- ऐतिहासिक गणेशोत्सव: बैंकॉक में विश्व हिंदू परिषद संघ (थाईलैंड) ने अपना 18वां वार्षिक गणेशोत्सव भव्यता के साथ मनाया।
- पुणेरी ढोल का आकर्षण: पहली बार, पुणे के श्रीमंत दगडूशेठ फाउंडेशन की 15 सदस्यीय ढोल-ताशा मंडली ने ‘नादब्रह्म’ ढोल बजाकर माहौल को भक्तिमय बना दिया।
- सांस्कृतिक एकता का प्रतीक: इस उत्सव ने थाईलैंड में भारतीय समुदाय को एकजुट किया और भारतीय संस्कृति के संरक्षण को बढ़ावा दिया।
समग्र समाचार सेवा
बैंकॉक, 7 सितंबर 2025: थाईलैंड में सबसे बड़े और भव्य विश्व हिंदू परिषद संघ (थाईलैंड) द्वारा आयोजित 18वां वार्षिक गणेशोत्सव इस साल बेहद धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया गया। बैंकॉक के निमिबुत्र स्टेडियम में आयोजित इस उत्सव में हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लिया। यह महोत्सव भारत और थाईलैंड के बीच सांस्कृतिक पुल का प्रतीक है, जो भक्ति, कला और एकता का एक अनूठा संगम प्रस्तुत करता है।

इस गणेशोत्सव का मुख्य आकर्षण 10 फुट ऊंची गणेश प्रतिमा थी, जिसे विशेष रूप से भारत के कुशल कलाकारों द्वारा विदेश में बनाया गया था। प्रतिमा की कलात्मकता और शिल्प कौशल ने उपस्थित सभी भक्तों का मन मोह लिया। यह प्रतिमा सिर्फ एक मूर्ति नहीं, बल्कि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करती है।
इस साल का विशेष आकर्षण पुणेरी ढोल-ताशा मंडली रही। यह पहली बार था जब पुणे के श्रीमंत दगडूशेठ फाउंडेशन की ‘नादब्रह्म’ ढोल-ताशा मंडली ने बैंकॉक में प्रदर्शन किया। उनके द्वारा बजाए गए ढोल की गूंज पूरे स्टेडियम और बैंकॉक शहर में फैल गई, जिससे उत्सव का उत्साह चरम पर पहुंच गया। दर्शकों ने भी इस ऐतिहासिक आयोजन में भाग लिया, जो बैंकॉक में मराठी ढोल-ताशा परंपरा के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ।

गणेश विसर्जन जुलूस ने पूरे वातावरण को भक्तिमय बना दिया। यह जुलूस बैंकॉक के प्रमुख व्यावसायिक मार्गों से होकर रामा 3 रोड स्थित विसर्जन स्थल पर पहुंचा। कुछ भक्तों ने नाव में गणेश जी को विसर्जित किया, जबकि चारों ओर “गणपति बप्पा मोरया!” के जयकारे गूंज रहे थे।

इस भव्य समारोह में कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे, जिनमें विश्व हिंदू परिषद संघ थाईलैंड की अध्यक्ष श्रीमती वैशाली तुषार उरुमकर, थाईलैंड में भारतीय दूतावास के परामर्शदाता श्री आर. मुथु, स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र के श्री योगी जी, और इस्कॉन (सियाम पैलेस) के प्रमुख शामिल थे। विभिन्न संस्थाओं के प्रमुखों, प्रायोजकों और बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने इस आयोजन को सफल बनाने में योगदान दिया।
इस गणेशोत्सव ने थाईलैंड में भारतीय समुदाय के बीच एकता, आस्था और भारतीय संस्कृति के संरक्षण को उजागर किया है। पिछले 18 वर्षों से चली आ रही यह परंपरा थाईलैंड में भारतीय संस्कृति की जड़ों को मजबूत कर रही है। यह महोत्सव न केवल धार्मिक है, बल्कि सामाजिक सद्भाव और भाईचारे का भी प्रतीक बन गया है।