पूनम शर्मा
पिछले 80 वर्षों से अमेरिकी डॉलर दुनिया की अर्थव्यवस्था का सबसे ताक़तवर हथियार रहा है। न तो परमाणु बम, न मिसाइल और न ही कोई युद्धक विमान—बल्कि हरे रंग के कागज़ पर छपे कुछ नंबर और अमेरिकी राष्ट्रपति की तस्वीर ने पूरी दुनिया को झुकाकर रखा। यही डॉलर अमेरिका का असली हथियार बना, जिसके दम पर उसने सरकारें गिराईं, युद्ध छेड़े, देशों को ब्लैकमेल किया और वैश्विक व्यापार की शर्तें तय कीं।
लेकिन अब परिदृश्य बदल रहा है। जिस डॉलर ने दशकों तक पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर राज किया, वह धीरे-धीरे अपने अंतिम दौर में पहुँच रहा है। इस गिरावट का सबसे बड़ा कारण भारत और उसके साथ खड़ा नया आर्थिक गठबंधन ब्रिक्स बन रहा है।
डॉलर की ताक़त कैसे बनी?
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका ने डॉलर को अंतरराष्ट्रीय व्यापार का आधार बना दिया। तेल हो या गैस, तकनीक हो या कच्चा माल—हर वैश्विक लेन-देन डॉलर में होता था। इसके लिए अमेरिका ने स्विफ्ट पेमेंट सिस्टम जैसे प्लेटफ़ॉर्म बनाए, जिनपर उसका पूरा नियंत्रण था। यानी, यदि अमेरिका चाहे तो किसी भी देश के लेन-देन पर नज़र रख सकता था और आदेश देकर उसे आर्थिक रूप से पंगु बना सकता था।
यही हथियार उसने रूस, ईरान, वेनेज़ुएला और यहाँ तक कि अपने सहयोगियों के ख़िलाफ़ भी इस्तेमाल किया। परंतु 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद जब अमेरिका और यूरोप ने रूस को स्विफ्ट से बाहर कर दिया, तब खेल बदल गया।
भारत ने बदला खेल
अमेरिका को लगा था कि रूस की अर्थव्यवस्था ढह जाएगी और कोई भी देश उसके साथ व्यापार नहीं करेगा। लेकिन भारत ने साफ़ संदेश दिया—“अगर डॉलर में पेमेंट रोका तो हम डॉलर में पेमेंट ही नहीं करेंगे।”
भारत ने यूपीआई ग्लोबल और रुपे इंटरनेशनल को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उतारा। अब केवल भारत में ही नहीं, बल्कि सिंगापुर, फ्रांस, नेपाल, भूटान जैसे देशों में भारतीय व्यापारी और नागरिक बिना डॉलर के सीधा भुगतान कर पा रहे हैं। यह सिर्फ़ तकनीक नहीं, बल्कि कूटनीतिक चाल थी—जिससे अमेरिकी डॉलर की दीवार पर दरार पड़नी शुरू हुई।
डिजिटल करेंसी का नया अध्याय
भारत अब mBridge प्रोजेक्ट की ओर भी बढ़ रहा है। यह चीन, थाईलैंड और यूएई का संयुक्त क्रॉस-बॉर्डर डिजिटल करेंसी (CBDC) सिस्टम है। भविष्य में यदि व्यापार डॉलर की बजाय डिजिटल करेंसी या स्थानीय मुद्रा में होने लगे, तो डॉलर का महत्व स्वतः गिर जाएगा।
ब्रिक्स देश तो इससे भी आगे बढ़कर एक कॉमन करेंसी बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। रूस कहता है कि वह अपनी ऊर्जा इसी करेंसी में बेचेगा, चीन अपने मैन्युफैक्चरिंग सौदे इसी में करेगा, और भारत अपनी सेवाएँ और तकनीक इसी में देगा। यह अमेरिका के आर्थिक साम्राज्य पर सीधा प्रहार है।
मध्यपूर्व और ऊर्जा की नई राजनीति
अमेरिका ने जब भारत की तेल खरीद पर दबाव डालना चाहा, तब सऊदी अरब और खाड़ी देशों ने स्पष्ट संदेश दिया—“इंडिया के लिए हमारे दरवाज़े हमेशा खुले हैं।”
अब भारत रूस से सस्ते दाम पर तेल खरीद रहा है और खाड़ी देशों के साथ सीधे लोकल करेंसी में कॉन्ट्रैक्ट कर रहा है। इससे डॉलर की माँग स्वाभाविक रूप से घट रही है।
केवल तेल ही नहीं, निवेश के क्षेत्र में भी भारत को बड़ी जीत मिली है। सऊदी अरब ने भारत की रिफाइनरी और ऊर्जा पारिस्थितिकी में भारी निवेश की घोषणा की है। यह सिर्फ़ ऊर्जा नहीं, बल्कि भारत को एशिया का एनर्जी हब बनाने की दिशा में मास्टर प्लान है।
निवेशकों का भरोसा भारत पर
सिंगापुर ने भी भारत पर बड़ा भरोसा जताया है। इंडिया-सिंगापुर मिनिस्ट्री राउंड टेबल में 4.6 अरब डॉलर के निवेश की योजना बनी है। यह निवेश तकनीक, ग्रीन एनर्जी, डिजिटलाइजेशन और स्किल ट्रेनिंग जैसे भविष्य उन्मुख क्षेत्रों में हो रहा है।
निवेशकों को अब अमेरिकी प्रतिबंधों या यूरोपीय दबाव का डर नहीं है। उन्हें दिख रहा है कि भारत के पास अपना यूपीआई ग्लोबल, अपना अंतरराष्ट्रीय सेटलमेंट सिस्टम और 700 अरब डॉलर से अधिक का विदेशी मुद्रा भंडार है।
भारतीय रिज़र्व बैंक ने भी कदम बढ़ाते हुए स्पेशल रुपी वोस्ट्रो अकाउंट को आसान बना दिया है, ताकि ज्यादा से ज्यादा देश सीधे रुपयों में व्यापार कर सकें।
डॉलर का साम्राज्य क्यों टूटेगा?
आज हालात यह हैं कि—
तेल सप्लाई भारत के साथ है।
निवेश भारत के साथ है।
पेमेंट टेक्नोलॉजी भारत के हाथ में है।
ऐसे में डॉलर की हुकूमत टिक नहीं सकती। अब हर देश अपनी करेंसी, अपनी तकनीक और अपनी शर्तों पर व्यापार करना चाहता है। यह एक नए आर्थिक युग की शुरुआत है—जहाँ कोई एक देश दुनिया की अर्थव्यवस्था का मालिक नहीं होगा।
निष्कर्ष
दुनिया बदल रही है। डॉलर का साम्राज्य कमजोर हो रहा है और भारत उस नए आर्थिक युग की नींव रखने वालों में सबसे आगे खड़ा है। सवाल सिर्फ इतना है—क्या डॉलर सच में डूब जाएगा? क्या ब्रिक्स और भारत मिलकर वैश्विक व्यापार की नई तस्वीर बनाएँगे?
जो भी हो, इतना तय है कि भारत अब सिर्फ़ दर्शक नहीं, बल्कि खेल बदलने वाला खिलाड़ी बन चुका है।