पूनम शर्मा
पटना की राजनीति में मंगलवार को अचानक एक नया विवाद खड़ा हो गया जब आरजेडी से निष्कासित नेता तेज प्रताप यादव ने कांग्रेस की “वोटर अधिकार यात्रा” को सीधे-सीधे कटघरे में खड़ा कर दिया। तेज प्रताप ने आरोप लगाया कि इस यात्रा के दौरान विजय कुमार सिंह नामक कांग्रेस विधायक के ड्राइवर और एक पत्रकार के साथ मारपीट की गई। यह घटना और इसके बाद दिए गए उनके बयानों ने बिहार की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है।
घटना और आरोप
तेज प्रताप यादव का आरोप है कि औरंगाबाद जिले के नवीनगर में कांग्रेस की यात्रा के दौरान हिंसक झड़प हुई। उनका कहना है कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने पहले एक विधायक के ड्राइवर को निशाना बनाया और उसके बाद मीडिया के एक पत्रकार पर भी हमला कर दिया।
तेज प्रताप ने मीडिया से बातचीत करते हुए यह भी कहा कि “इस मामले से कुछ भी निकलकर सामने नहीं आएगा, क्योंकि कांग्रेस पार्टी इस तरह की घटनाओं पर लीपापोती करने की आदी है।” यह बयान साफ इशारा करता है कि तेज प्रताप अब कांग्रेस को एक प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के रूप में देख रहे हैं।
राजनीतिक संदर्भ
बिहार की राजनीति हमेशा से गठबंधन, तकरार और आरोप-प्रत्यारोप पर टिकी रही है। हाल ही में आरजेडी और कांग्रेस के बीच रिश्ते पहले ही कमजोर पड़ चुके हैं। कांग्रेस, जो खुद को बिहार की राजनीति में पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही है, उसने “वोटर अधिकार यात्रा” को जनता से सीधा जुड़ाव बनाने का माध्यम बताया था।
लेकिन तेज प्रताप यादव का हमला कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है। वह पहले से ही आरजेडी से निष्कासित हो चुके हैं और परिवार से भी राजनीतिक मतभेद रखते हैं। ऐसे में उनका कांग्रेस के खिलाफ खुलकर बयान देना यह दर्शाता है कि आने वाले दिनों में बिहार की विपक्षी राजनीति में नई दरारें और खुलकर सामने आएंगी।
मीडिया और जनता पर असर
किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में पत्रकारों और मीडिया की सुरक्षा अहम होती है। तेज प्रताप द्वारा लगाए गए आरोप कि “पत्रकार पर हमला हुआ”—एक गंभीर सवाल खड़ा करता है कि क्या कांग्रेस अपनी राजनीतिक गतिविधियों को शांतिपूर्ण और पारदर्शी ढंग से चला पा रही है?
अगर वास्तव में यह घटना सच है तो यह कांग्रेस की लोकतांत्रिक छवि को नुकसान पहुँचा सकती है। वहीं, अगर यह आरोप राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है तो यह भी कांग्रेस को सतर्क कर देने वाला संदेश है कि विरोधी दल उसके हर कदम पर नजर रख रहे हैं।
तेज प्रताप की राजनीतिक रणनीति
तेज प्रताप यादव का राजनीति में रोल हमेशा से विवादास्पद और अनूठा रहा है। वह खुद को “धर्म और संस्कृति” से जोड़कर जनता तक पहुँचाने की कोशिश करते हैं, वहीं दूसरी ओर अक्सर तीखे बयान देकर सुर्खियां बटोरते हैं।
इस बार भी कांग्रेस पर हमला करके उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि उनका इरादा “तीसरे मोर्चे” की राजनीति में सक्रिय होने का है। आरजेडी से बाहर होने के बाद अब वे किसी भी तरह खुद को प्रासंगिक बनाए रखना चाहते हैं और कांग्रेस पर आरोप लगाकर वे अपने लिए मीडिया स्पेस और राजनीतिक मंच दोनों हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।
व्यापक असर
कांग्रेस की छवि पर असर – यात्रा का उद्देश्य मतदाताओं को जोड़ना था, लेकिन हिंसा की खबरें इसकी साख कमजोर कर सकती हैं।
विपक्षी एकता पर चोट – बिहार में महागठबंधन की राजनीति पहले ही संकट में है। इस विवाद ने कांग्रेस-आरजेडी के बीच दूरी और बढ़ा दी है।
तेज प्रताप का पुनरुत्थान प्रयास – यह पूरा प्रकरण उनके लिए राजनीतिक पुनःप्रवेश का अवसर बन सकता है।
निष्कर्ष
बिहार की राजनीति इस समय एक संक्रमण काल से गुजर रही है। आरजेडी की अंदरूनी खींचतान, कांग्रेस का पुनर्जीवन प्रयास और जेडीयू-भाजपा की सत्ता रणनीति—इन सबके बीच तेज प्रताप यादव का यह बयानबाजी वाला हमला सिर्फ एक घटना नहीं बल्कि आने वाले विधानसभा चुनावों का संकेत है।
कांग्रेस को यह समझना होगा कि जनता से जुड़े अभियानों में अगर हिंसा और असहमति की खबरें सामने आती हैं, तो उसका नुकसान सिर्फ एक दल का नहीं बल्कि पूरे विपक्षी खेमे का होता है। वहीं, तेज प्रताप इस विवाद का लाभ उठाकर खुद को बिहार की राजनीति में एक स्वतंत्र और बेबाक चेहरा बनाने की कोशिश करेंगे।
कुल मिलाकर, यह प्रकरण बताता है कि बिहार की राजनीति में “वोटर अधिकार” के मुद्दे से ज्यादा अब नेतृत्व की लड़ाई और छवि की राजनीति हावी हो रही है।