हैदराबाद में काटे गए जंगल पर सुप्रीम कोर्ट सख्त: कहा- ‘जितने पेड़ उखाड़े, उससे कई गुना ज्यादा लगाएं’
- सुप्रीम कोर्ट ने हैदराबाद के कंचा गाचीबोवली में काटे गए जंगल को पुनर्जीवित करने का आदेश दिया है और तेलंगाना सरकार को सख्त चेतावनी दी है।
- कोर्ट ने कहा कि तेलंगाना सरकार कहीं और विकास कार्य कर सकती है, लेकिन काटे गए पेड़ों के बदले कई गुना ज्यादा पेड़ लगाना अनिवार्य है।
- तेलंगाना सरकार ने कोर्ट को आश्वासन दिया है कि उसने पेड़ों की कटाई रोक दी है और वह एक संतुलित विकास योजना लेकर आएगी, जिसके बाद कोर्ट स्वतः संज्ञान की कार्यवाही बंद करने पर विचार करेगा।
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 13 अगस्त – हैदराबाद के कंचा गाचीबोवली क्षेत्र में बड़े पैमाने पर हुई पेड़ों की कटाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कड़ा रुख अपनाया है। मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने तेलंगाना सरकार को निर्देश दिया कि वह काटे गए जंगल को पुनर्जीवित करे और जितने पेड़ काटे गए हैं, उससे कई गुना ज्यादा पेड़ लगाए। कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि राज्य आईटी पार्क या अन्य विकास कार्य कहीं और कर सकता है, लेकिन पर्यावरण की कीमत पर नहीं।
तेलंगाना में पेड़ों की कटाई पर रोक का आश्वासन
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का स्वतः संज्ञान (सुओ मोटो) अप्रैल 2025 में लिया था, जब बड़े पैमाने पर वनों की कटाई की खबरें सामने आईं थीं। तेलंगाना सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत को बताया कि पूर्व आदेशों के बाद क्षेत्र में पेड़ों की कटाई रोक दी गई है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य सरकार एक ऐसी व्यापक विकास योजना पर काम कर रही है जो पर्यावरण संरक्षण और शहरी विकास के बीच संतुलन बनाए रखेगी। सिंघवी ने कहा कि इस योजना में थोड़ा समय लगेगा, लेकिन यह सुनिश्चित किया जाएगा कि जंगल और झीलें पूरी तरह सुरक्षित रहें।
‘असली तारीफ’ और 6-8 हफ्तों की मोहलत
राज्य सरकार के इस आश्वासन पर मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा, “अगर आप एक अच्छा प्रस्ताव लेकर आते हैं, तो हम अपनी पुरानी तारीफें वापस लेकर आपको असली तारीफ देंगे।” उन्होंने साफ किया कि अदालत विकास के खिलाफ नहीं है, लेकिन यह विकास टिकाऊ (सस्टेनेबल) होना चाहिए। बेंच ने तेलंगाना सरकार को अपनी नई योजना प्रस्तुत करने के लिए छह से आठ हफ्तों का समय दिया। कोर्ट ने यह भी भरोसा दिलाया कि अगर राज्य एक संतुलित योजना पेश करता है, तो अदालत स्वतः संज्ञान वाली कार्यवाही को वापस लेने पर विचार करेगी।
विकास के साथ पर्यावरण संरक्षण जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह बात दोहराई कि विकास कार्यों का असर जब भी जंगलों या वन्यजीवों के आवास पर पड़े, तो उनके लिए निवारक और क्षतिपूरक उपाय किए जाने चाहिए। कोर्ट की पिछली सुनवाइयों में भी इस मामले पर काफी सख्ती दिखाई गई थी। अदालत ने यहां तक चेतावनी दी थी कि अगर पेड़ों की कटाई में किसी भी अधिकारी, यहां तक कि मुख्य सचिव, की जिम्मेदारी पाई गई, तो उन्हें जेल भी भेजा जा सकता है। यह मामला देश में विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन को लेकर एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम करेगा।