भारत का समुद्री पुनर्जागरण: ट्रंप टैरिफ की चुनौती से वैश्विक समुद्री शक्ति तक

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पूनम शर्मा
दुनिया के बड़े देश जब आपसी व्यापारिक टकराव में उलझे हुए हैं । अमेरिका अपने टैरिफ हथियार के जरिए वैश्विक बाजार पर दबाव बना रहा है, । तब भारत ने अपने लिए एक बिल्कुल अलग राह चुनी है। यह राह केवल संकट से बचने की नहीं बल्कि अवसर को पकड़कर भविष्य की वैश्विक ताकत बनने की है। जुलाई महीने के निर्यात आंकड़े जब सामने आए तो यह साफ हो गया कि भारत दबाव में नहीं, बल्कि मजबूती के साथ उभर रहा है।

टैरिफ दबाव के बीच भारत की रणनीति

डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की टैरिफ नीति से जहाँ  चीन, दक्षिण कोरिया और कई यूरोपीय देश घबराए हुए हैं, वहीं भारत ने दोतरफा रणनीति अपनाई।

निर्यातकों के लिए वित्तीय राहत – सरकार ने यह तय किया कि जिन सेक्टरों पर टैरिफ का असर पड़ेगा, उन्हें वित्तीय पैकेज और प्रोत्साहन दिए जाएँगे।

समुद्री क्षेत्र पर बड़ा निवेश – भारत ने घोषणा की कि वह अपने मैरीटाइम सेक्टर, खासकर पोर्ट डेवलपमेंट और शिप बिल्डिंग में भारी निवेश करेगा।

यानी भारत केवल तत्काल संकट से बचने की योजना नहीं बना रहा, बल्कि लंबी अवधि के लिए खुद को वैश्विक समुद्री शक्ति बनाने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है।

निर्यात में उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन

यह अनुमान था कि अमेरिकी टैरिफ भारत के निर्यात को धीमा कर देंगे, लेकिन वास्तविकता इससे उलट रही। जुलाई 2025 में भारत का निर्यात 7.3% बढ़ गया। यही नहीं, ट्रेड डेफिसिट भी बेहतर हुआ। अमेरिका को भारतीय निर्यात लगभग 20% बढ़ा और आयात भी 13% के आसपास रहा। इससे यह साफ संकेत मिला कि चाहे जितना टैरिफ दबाव हो, अमेरिका और अन्य देशों के लिए भारतीय सामान की मांग बनी हुई है।

समुद्री शक्ति क्यों ज़रूरी?

धरती का लगभग 70% हिस्सा समुद्र से ढका है और व्यापार का अधिकांश हिस्सा समुद्री मार्गों से होता है। इतिहास गवाह है कि जिन देशों ने समुद्र पर पकड़ बनाई, वही लंबे समय तक वैश्विक व्यापार और राजनीति में शीर्ष पर रहे।

भारत के पास 7500 किलोमीटर लंबी समुद्री तटरेखा है। प्राचीन काल में भारतीय जहाज हिंद महासागर से लेकर अरब सागर और अफ्रीका तक व्यापार करते थे। लेकिन आधुनिक दौर में भारत ने शिप बिल्डिंग और पोर्ट डेवलपमेंट पर उतना ध्यान नहीं दिया जितना चीन, जापान और दक्षिण कोरिया ने दिया।

आज स्थिति यह है कि वैश्विक शिप बिल्डिंग बाजार में चीन का हिस्सा 46%, दक्षिण कोरिया का 30% और जापान का 15% है, जबकि भारत की हिस्सेदारी महज 1-2%।

सरकार की नई योजना: 70,000 करोड़ का फंड

भारत सरकार ने यह ऐतिहासिक निर्णय लिया कि पोर्ट और शिपिंग सेक्टर के विकास पर अब लगभग 70,000 करोड़ रुपये का फंड खर्च किया जाएगा।

इस फंड के मुख्य फोकस क्षेत्र होंगे:

शिप बिल्डिंग और रिपेयरिंग – भारत में जहाजों का बड़े पैमाने पर निर्माण और मरम्मत।

इंफ्रास्ट्रक्चर आधुनिकीकरण – पोर्ट और शिपिंग सुविधाओं को विश्वस्तरीय बनाना।

शिपिंग टनेज बढ़ाना – यानी भारत के पास अपने जहाजों की संख्या बढ़ाना, ताकि अंतरराष्ट्रीय व्यापार में हिस्सेदारी बढ़ सके।

शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया की पहल

शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया ने लगभग 2 बिलियन डॉलर की योजना बनाई है जिसके तहत 26 नए जहाज खरीदे जाएंगे। खास बात यह है कि ये जहाज भारत में ही बनाए जाएंगे। इससे घरेलू शिप बिल्डिंग उद्योग को सीधा प्रोत्साहन मिलेगा।

इस फंडिंग मॉडल में 49% हिस्सा सरकार और राज्य संचालित कंपनियों से आएगा, जबकि 51% हिस्सा वैश्विक निवेशकों, बैंकों और मल्टीलेटरल एजेंसियों से जुटाया जाएगा। इसका अर्थ है कि अंतरराष्ट्रीय निवेशक भारत की समुद्री महत्वाकांक्षा का हिस्सा बनने के लिए तैयार हैं।

चुनौतियाँ और आत्मनिर्भरता की ज़रूरत

फिर भी कुछ गंभीर चुनौतियाँ मौजूद हैं।

मरीन इंजनियरिंग: जहाज निर्माण केवल स्टील स्ट्रक्चर पर नहीं, बल्कि उन्नत मरीन इंजनों और उपकरणों पर भी निर्भर करता है। वर्तमान में भारत जापान और जर्मनी जैसे देशों पर निर्भर है।

तकनीकी कमी: भारतीय शिपयार्ड दशकों पुराने हैं और उनमें आधुनिक तकनीक का अभाव है।

विशेषज्ञ मानव संसाधन: मरीन इंजीनियरिंग और डिजाइनिंग के क्षेत्र में प्रशिक्षित मानव संसाधन की कमी है।

इन चुनौतियों को दूर करने के लिए भारत को रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर अधिक निवेश करना होगा और मरीन इंजीनियरिंग की पढ़ाई को बढ़ावा देना होगा।

ट्रंप टैरिफ और भारत का जवाब

ट्रंप की टैरिफ नीति से दुनिया भर में हलचल है। यूरोप, चीन और अन्य निर्यातक देशों पर इसका गहरा असर पड़ा है। लेकिन भारत ने न केवल नुकसान से बचने की योजना बनाई बल्कि नए अवसर भी तलाशे।

टेक्सटाइल, फुटवियर और ऑटो पार्ट्स जैसे सेक्टर प्रभावित हो सकते हैं, लेकिन सरकार ने निर्यातकों को वित्तीय सहायता देने का आश्वासन दिया है। इस रणनीति का नतीजा यह है कि अमेरिकी बाजार में भारत का निर्यात बढ़ता जा रहा है।

2047 का लक्ष्य: टॉप 5 शिप बिल्डिंग राष्ट्र

भारत ने ठोस योजना बनाई है कि 2047 तक वह दुनिया के शीर्ष पांच शिप बिल्डिंग देशों में शामिल होगा। यह लक्ष्य केवल घोषणाओं तक सीमित नहीं है बल्कि इसके लिए पूंजी, तकनीक, मानव संसाधन और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को जोड़ा जा रहा है।

भविष्य की दिशा के लिए तीन प्रमुख कदम आवश्यक होंगे:

मरीन इंजीनियरिंग और टेक्निकल स्टडीज का विस्तार

रिसर्च एंड डेवलपमेंट में भारी निवेश

मध्यम और छोटे शिपयार्ड्स को बड़े कॉन्ट्रैक्ट में शामिल करना

समुद्र से शक्ति तक

स्पष्ट है कि भारत ने एक निर्णायक चाल चली है। टैरिफ के दबाव को अवसर में बदलते हुए भारत ने समुद्री शक्ति बनने का संकल्प लिया है। इतिहास गवाह है कि समुद्र ही वह माध्यम था जिसने भारत को विश्वगुरु बनाया। अब वही समुद्र भारत को फिर से वैश्विक शक्ति बनाने का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।

भारत की यह यात्रा केवल आर्थिक नहीं बल्कि रणनीतिक और सभ्यतागत पुनर्जागरण भी है। सही समय पर उठाए गए ये कदम भारत को न केवल मजबूत अर्थव्यवस्था देंगे बल्कि आने वाले दशकों में समुद्री नियंत्रण और वैश्विक नेतृत्व भी सुनिश्चित करेंगे।

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