुआत करने में मदद करना है।
इन स्वयंसेवकों ने प्रभावित क्षेत्रों में पहुंचकर कई मार्मिक कहानियाँ सुनीं। एक परिवार ने बताया कि कैसे उन्हें रात 3 बजे, एक दो महीने के बच्चे को लेकर, मौत से जूझना पड़ा और वे रात भर बारिश में भीगते रहे। इसी तरह, एक डेढ़ महीने का बच्चा जिसकी माँ का एक महीने पहले देहांत हो गया था, उसके पिता जितेंद्र के दर्द को देखकर स्वयंसेवकों का हृदय भर आया। ऐसे परिवारों के लिए फिर से जीवन की शुरुआत करना एक बड़ी चुनौती है, और स्वयंसेवक इसी दिशा में अपना पहला प्रयास कर रहे हैं।
प्रभावित क्षेत्रों में लोगों के पास न तो बदलने के लिए कपड़े हैं, न पहनने के लिए चप्पलें और न ही थकान उतारने के लिए एक कप चाय की व्यवस्था। इस कठिन समय में, स्वयंसेवकों का सहयोग इन परिवारों के लिए एक बड़ा सहारा साबित हो रहा है।
स्वयंसेवकों की टीमों ने बसुकेदारक्षेत्र के जोला, पाटियों, उछोला, तालजामड और बगड़ क्षेत्र (वार्ड नंबर 6) का दौरा किया। उन्होंने 15 परिवारों को चिह्नित किया, जिनमें से 6 परिवार ऐसे हैं जिनका सब कुछ खत्म हो चुका है, सिर्फ उनकी जान बची है। इन अति प्रभावित परिवारों की पीड़ा को समझा गया। इसके अलावा, 10 अन्य परिवार भी हैं जो आपदा से अत्यधिक प्रभावित हुए हैं।
इसी तरह, स्वयंसेवकों की दो टीमों ने जोला गांव में 11 परिवारों की पहचान की, जबकि अन्य टीमों ने पाटियों, बड़ैत और डूंगर के कुछ परिवारों को भी सहायता के लिए चयनित किया। एक और टोली ने बधानीताल से भुनाल गांव, बक्सिर, खोड डांगी और मथ्या गांव तक संपर्क किया। इन इलाकों में लोग सुरक्षित तो हैं, लेकिन संपर्क टूट जाने के कारण उन्हें बाहर से मदद नहीं मिल पा रही है। स्वयंसेवकों ने वहां के लोगों से भी इस संकट से उबरने के लिए एकजुट होकर काम करने का आग्रह किया।
ये 48 स्वयंसेवक पिछले कई दिनों से निस्वार्थ भाव से समाज के दर्द को अपना दर्द मानकर सेवा कार्य में जुटे हैं। उन्होंने यह संकल्प लिया है कि जब तक प्रभावित परिवार अपने पैरों पर आत्मविश्वास के साथ खड़े नहीं हो जाते, तब तक वे हर संभव राहत और सहायता पहुंचाते रहेंगे। उनका यह प्रयास दिखाता है कि संकट के समय मानवता ही सबसे बड़ा सहारा है।