शक्ति का नया मापदंड

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पूनम शर्मा

आज वैश्विक शक्ति का अर्थ केवल हथियारों, सीमाओं या सैन्य क्षमता से नहीं है, बल्कि इस बात से है कि कोई देश अपने बारे में कैसी कहानी दुनिया के सामने रखता है और उसे कितनी प्रभावी ढंग से गढ़ता व फैलाता है। इसे ही भू-रणनीतिक संचार (Geostrategic Communication) कहा जाता है — यानी वैश्विक ‘माइंडस्पेस’ में अपनी छवि बनाना और उस छवि को अपने दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितों के अनुरूप मोड़ना।

अतीत से वर्तमान तक: संचार का सफर

भू-राजनीतिक संचार कोई नई परिकल्पना नहीं है। पहले यह अखबारों के सरकारी बयान, रेडियो भाषण या प्रधानमंत्री के राष्ट्र को संबोधन तक सीमित था।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान प्रोपेगैंडा रेडियो और अखबारों के जरिए चलता था।

शीत युद्ध में Voice of America और BBC World Service जैसे शॉर्टवेव रेडियो चैनल सीमाएं लांघकर सीधे लोगों तक पहुंचते थे।

उस समय यह एकतरफा माध्यम था — एक देश, एक कथानक, एक चैनल। रेडियो सस्ता, सुलभ और साक्षरता की बाधा से मुक्त था, इसलिए दूरदराज़ और संघर्ष क्षेत्रों में इसका असर आज भी कहीं-कहीं देखा जाता है। लेकिन अब सूचना केवल ‘खपत’ नहीं होती, बल्कि उस पर जनता प्रतिक्रिया भी देती है।

पुराने मंच, नई प्रासंगिकता

हैशटैग और वायरल रील्स से पहले विचार निर्माण संपादकीय, विचार स्तंभ और विशिष्ट पत्रिकाओं के माध्यम से होता था। ये मंच आज भी नीति निर्माण, अकादमिक बहस और गंभीर पाठकों के बीच प्रभावी हैं।

ये धीमी लेकिन टिकाऊ ‘आग’ की तरह होते हैं, जो समय के साथ धारणा बदल देते हैं।

नीति निर्धारकों और विशेषज्ञों के बीच इनकी विश्वसनीयता सोशल मीडिया से कहीं अधिक होती है।

नई दुनिया का संचार मैट्रिक्स

आज भू-रणनीतिक संचार पुराने भरोसेमंद माध्यम और नए डिजिटल हथियारों का मिश्रण है।

एक ओर थिंक-टैंक रिपोर्ट्स, पॉलिसी ब्रीफ्स, शैक्षणिक शोध जैसी गहन सामग्री है।

दूसरी ओर ट्विटर पोस्ट, इंस्टाग्राम रील्स, यूट्यूब डिप्लोमेसी जैसी तेज़ रफ्तार डिजिटल बौछारें हैं।

इन दोनों को मिलाकर ही कोई देश वैश्विक चर्चा में अपनी जगह मजबूत कर सकता है।

पॉडकास्ट और डिजिटल माध्यम: गहराई के साथ खतरे

पॉडकास्ट गहराई, विश्लेषण और कहानी कहने का नया साधन हैं, लेकिन इनके लिए मीडिया साक्षरता आवश्यक है।

अगर श्रोता तथ्य और राय में फर्क न कर पाए, तो इन्हें गुमराह करने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

ग्लोबल साउथ में डिजिटल साक्षरता असमान है, जिससे गलत सूचना का खतरा बढ़ जाता है।

रेडियो के विपरीत, डिजिटल मीडिया के लिए इंटरनेट, तकनीकी साधन और तेज़ सूचना-प्रसंस्करण क्षमता चाहिए, जो हर जगह उपलब्ध नहीं है।

सोशल मीडिया ब्लिट्ज: त्वरित प्रभाव का हथियार

आज सबसे दृश्यमान हथियार है — सोशल मीडिया ब्लिट्ज।

किसी विदेशी नीति पहल, आपदा राहत, सांस्कृतिक कूटनीति या साझेदारी की घोषणा को ट्रेंड और सुर्खियों में लाने के लिए समयबद्ध सामग्री की बाढ़ लाई जाती है।

इसका उद्देश्य है प्रतिस्पर्धी कथानकों से पहले जनता के दिमाग में अपनी कहानी बिठा देना।

लेकिन यही माध्यम फेक न्यूज का सबसे बड़ा वाहक भी है। गलत सूचना घंटों में धारणा बदल सकती है, रिश्ते बिगाड़ सकती है और साख को चोट पहुंचा सकती है। एक बार गलत कहानी पकड़ बना ले, तो सच सामने लाना पानी से स्याही निकालने जैसा कठिन है।

संवाद का नया ढांचा: जनता भागीदार

पहले सरकारें जनता से बोलती थीं, अब उन्हें जनता से बात करनी पड़ती है।

नागरिक अब निष्क्रिय श्रोता नहीं हैं; वे प्रतिक्रिया देते हैं, सवाल पूछते हैं और राय बनाते हैं।

आधिकारिक बयान के साथ-साथ इंस्टाग्राम स्टोरी, मीम, इन्फ्लुएंसर सहयोग और हास्य भी संदेश का हिस्सा बन गए हैं।

आज वैश्विक दर्शक भी हर कदम देख रहा है — एक गलती मिनटों में वायरल, और एक सही कदम रातोंरात ‘सॉफ्ट पावर’ में इज़ाफा कर सकता है।

युवा, तकनीक और संस्कृति: कथानक की धुरी

कथानक निर्माण और विस्तार का केंद्र आज युवा, तकनीक और संस्कृति हैं।

युवा तेजी से बदलते रुझानों को अपनाते और फैलाते हैं।

लेकिन वे ऑनलाइन ध्रुवीकरण और प्रोपेगैंडा के शिकार भी सबसे आसानी से होते हैं।

इसीलिए मीडिया साक्षरता अनिवार्य है — उन्हें यह पूछना आना चाहिए कि कौन कह रहा है, क्यों कह रहा है, क्या छूट गया है, और सबूत क्या है।

सॉफ्ट पावर: विकल्प नहीं, आवश्यकता

सांस्कृतिक निर्यात, शैक्षणिक विनिमय या राजनयिक उपस्थिति अब केवल ‘अच्छा होने’ की चीज़ नहीं है, बल्कि रणनीतिक प्रभाव का सक्रिय स्तंभ हैं।

असली ताकत एक ऐसी राष्ट्रीय कहानी कहने में है जो सीमाओं के पार गूंजे और घर में भी प्रामाणिक लगे।

ग्लोबल साउथ के देशों को अवसंरचना के साथ-साथ रणनीतिक संचार क्षमता में भी निवेश करना होगा —

राजनयिकों, नौकरशाहों और युवाओं को प्रभाव-आधारित संचार में प्रशिक्षित करना।

शिक्षा में मीडिया साक्षरता मॉड्यूल शामिल करना।

तथ्य-आधारित विश्लेषण के विश्वसनीय मंच मजबूत करना।

स्थानीय कहानीकारों को वैश्विक मंच तक पहुंचाना।

तकनीक का उपयोग राष्ट्रीय हितों को मजबूत करने के लिए करना, न कि उन्हें विकृत करने के लिए।

निष्कर्ष: भविष्य की जंग ‘ब्राउज़र’ में

भू-रणनीतिक संचार दरअसल इरादे के साथ कहानी कहना है। यह श्रोताओं और माध्यमों के साथ बदलता है — चाहे वह बिहार के गांव का पुराना ट्रांजिस्टर हो या मुंबई की इंस्टाग्राम रील।

जीत उसी की होगी जो विश्वसनीयता के साथ चपलता, और गहराई के साथ व्यापकता को मिला सके।

आने वाली पीढ़ी को केवल सूचना उपभोग करना ही नहीं, बल्कि उसे चुनौती देना भी सिखाना होगा।

क्योंकि कल की जंग केवल सीमाओं पर नहीं, बल्कि ब्राउज़रों में लड़ी जाएगी — और जीत उसी की होगी जो वास्तविकता को परिभाषित कर सके, उसे टिकाए रख सके और विकृत होने से बचा सके।

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