पूनम शर्मा
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ मौजूदगी ने अमेरिकी राजनीति में हलचल मचा दी है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने इस एकजुटता को “चिंताजनक” बताते हुए भारत की विदेश नीति पर सवाल खड़े किए हैं।
नवारो का कहना है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के नेता को दुनिया के दो सबसे बड़े अधिनायकवादी नेताओं के साथ खड़ा होना शोभा नहीं देता। वाइट हाउस में आयोजित एक प्रेस ब्रीफिंग में उन्होंने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मोदी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता होकर भी पुतिन और शी जिनपिंग जैसे तानाशाहों के साथ खड़े दिखे। इसका कोई औचित्य नहीं है।”
रूस से तेल आयात पर निशाना
नवारो ने खासतौर पर रूस से भारत के बढ़ते तेल आयात को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने दावा किया कि 2022 से पहले भारत रूस से बहुत कम तेल खरीदता था, लेकिन अब वह रियायत पर कच्चा तेल खरीदकर उसे परिष्कृत कर ऊँचे दामों पर बेचकर मुनाफा कमा रहा है। उनके मुताबिक, यह मुनाफाखोरी सीधे तौर पर रूस की युद्ध मशीन को ताकत देती है।
उन्होंने कहा, “भारत रूसी तेल खरीदता है, फिर उसका लाभ उठाता है। रूस उसी पैसे से हथियार खरीदकर यूक्रेन पर युद्ध छेड़े हुए है। यानी एक तरह से भारत का यह व्यापारिक मॉडल रूस की आक्रामकता को मजबूती दे रहा है।”
भारत हालांकि बार-बार साफ कर चुका है कि उसके ऊर्जा आयात पूरी तरह आर्थिक आवश्यकता पर आधारित हैं और राष्ट्रीय हित सर्वोपरि है। भारत का कहना है कि तेल आयात को लेकर उस पर पश्चिमी देशों की आलोचना अनुचित है।
चीन से रिश्तों पर हमला
नवारो ने भारत-चीन रिश्तों पर भी तीखी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि चीन बार-बार भारत की संप्रभुता का उल्लंघन करता रहा है और पाकिस्तान की सैन्य मदद करता है। इसके बावजूद भारतीय कंपनियों और चीनी फर्मों के बीच भागीदारी “विषैली साझेदारी” है।
उनका आरोप है कि बीजिंग भारत का इस्तेमाल अमेरिकी टैरिफ से बचने के लिए कर रहा है। उन्होंने कहा, “भारत धीरे-धीरे चीनी सामान का ट्रांजिट हब बनता जा रहा है। इसका नुकसान सीधे अमेरिकी उद्योगों को हो रहा है।”
अमेरिका-भारत रिश्तों में तनाव
ट्रंप प्रशासन ने पहले ही भारत पर 50 प्रतिशत तक के भारी टैरिफ लगाए हैं। यह कदम भारत-अमेरिका व्यापारिक रिश्तों को गहरी खाई में ले गया है। इसके अलावा रूस से भारत के ऊर्जा संबंधों ने दोनों देशों के बीच अविश्वास और बढ़ा दिया है।
भारत ने इन दंडात्मक टैरिफ को “अनुचित” बताते हुए खारिज किया है और स्पष्ट कहा है कि उसकी नीतियां पूरी तरह उसके राष्ट्रीय हित द्वारा तय होती हैं।
नवारो की चेतावनी और संदेश
नवारो ने भारत के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए भी मोदी सरकार से साफ शब्दों में पश्चिम के साथ खड़े होने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “यूक्रेन में शांति का रास्ता नई दिल्ली से होकर गुजरता है। अब समय आ गया है कि मोदी निर्णायक कदम उठाएं और पश्चिम के साथ स्पष्टता से खड़े हों।”
निष्कर्ष
दरअसल, नवारो की यह टिप्पणी सिर्फ भारत की विदेश नीति पर नहीं, बल्कि अमेरिका की उस चिंता का हिस्सा है जिसमें वह चाहता है कि भारत पूरी तरह पश्चिमी खेमे में शामिल हो जाए। लेकिन भारत अब वैश्विक राजनीति में संतुलन साधते हुए अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर जोर देता है। ऐसे में सवाल यही है कि क्या भारत अमेरिका की अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा या फिर अपने बहुध्रुवीय कूटनीतिक मॉडल पर डटा रहेगा।
यह विवाद साफ करता है कि बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों में भारत की भूमिका अब और भी अहम हो गई है। उसकी हर कूटनीतिक चाल न केवल एशिया, बल्कि पूरे विश्व की शक्ति-संतुलन की दिशा तय करने में निर्णायक साबित होगी।