पूर्व कांग्रेस विधायक नीरज शर्मा ने दिवंगत ‘गुरुजी’ शिबू सोरेन को दी श्रद्धांजलि

झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक का निधन, राजनीति के 'एक युग का अंत'।

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  • पूर्व कांग्रेस विधायक नीरज शर्मा ने झारखंड के निर्माता और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक शिबू सोरेन के निधन पर श्रद्धांजलि अर्पित की है।
  • शर्मा ने शिबू सोरेन को आदिवासी समुदाय के उत्थान और झारखंड की पहचान के लिए संघर्ष करने वाला एक महान नेता बताया।
  • नीरज शर्मा ने कहा कि शिबू सोरेन का निधन झारखंड और पूरे देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है।

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 12 अगस्त, 2025 – झारखंड की राजनीति के एक युग का अंत हो गया है। झारखंड के निर्माता और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक, वरिष्ठ नेता शिबू सोरेन का निधन हो गया है। उनके निधन पर देशभर के नेताओं ने शोक व्यक्त किया है। इसी क्रम में, पूर्व कांग्रेस विधायक नीरज शर्मा ने झारखंड के रामगढ़ जिले के निमरा गांव पहुंचकर शिबू सोरेन को श्रद्धांजलि दी और उनके परिजनों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की।

कौन थे शिबू सोरेन?

शिबू सोरेन, जिन्हें झारखंड में उनके समर्थक प्यार से ‘गुरुजी’ कहते थे, ने झारखंड के अलग राज्य के आंदोलन में एक निर्णायक भूमिका निभाई थी। वह झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक थे और कई बार राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे। उन्होंने अपना पूरा जीवन आदिवासी समुदाय के अधिकारों और उनके उत्थान के लिए संघर्ष में समर्पित कर दिया था। उनकी अथक मेहनत और संघर्ष की बदौलत ही 15 नवंबर, 2000 को झारखंड एक अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया था। उनकी मौत को झारखंड की राजनीति के लिए एक बड़ा नुकसान माना जा रहा है।

नीरज शर्मा ने क्या कहा?

पूर्व कांग्रेस विधायक नीरज शर्मा ने शिबू सोरेन के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि, “शिबू सोरेन का जीवन हर किसी के लिए प्रेरणा का स्रोत था।” शर्मा ने उनके संघर्ष को याद करते हुए कहा कि उन्होंने अपना पूरा जीवन झारखंड की पहचान, आदिवासी समुदाय के उत्थान और गरीबों के लिए समर्पित कर दिया था। उन्होंने शिबू सोरेन को एक ऐसा नेता बताया, जिन्होंने बिना थके और बिना रुके अपने लक्ष्य को पाने के लिए संघर्ष किया। नीरज शर्मा ने कहा कि उनकी मृत्यु से झारखंड और पूरे देश को एक अपूरणीय क्षति हुई है।

झारखंड के निर्माण में अहम भूमिका

शिबू सोरेन का नाम झारखंड के इतिहास में हमेशा सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा। उन्होंने 1970 और 80 के दशक में झारखंड राज्य के लिए आंदोलन को एक नई दिशा दी। उनके नेतृत्व में, झारखंड मुक्ति मोर्चा ने न केवल आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी, बल्कि उन्हें राजनीतिक रूप से जागरूक भी किया। यह उनका ही सपना था कि झारखंड के लोगों को एक अलग राज्य मिले, जहां वे अपनी संस्कृति और पहचान को सुरक्षित रख सकें। उनके निधन के बाद, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और बसंत भाई सहित कई नेताओं ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी। इस दौरान वरिष्ठ पत्रकार और ‘गुरुजी’ के पूर्व राजनीतिक सलाहकार अजीत द्विवेदी भी मौजूद थे।

 

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