पूनम शर्मा
पिछले 15 सालों से अगर किसी ब्राउज़र ने इंटरनेट की दुनिया पर राज किया है, तो वह है गूगल क्रोम। सुबह उठते ही ईमेल चेक करना हो, सोशल मीडिया स्क्रॉल करना हो या ऑनलाइन शॉपिंग करनी हो—हम सबकी पहली पसंद हमेशा क्रोम ही रही। दुनिया के लगभग 70% इंटरनेट यूजर्स आज भी उसी पर निर्भर हैं।
लेकिन , इतिहास गवाह है कि हर साम्राज्य की एक एक्सपायरी डेट होती है। और अब लगता है कि गूगल क्रोम का भी समय पूरा होने जा रहा है। कारण है—एक नया खिलाड़ी, एक नया ब्राउज़र, जिसे कई लोग कह रहे हैं भविष्य का असली AI ब्राउज़र। इसका नाम है कॉमेट (Comet Browser)।
कॉमेट ब्राउज़र – भारत से जुड़ा नाम
9 जुलाई 2025 को लॉन्च हुआ यह ब्राउज़र अमेरिकी कंपनी Perplexity AI का प्रोजेक्ट है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इसके सीईओ अरविंद श्रीनिवास भारतीय मूल के हैं। यानी, यह केवल एक टेक्नोलॉजी प्रोडक्ट नहीं बल्कि कहीं न कहीं भारत के दिमाग और सोच से जुड़ा हुआ कदम है।
शुरुआत में कॉमेट को केवल विंडोज और मैक पर, वो भी प्रीमियम सब्सक्राइबर्स के लिए लॉन्च किया गया। लेकिन लॉन्च होते ही इसने टेक्नोलॉजी जगत में हलचल मचा दी। लोग कहने लगे—यह सिर्फ ब्राउज़र नहीं बल्कि डिजिटल असिस्टेंट है।
क्यों है कॉमेट अलग?
गूगल क्रोम आपको सर्च करने पर लाखों लिंक दिखाता है। आपको उनमें से चुनना पड़ता है, पढ़ना पड़ता है और समझना पड़ता है। लेकिन कॉमेट का तरीका बिल्कुल अलग है। यह सीधे आपके सवाल का सटीक और अपडेटेड जवाब देता है।
कॉमेट की खासियतें:
AI-संक्षेपण (Summarization): किसी लंबे आर्टिकल या रिपोर्ट को पढ़ने का समय नहीं है? कॉमेट तुरंत आपके लिए सारांश निकाल देगा।
प्राइस कम्पैरिजन: अमेज़न और फ्लिपकार्ट जैसी वेबसाइट्स पर प्रोडक्ट्स की तुलना खुद करने की ज़रूरत नहीं। कॉमेट आपके लिए साफ-सुथरी रिपोर्ट तैयार करेगा।
ऑटोमेटेड टास्क: ईमेल पढ़ना और रिप्लाई करना, गूगल कैलेंडर में मीटिंग शेड्यूल करना, या ऑनलाइन ऑर्डर करना—सब कुछ कॉमेट आपके कहने पर खुद कर देगा।
कन्वर्सेशनल सर्च: आप सवाल पूछिए और यह बातचीत की तरह जवाब देगा, बिल्कुल एक स्मार्ट असिस्टेंट की तरह।
यानी, जहाँ गूगल का मॉडल है “सर्च → लिंक”, वहीं कॉमेट का मॉडल है “सर्च → जवाब → एक्शन”।
क्या गूगल क्रोम खतरे में है?
गूगल की सबसे बड़ी ताकत रही है उसकी पकड़ और आदत। आज हर 10 में से 7 लोग क्रोम का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन यही उसकी कमजोरी भी बन सकती है, क्योंकि टेक्नोलॉजी दुनिया में पुराना मॉडल ज्यादा दिन टिकता नहीं।
दूसरी तरफ कॉमेट की रणनीति है—तेज़, सटीक और एक्शन-ओरिएंटेड सर्विस। अगर यह मोबाइल कंपनियों के साथ टाई-अप करके अपने ब्राउज़र को डिफॉल्ट इंस्टॉल कराने में सफल हो गया, तो करोड़ों लोग बिना मेहनत के इसका इस्तेमाल करने लगेंगे।
कॉमेट का लक्ष्य है अगले 1 साल में अपने यूजर्स की संख्या 10 मिलियन से बढ़ाकर 100 मिलियन तक पहुंचाना। और यही है गूगल क्रोम के लिए असली खतरा।
गूगल क्रोम को खरीदने की चुनौती
सबसे बड़ा धमाका तब हुआ जब कॉमेट के सीईओ अरविंद श्रीनिवास ने गूगल क्रोम को खरीदने की कोशिश की। उन्होंने 0.5 अरब डॉलर (500 मिलियन डॉलर) का ऑफर दिया। यह केवल पैसों की डील नहीं थी, बल्कि गूगल की मोनोपॉली को सीधी चुनौती थी।
दुनिया का सबसे बड़ा ब्राउज़र, जिसने 15 सालों से राज किया है, अगर एक नई कंपनी द्वारा खरीदने की स्थिति में आ जाए, तो यह डिजिटल क्रांति से कम नहीं।
भारत के लिए क्यों है यह अहम?
भारत में आज 82 करोड़ से ज्यादा इंटरनेट यूजर्स हैं। हमारी सर्च आदतें, हमारा डेटा और डिजिटल व्यवहार अगर किसी विदेशी कंपनी के पास है, तो यह हमारी डेटा संप्रभुता और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है।
याद कीजिए—
फेसबुक और व्हाट्सऐप के डेटा लीक।
गूगल पर प्राइवेसी उल्लंघन के मामले।
यूट्यूब के एल्गोरिद्म का बायस।
ये सारे उदाहरण बताते हैं कि टेक दिग्गज चाहें तो किसी भी देश की डिजिटल इकॉनमी और लोकतंत्र पर असर डाल सकते हैं।
इसीलिए भारत सरकार ने 2025 में घोषणा की कि अब देश खुद का स्वदेशी वेब ब्राउज़र बनाएगा। सूत्रों का मानना है कि इसका संबंध कहीं न कहीं कॉमेट से भी हो सकता है, क्योंकि कॉमेट बनाने वाली कंपनी का साझेदारी पहले से भारतीय टेलीकॉम दिग्गज एयरटेल के साथ है।
अगर ऐसा हुआ तो भारत दुनिया को दिखा देगा कि हम न केवल टेक्नोलॉजी यूजर्स हैं, बल्कि डिजिटल दुनिया के लीडर्स भी बन सकते हैं।
निष्कर्ष – गूगल बनाम कॉमेट
डिजिटल दुनिया का अगला बड़ा युद्ध शुरू हो चुका है।
एक तरफ है गूगल क्रोम—पुराना बादशाह, जिसने 15 सालों तक राज किया।
दूसरी तरफ है कॉमेट—नया योद्धा, जो कह रहा है “अब मेरी बारी है।”
क्या गूगल अपनी गद्दी बचा पाएगा?
क्या कॉमेट सचमुच नया डिजिटल सम्राट बनेगा?
क्या भारत इस मौके का फायदा उठाकर दुनिया को दिखा पाएगा कि हम किसी के मोहताज नहीं?
इतना तय है कि आने वाला साल इंटरनेट की दुनिया को हमेशा के लिए बदल देगा। यह सिर्फ टेक्नोलॉजी की लड़ाई नहीं, बल्कि भविष्य की डिजिटल क्रांति है।