पूनम शर्मा
पाकिस्तान का सबसे बड़ा और सबसे उपेक्षित प्रांत—बलूचिस्तान—आज वैश्विक राजनीति का केंद्रबिंदु बन चुका है। कभी बलोचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) के हमलों और पाकिस्तान आर्मी की क्रूरता के कारण चर्चा में रहने वाला यह इलाका अब चीन-अमेरिका टकराव, खनिज संसाधनों और सामरिक गलियारों की वजह से सुर्खियों में है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: जबरन विलय और विद्रोह की जड़ें
1948 में नेतृत्व ने बलूचिस्तान को स्वतंत्र चाहा था, पर पाकिस्तान आर्मी ने ज़बरन इसे अपने में मिला लिया। तब से ही स्थानीय जनता खुद को उपेक्षित और शोषित महसूस करती रही। बलोच समाज कहता है कि इस क्षेत्र को केवल संसाधनों की खान समझा गया, जबकि स्थानीय विकास की ओर कभी ध्यान नहीं दिया गया।
सामरिक महत्त्व: खनिज और समुद्री गलियारे
बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा संसाधन क्षेत्र है। यहाँ यूरेनियम, कॉपर, गोल्ड और रेयर-अर्थ मिनरल्स के बड़े भंडार मौजूद हैं। साथ ही पाकिस्तान का अरब सागर तक सबसे बड़ा एक्सेस भी इसी प्रदेश से है। ग्वादर पोर्ट—जो चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का आधार स्तंभ है—बलूचिस्तान में ही है। कराची के अलावा पाकिस्तान के पास समुद्र तक पहुँच का एकमात्र बड़ा विकल्प ग्वादर है। चीन ने पिछले 15 सालों में यहाँ अरबों डॉलर का निवेश किया है, ताकि उसे सीधे पश्चिम एशिया और अफ्रीका तक पहुँच मिले।
चीन की रणनीति: निवेश या जाल?
चीन को पता है कि पाकिस्तान एक कमजोर अर्थव्यवस्था वाला देश है। उसका लक्ष्य सीधा है—बलूचिस्तान के खनिज संसाधनों और रणनीतिक बंदरगाह को अपने नियंत्रण में लेना। CPEC के तहत चीन ने न केवल इंफ्रास्ट्रक्चर बनाया बल्कि पाकिस्तान को भारी कर्ज़ के जाल में फँसा दिया।
पाकिस्तानी आर्थिक संकट के बीच संभावना यही है कि आने वाले समय में चीन माइनिंग राइट्स और खनिज संपदा को “गिरवी” रखकर अपने कब्ज़े में ले लेगा।
अमेरिका की एंट्री: ट्रंप का ‘बिज़नेस पॉलिटिक्स’
डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में पाकिस्तान को संकेत दिए कि वह बलूचिस्तान के संसाधनों को क्रिप्टो और कॉन्ट्रैक्ट मॉडल पर ग्लोबल मार्केट में ला सकते हैं। यह कदम चीन की रणनीति को चुनौती देता है। अमेरिका जानता है कि IMF अब पाकिस्तान को बार-बार लोन नहीं देगा, ऐसे में बलूचिस्तान ही वह पत्ता है जिससे पाकिस्तान के पास कैश फ्लो आ सकता है।
ट्रंप, जो खुद को एक बिज़नेस डीलमेकर मानते हैं, पाकिस्तान के लिए वैकल्पिक निवेश का रास्ता खोलना चाहते हैं—बशर्ते इस खेल से अमेरिका को भी हिस्सा मिले।
ईरान और अफगानिस्तान का फैक्टर
बलूचिस्तान केवल पाकिस्तान का ही मुद्दा नहीं है। इसका एक बड़ा हिस्सा ईरान के बलूच क्षेत्र से सटा हुआ है। वहाँ भी बलूच अलगाववादी सक्रिय हैं। इस वजह से ईरान अपने प्रभाव को “ग्रेटर बलूचिस्तान” की किसी भी अवधारणा से जोड़कर देखता है। अफगानिस्तान की नई तालिबान सरकार ने भी बलूचिस्तान की स्थिति पर चुप्पी साध रखी है, लेकिन चीन यहाँ तालिबान को मनाकर खनिज उत्खनन के समझौते करा रहा है।
रूस की वापसी: खनिज और रणनीति
यूक्रेन युद्ध में ऊर्जा संकट से जूझ रहा रूस भी अब मध्य एशिया और पाकिस्तान के इस क्षेत्र की ओर देख रहा है। सोवियत संघ के दौर में रूस की यहाँ पहुँच रही थी, पर पिछले दो दशकों से उसका प्रभाव कम हुआ। अब रूस एक बार फिर खनिज और ऊर्जा संसाधनों की वजह से यहाँ सक्रिय होने की कोशिश कर रहा है।
भारत पर असर और खतरे
पाकिस्तान के नेता—बिलावल भुट्टो, शहबाज़ शरीफ़ और सेना प्रमुख असीम मुनीर—अक्सर भारत को धमकी देते हैं। इसका मूल कारण यही है कि बलूचिस्तान में बढ़ते अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप को लेकर पाकिस्तान असुरक्षित महसूस कर रहा है। भारत के लिए यह क्षेत्र दोहरी अहमियत रखता है:यहाँ चीन की उपस्थिति सीधे भारत की सुरक्षा चुनौती है। बलोच अलगाववादियों की बढ़ती गतिविधियाँ पाकिस्तान की स्थिरता को कमजोर करती हैं, जिससे भारत को सामरिक लाभ मिलता है।
पाकिस्तान की दुविधा
आज पाकिस्तान के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह बलूचिस्तान को कैसे नियंत्रित करे।स्थानीय जनता आर्मी से नाराज़ है।चीन निवेश कर रहा है लेकिन उसका असली फायदा पाकिस्तानियों को नहीं मिल रहा।अमेरिका और रूस जैसे खिलाड़ी भी इस “खनिज-खेल” में दखल देना चाहते हैं।नतीजा यह है कि पाकिस्तान अब एक ‘भू-राजनीतिक रणभूमि’ बन चुका है। बलूचिस्तान का भविष्य केवल उसके लोगों के हाथ में नहीं, बल्कि बीजिंग, वॉशिंगटन और मॉस्को जैसे बाहरी खिलाड़ियों के हाथ में तय हो रहा है।
निष्कर्ष
बलूचिस्तान केवल पाकिस्तान का एक प्रांत नहीं है—यह एक वैश्विक भू-रणनीतिक ‘हॉटस्पॉट’ बन चुका है। चीन अपनी बेल्ट-एंड-रोड इनिशिएटिव को बचाने के लिए इसे अपने कब्ज़े में रखना चाहता है। अमेरिका नए आर्थिक मॉडल से यहाँ अपनी हिस्सेदारी चाहता है। रूस ऊर्जा संकट के समाधान के लिए खनिजों पर नज़र गड़ाए बैठा है।ईरान और अफगानिस्तान की सीमाएँ इसे और जटिल बना देती हैं।
भविष्य में बलूचिस्तान के सवाल पर पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिरता, उसकी अर्थव्यवस्था और उसके परमाणु हथियारों की सुरक्षा तक दांव पर लग सकती है। यह क्षेत्र एशिया का नया “कोल्ड वॉर ज़ोन” बन सकता है, जहाँ हर महाशक्ति अपने-अपने हित साधने में लगी है।