पूनम शर्मा
अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के ऐसे व्यक्तित्व थे, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे दल से ऊपर उठकर पूरे देश के नेता बन गए। उन्हें “अजातशत्रु” कहा गया, क्योंकि विपक्ष भी उनके प्रति सम्मान रखता था। उनका जीवन संघर्ष, कर्तव्य और करुणा का अद्भुत मिश्रण था। कवि, पत्रकार, सांसद, विदेश नीति के कुशल ज्ञाता और सबसे बढ़कर एक उदारचित्त प्रधानमंत्री – यही उनकी पहचान रही।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर, मध्य प्रदेश में हुआ। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी संस्कृत के विद्वान और कवि थे। घर में साहित्य और संस्कृति का वातावरण था, जिसने अटल जी को भी काव्य की ओर प्रेरित किया। उन्होंने ग्वालियर से प्रारंभिक शिक्षा ली और बाद में विक्टोरिया कॉलेज (अब लक्ष्मीबाई कॉलेज) से स्नातक तथा कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर किया।
दिलचस्प बात यह है कि अटल जी और उनके पिता दोनों ने साथ-साथ कानून की पढ़ाई की थी। अक्सर कॉलेज में जब नाम पुकारे जाते तो प्रोफेसर को यह तय करना मुश्किल हो जाता कि किस “वाजपेयी” को बुलाना है – पिता या पुत्र।
राष्ट्रसेवा की ओर कदम
शुरुआत से ही अटल जी पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का प्रभाव रहा। 1939 में वे आरएसएस से जुड़े और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेल भी गए। पत्रकारिता में भी उन्होंने अपनी पहचान बनाई। “राष्ट्रीय स्वयंसवेवक”, “पांचजन्य” और “राष्ट्रधर्म” जैसे पत्र-पत्रिकाओं में उनकी लेखनी ने लोगों का ध्यान खींचा।
संसद में तेजस्वी वक्ता
1951 में जब भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई, तब अटल जी संस्थापक सदस्य बने। 1957 में बलरामपुर सीट से पहली बार लोकसभा पहुंचे। संसद में उनके भाषण इतने प्रभावशाली होते थे कि पंडित नेहरू ने कहा था – “यह व्यक्ति एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा।” यह भविष्यवाणी सच भी साबित हुई।
काव्य और करुणा
अटल बिहारी वाजपेयी केवल राजनेता ही नहीं, बल्कि संवेदनशील कवि भी थे। उनकी कविताएँ जैसे “हार नहीं मानूँगा” और “कदम मिलाकर चलना होगा” आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं। विदेशों में भी जब उन्होंने हिंदी में भाषण दिया तो पूरी दुनिया ने भारतीय भाषा की शक्ति को महसूस किया।
प्रधानमंत्री बनने की यात्रा
अटल जी ने 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन उनकी सरकार केवल 13 दिन चली। 1998 में वे फिर प्रधानमंत्री बने और इस बार 13 महीने तक सरकार चली। 1999 में वे तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और पांच साल तक स्थिर सरकार दी।
उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण था। पूरी दुनिया भारत की ओर देखने लगी। अटल जी ने कहा था – “हम किसी को डराने के लिए परमाणु शक्ति नहीं बने हैं, बल्कि अपनी सुरक्षा के लिए बने हैं।”
शांति और कूटनीति
अटल जी का मानना था कि पड़ोसियों से अच्छे संबंध होना जरूरी है। उन्होंने पाकिस्तान से दोस्ती की कोशिश की। 1999 में उन्होंने “लाहौर बस यात्रा” की शुरुआत की। वे चाहते थे कि दोनों देश बातचीत से समस्याएँ सुलझाएँ। लेकिन इसी दौरान करगिल युद्ध हुआ। अटल जी ने पूरी दृढ़ता से सेना का समर्थन किया और पाकिस्तान को करारी शिकस्त मिली।
विकास और दूरदर्शिता
प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने “स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना” शुरू की, जिसके तहत चारों महानगरों को हाइवे से जोड़ा गया। “प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना” ने गांवों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ा। दूरसंचार क्षेत्र को खोलकर उन्होंने मोबाइल क्रांति की नींव रखी।
सरलता और विनम्रता
अटल बिहारी वाजपेयी की सबसे बड़ी खूबी उनकी सरलता थी। वे कटु आलोचना का भी मुस्कान के साथ जवाब देते थे। संसद में जब बहुमत साबित करने में असफल हुए, तब उन्होंने कहा था – “सत्ता का खेल चलेगा, आते-जाते रहेंगे, लेकिन भारत रहना चाहिए, लोकतंत्र अमर रहना चाहिए।”
अंतिम वर्षों और विरासत
स्वास्थ्य कारणों से वे 2009 के बाद सार्वजनिक जीवन से दूर हो गए। 16 अगस्त 2018 को उनका निधन हो गया। लेकिन आज भी उनकी स्मृतियाँ, उनका भाषण, उनकी कविताएँ और उनकी कार्यशैली लोगों के दिलों में जीवित हैं।
निष्कर्ष
अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन इस बात का प्रमाण है कि राजनीति केवल सत्ता का खेल नहीं, बल्कि सेवा का माध्यम है। वे “राजनीति के संत” थे, जिन्होंने विपक्ष को भी साथ लेकर चलने का मार्ग दिखाया। भारत के इतिहास में वे एक ऐसे नेता के रूप में याद किए जाएंगे, जिनका व्यक्तित्व राजनीति से कहीं ऊपर उठकर राष्ट्र और मानवता की सेवा के लिए समर्पित था।