पूनम शर्मा
लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस नए “समुद्र मंथन” मिशन की घोषणा की है, वह केवल एक प्रशासनिक या तकनीकी पहल नहीं है। यह भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता, सामरिक सुरक्षा और वैश्विक आर्थिक वर्चस्व की महत्वाकांक्षा का प्रतीक है। समुद्र मंथन—भारतीय संस्कृति का शाश्वत रूपक—आज के दौर में केवल देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष का प्रतीक नहीं, बल्कि राष्ट्रों के बीच संसाधनों और प्रभुत्व की होड़ का नया रूप है।
ऊर्जा आत्मनिर्भरता की चुनौती
आज भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिए बड़े पैमाने पर आयात पर निर्भर है। कच्चे तेल और गैस के क्षेत्र में यह निर्भरता हमें न केवल आर्थिक रूप से कमजोर करती है, बल्कि विदेशी दबावों के प्रति संवेदनशील भी बनाती है। यही कारण है कि मोदी सरकार ने “समुद्र मंथन” के ज़रिए एक स्पष्ट संदेश दिया है—अब भारत अपने महासागरों की गहराई में उतरकर ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधनों की खोज करेगा।
भारत के पास लगभग 7,500 किलोमीटर लंबा समुद्री तट है और इसके साथ फैला हुआ विशाल विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) है। इन गहराइयों में तेल, गैस, रेयर मिनरल्स और अपार जैविक संसाधनों का भंडार है। अब तक जिन क्षेत्रों में हम विदेशी तकनीक और कंपनियों पर निर्भर थे, वहाँ अब स्वदेशी अनुसंधान, डिजिटल निगरानी और आधुनिक ड्रिलिंग तकनीक के सहारे आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं।
भारतीय महासागर का रणनीतिक महत्व
भारतीय महासागर सिर्फ संसाधनों का भंडार ही नहीं, बल्कि वैश्विक राजनीति और व्यापार का हृदय भी है। विश्व व्यापार का 60 प्रतिशत से अधिक भाग इसी समुद्री मार्ग से गुजरता है। चीन की “स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स” रणनीति और उसके विस्तारवादी रवैये ने भारतीय महासागर को नई जियोपॉलिटिकल प्रतिस्पर्धा का केंद्र बना दिया है।
इस परिप्रेक्ष्य में “समुद्र मंथन” केवल ऊर्जा की खोज नहीं, बल्कि भारतीय महासागर क्षेत्र में भारत की निर्णायक उपस्थिति को भी मज़बूत करता है। अंडमान-निकोबार से लेकर लक्षद्वीप तक, और कोलकाता से लेकर विशाखापट्टनम तक, नए पोर्ट्स और नेवल इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास भारत को समुद्री सुरक्षा का स्वाभाविक नेता बना रहा है।
ग्रीन कॉरिडोर और डिजिटल शिपिंग
इस मिशन का एक और महत्वपूर्ण पहलू है “ग्रीन शिपिंग कॉरिडोर”। भारत ने सिंगापुर जैसे देशों के साथ मिलकर यह योजना बनाई है, जिसके तहत जहाज़रानी और शिपिंग सेक्टर में कार्बन उत्सर्जन को कम किया जाएगा। डिजिटल निगरानी, रियल-टाइम कार्गो ट्रैकिंग और स्मार्ट पोर्ट टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से भारत न केवल पारंपरिक व्यापार मार्गों को सुरक्षित बनाएगा, बल्कि उन्हें आधुनिक और पर्यावरण अनुकूल भी बनाएगा।
यह कदम उस समय उठाया गया है जब वैश्विक स्तर पर “ग्रीन एनर्जी” और “सस्टेनेबिलिटी” सबसे बड़ी प्राथमिकताएँ बन चुकी हैं। यदि भारत इस क्षेत्र में अग्रणी बनता है, तो यह न केवल ऊर्जा सुरक्षा बल्कि वैश्विक आर्थिक प्रतिष्ठा की दृष्टि से भी एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी।
वैश्विक प्रतिस्पर्धा: चीन बनाम भारत
आज एशिया की सबसे बड़ी शक्ति-संघर्ष की तस्वीर समुद्री क्षेत्र में दिखती है। चीन का शंघाई पोर्ट आज दुनिया का सबसे व्यस्त पोर्ट है और उसने अफ्रीका से लेकर श्रीलंका तक अपने बंदरगाह नेटवर्क बनाए हैं। दूसरी ओर भारत ने महाराष्ट्र के जएनपीटी (JNPT), विशाखापट्टनम, कोलकाता और अन्य बंदरगाहों को डिजिटल और वैश्विक स्तर का बनाने का खाका तैयार किया है।
यह प्रतिस्पर्धा केवल व्यापारिक नहीं, बल्कि सामरिक है। जहाँ चीन अपनी “बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव” (BRI) के ज़रिए दुनिया को अपने जाल में फँसाना चाहता है, वहीं भारत अपनी समुद्री शक्ति को सहयोग, आत्मनिर्भरता और समान भागीदारी के आधार पर विकसित कर रहा है।
भविष्य का विज़न: टॉप 3 अर्थव्यवस्था
मोदी सरकार का लक्ष्य है कि भारत अगले दशक में विश्व की शीर्ष तीन अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो। यह तभी संभव होगा जब ऊर्जा और संसाधन सुरक्षा की गारंटी हो। “समुद्र मंथन” इस दृष्टि से केवल एक प्रोजेक्ट नहीं बल्कि एक दीर्घकालिक विज़न है, जिसमें समुद्री ऊर्जा, रेयर मिनरल्स, डिजिटल कॉरिडोर और ग्रीन ट्रेड को जोड़ा गया है।
आज जब रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन-अमेरिका टकराव और वैश्विक सप्लाई चेन संकट ने ऊर्जा और व्यापार को अस्थिर बना दिया है, तब भारत का यह मिशन विश्व को एक नया रास्ता दिखाने की क्षमता रखता है।
नए युग का अमृत
समुद्र मंथन की पुरानी कथा में देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र को मथा था, जिससे विष भी निकला और अमृत भी। आज के संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी का “समुद्र मंथन” मिशन भी यही संदेश देता है—मार्ग कठिन है, चुनौतियाँ असंख्य हैं, लेकिन अगर भारत अपने संसाधनों का विवेकपूर्ण और साहसिक उपयोग करता है, तो इससे केवल अमृत ही निकलेगा।
यह अमृत ऊर्जा सुरक्षा का होगा, आर्थिक मजबूती का होगा, सामरिक आत्मविश्वास का होगा और सबसे बढ़कर एक “विकसित भारत” के सपने को साकार करने का होगा।