कांग्रेस NCERT की पाठ्यपुस्तक राजनीति: विभाजन से वैचारिक विघटन तक

एनसीईआरटी के नए मॉड्यूल में ‘विभाजन के दोषी’ पर विवाद

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पूनम शर्मा
भारत के बंटवारे पर एनसीईआरटी द्वारा जारी विशेष मॉड्यूल को लेकर शुरू हुआ विवाद केवल ऐतिहासिक घटनाओं की व्याख्या भर नहीं है, बल्कि यह शिक्षा व्यवस्था में दशकों से जारी वैचारिक युद्ध का भी प्रतिबिंब है। भाजपा और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या स्वतंत्र भारत की शिक्षा नीति को जानबूझकर इस तरह ढाला गया कि भारतीय सभ्यता की आत्मा कमजोर हो और राष्ट्र को बार-बार विभाजनकारी विचारधाराओं से जूझना पड़े।

विभाजन का जिम्मा: जिन्ना, कांग्रेस और माउंटबेटन

एनसीईआरटी के नए मॉड्यूल में साफ कहा गया है कि भारत का विभाजन किसी एक व्यक्ति की देन नहीं था। इसमें तीन प्रमुख कारक थे – मोहम्मद अली जिन्ना, जिन्होंने इसकी मांग की; कांग्रेस, जिसने इसे स्वीकार किया; और माउंटबेटन, जिन्होंने इसे लागू किया। माउंटबेटन द्वारा सत्ता हस्तांतरण की तारीख आगे बढ़ाने और हड़बड़ी में की गई तैयारियों को ‘महान भूल’ कहा गया है।

मॉड्यूल में साफ कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 को भारत का विभाजन तीन प्रमुख कारणों से हुआ।

  1. जिन्ना – जिन्होंने इसकी मांग की।

  2. कांग्रेस – जिसने इसे स्वीकार किया।

  3. माउंटबेटन – जिन्होंने इसे लागू किया।

मॉड्यूल में लिखा है कि माउंटबेटन ने सत्ता हस्तांतरण की तारीख जून 1948 से घटाकर अगस्त 1947 कर दी। इस हड़बड़ी में पर्याप्त तैयारी नहीं हो सकी। सर साइरिल रेडक्लिफ को सिर्फ पांच हफ्ते में सीमाएं खींचने का काम सौंपा गया। परिणामस्वरूप पंजाब जैसे क्षेत्रों में लोग 15 अगस्त के बाद भी नहीं जानते थे कि वे भारत में हैं या पाकिस्तान में। लेकिन असली सवाल यह है कि विभाजन की वह मानसिकता, जिसने 1947 में देश को तोड़ा, क्या स्वतंत्र भारत में भी शिक्षा व्यवस्था के जरिये जारी रही?

छात्रों के लिए दो मॉड्यूल

एनसीईआरटी ने दो अलग-अलग मॉड्यूल तैयार किए हैं—एक कक्षा 6 से 8 (मध्य स्तर) के लिए और दूसरा कक्षा 9 से 12 (माध्यमिक स्तर) के लिए। ये नियमित पाठ्यपुस्तकों का हिस्सा नहीं हैं बल्कि पूरक संसाधन हैं, जिन्हें प्रोजेक्ट, पोस्टर, चर्चा और वाद-विवाद में उपयोग किया जाएगा।

दोनों मॉड्यूल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस संदेश से शुरू होते हैं जो उन्होंने 2021 में ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ की घोषणा करते समय दिया था। इसमें कहा गया था:
“विभाजन की पीड़ाएं कभी भुलाई नहीं जा सकतीं। लाखों बहन-भाई उजड़ गए, अनेक लोगों ने अपनी जान गंवाई। इन संघर्षों और बलिदानों की स्मृति में 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाएगा।”

वैचारिक मतभेद और राजनीतिक विवाद

मॉड्यूल के अनुसार विभाजन “अनिवार्य नहीं था” बल्कि “गलत विचारों” की देन था। वहीं, उच्च कक्षाओं के लिए बनाए गए मॉड्यूल में विभाजन की जड़ ‘राजनीतिक इस्लाम’ की उस सोच में बताई गई है, जिसमें गैर-मुसलमानों के साथ स्थायी समानता को अस्वीकार कर दिया गया। यह विचारधारा पाकिस्तान आंदोलन की आधारशिला बनी और जिन्ना इसके “कुशल वकील-नेता” थे।

कांग्रेस की शिक्षा नीति और एनसीईआरटी

विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद शिक्षा को एक राजनीतिक औजार की तरह इस्तेमाल किया। एनसीईआरटी के जरिये इतिहास की वह व्याख्या प्रस्तुत की गई जिसमें भारतीय सभ्यता की मूल आत्मा, उसका सांस्कृतिक प्रतिरोध और क्षेत्रीय नायकों का योगदान हाशिये पर डाल दिया गया।

पाठ्यपुस्तकों में मुगलों को महिमामंडित किया गया, उनके अत्याचारों और सभ्यतागत नुकसान को नज़रअंदाज़ किया गया। महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, रानी दुर्गावती, अहोम साम्राज्य और सिख पराक्रम जैसी कहानियों को सीमित पन्नों में समेटकर भुला दिया गया। इसके विपरीत, मुगलों को ‘संस्कृति निर्माता’ और ‘कलात्मक संरक्षक’ के रूप में glorify किया गया।

इस चयनात्मक इतिहासलेखन का नतीजा यह हुआ कि नई पीढ़ी अपने असली अतीत से कटती चली गई। विभाजनकारी और साम्प्रदायिक प्रवृत्तियां जड़ जमाने लगीं क्योंकि शिक्षा में राष्ट्र की आत्मा का स्वर ही दबा दिया गया।

सभ्यता की आत्मा पर प्रहार

भारतीय सभ्यता हजारों वर्षों पुरानी है। यह वेदों, उपनिषदों, रामायण, महाभारत और पुराणों से पोषित हुई है। यह सभ्यता विविधता में एकता का प्रतीक रही है। मगर कांग्रेस शासनकाल में शिक्षा की संरचना इस तरह गढ़ी गई कि इस महान धरोहर को पिछड़ा और अप्रासंगिक ठहराया गया।

पाठ्यपुस्तकों ने न केवल हिंदू सभ्यता की आत्मा को कमजोर किया बल्कि बच्चों के मन में यह धारणा बैठा दी कि भारत का वास्तविक इतिहास ही मुघलकाल से शुरू होता है। इससे सभ्यता की जड़ों में दरारें पड़ीं और राष्ट्रीय पहचान पर संकट गहराया।

कांग्रेस की मंशा और राजनीतिक उद्देश्य

यह महज गलती नहीं थी बल्कि सुनियोजित रणनीति थी। कांग्रेस ने जानबूझकर ऐसी शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा दिया जिसमें भारतीय अस्मिता के स्थान पर एक ‘सेकुलर आवरण’ के नाम पर इस्लामी प्रभाव को प्रमुखता दी गई। परिणामस्वरूप, यह आरोप बार-बार उठता रहा कि कांग्रेस ने भारत को धीरे-धीरे एक इस्लामी राष्ट्र की ओर मोड़ने का प्रयास किया।

विभाजन की पीड़ा झेलने के बावजूद कांग्रेस ने ऐसी पाठ्यपुस्तकों को प्रोत्साहन दिया जिनमें जिन्ना और मुस्लिम लीग की भूमिका को कमतर बताया गया, जबकि मुगलों को ‘भारत निर्माता’ कहकर प्रस्तुत किया गया। यह प्रवृत्ति न केवल ऐतिहासिक सत्य को विकृत करती रही बल्कि राष्ट्रीय एकता के लिए दीर्घकालिक खतरा भी बनी।

विभाजन से वैचारिक विघटन तक

1947 का विभाजन भौगोलिक था, मगर कांग्रेस द्वारा थोपे गए पाठ्यक्रमों ने भारत में एक वैचारिक विभाजन पैदा किया। नई पीढ़ी के सामने जो इतिहास प्रस्तुत किया गया, उसने उन्हें अपनी जड़ों से काट दिया। नतीजा यह हुआ कि देश में अलगाव वादी विचारधाराएँ  पनपने लगीं।

कश्मीर समस्या, उत्तर-पूर्व में अलगाववादी आंदोलन और यहां तक कि पंजाब में आतंकवाद – इन सबके पीछे शिक्षा के उस मॉडल की भूमिका रही जिसने भारतीय अस्मिता को कमजोर किया और विदेशी-प्रेरित विचारधाराओं को पोषित किया।

बीजेपी का पलटवार और वर्तमान बहस

आज जब एनसीईआरटी ने विभाजन के दोषियों पर सीधा उंगली उठाई है, तो कांग्रेस बौखलाई हुई दिख रही है। बीजेपी नेताओं का कहना है कि दशकों तक कांग्रेस ने शिक्षा व्यवस्था का दुरुपयोग कर ऐतिहासिक सच्चाई को छिपाया और पीढ़ियों को गुमराह किया। वहीं, कांग्रेस इसे राजनीतिक हमला बताकर खारिज कर रही है।

लेकिन यह बहस केवल दो दलों की नहीं, बल्कि भारत के भविष्य की है। सवाल यह है कि क्या शिक्षा प्रणाली को सभ्यता की आत्मा को पुनर्जीवित करने वाला बनाया जाएगा, या फिर वह विभाजनकारी विरासत ढोती रहेगी?

निष्कर्ष

भारत का विभाजन केवल सीमा रेखाओं का विघटन नहीं था, बल्कि यह मानसिकता का परिणाम था। दुर्भाग्यवश, कांग्रेस ने उसी मानसिकता को शिक्षा व्यवस्था में जिंदा रखा। इतिहास की एकतरफा व्याख्या कर उसने न केवल सभ्यता की आत्मा पर प्रहार किया बल्कि भारत को वैचारिक रूप से कमजोर किया।

आज जरूरत इस बात की है कि शिक्षा को राजनीतिक औजार नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आत्मा का दर्पण बनाया जाए। एनसीईआरटी का नया मॉड्यूल इसी दिशा में एक कदम है, जो युवा पीढ़ी को सच्चाई से परिचित कराकर उन्हें सभ्यता के प्रति गर्व और आत्मविश्वास से भर सकता है।

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