असम में मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण

विदेशी मतदाताओं पर बड़ी कार्रवाई की तैयारी

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समग्र समाचार सेवा
गुवाहाटी 12 अगस्त – में निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची की विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) प्रक्रिया को हरी झंडी दे दी है। यह कदम बिहार और पश्चिम बंगाल के बाद तीसरे बड़े राज्य में इस तरह की गहन कार्रवाई के रूप में देखा जा रहा है। चुनावी पारदर्शिता और जनसंख्या के वास्तविक स्वरूप को सुनिश्चित करने के लिए यह प्रक्रिया निर्णायक साबित हो सकती है।

आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड से काम नहीं चलेगा

इस बार की समीक्षा प्रक्रिया में पारंपरिक पहचान पत्र जैसे आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड या राशन कार्ड को मान्य दस्तावेज़ नहीं माना जाएगा। निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि केवल वही दस्तावेज मान्य होंगे जो आयोग द्वारा निर्धारित किए गए हैं। यदि कोई व्यक्ति आयोग द्वारा तय दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाता है, तो उसका नाम मतदाता सूची में शामिल नहीं होगा या मौजूदा नाम भी हटा दिया जाएगा।

बड़े पैमाने पर फर्जी मतदाता उजागर होने की उम्मीद

इस प्रक्रिया के तहत अब तक के अनुभव बेहद चौंकाने वाले रहे हैं। पहले हुए संशोधनों में 65 लाख फर्जी मतदाता पकड़े गए थे। अनुमान है कि पश्चिम बंगाल में करीब डेढ़ करोड़ फर्जी मतदाता सामने आ सकते हैं। असम में भी कम से कम 10 लाख फर्जी मतदाताओं के पकड़े जाने की संभावना जताई जा रही है। यह आंकड़ा राज्य की राजनीति और प्रशासन में बड़ा बदलाव ला सकता है।

NRC से भी ज्यादा प्रभावी कदम

असम में NRC (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीज़न्स) की प्रक्रिया के दौरान तकनीकी और प्रशासनिक कमियों के कारण अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाए थे। आरोप लगे कि कई विदेशी नागरिक रिश्वत देकर NRC में अपना नाम दर्ज कराने में सफल हो गए। यहां तक कि बाटद्रवा के मौजूदा विधायक शिवमणि बरा ने भी सार्वजनिक रूप से कहा था कि उन्होंने NRC में कई मुस्लिमों के नाम डलवाए। इसके बावजूद ऐसे दोषियों पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई।

SIR प्रक्रिया में यह खामी नहीं रहने वाली है। इस बार नियम और सज़ा दोनों बेहद कड़े हैं।

कानून के तहत सख्त सज़ा का प्रावधान

Representation of the People Act, 1950 की धारा 13CC और 32 में स्पष्ट प्रावधान है कि यदि मतदाता सूची के पुनरीक्षण के दौरान कोई सरकारी अधिकारी या कर्मचारी घूस लेकर किसी विदेशी का नाम सूची में डालता है, तो उसे तीन महीने से लेकर दो साल तक की सज़ा और जुर्माना दोनों हो सकते हैं।

धारा 32 के तहत दोषी अधिकारी बाद में अदालत में यह दलील नहीं दे सकेगा कि केंद्र सरकार या किसी संगठन ने उसे फंसाया है। यानी, एक बार गलती पकड़ी गई तो “गेम ओवर” – सीधे जेल।

जनजागरूकता की जरूरत

यह भी उतना ही ज़रूरी है कि आम जनता इस प्रक्रिया के महत्व को समझे और सतर्क रहे। यदि नागरिक स्वयं चौकसी बरतें और संदिग्ध नामों की सूचना संबंधित अधिकारियों को दें, तो विदेशी नागरिकों के नाम सूची से हटाना और भी आसान हो जाएगा। साथ ही, राष्ट्रीय संगठन और सामाजिक संस्थाएं भी इसमें सक्रिय भूमिका निभाएं, ताकि एक भी विदेशी नागरिक मतदाता सूची में जगह न बना सके।

असम के लिए ऐतिहासिक अवसर

अनुमान है कि इस बार केवल “नो-नो” यानी निर्धारित दस्तावेज़ न होने के आधार पर ही एक करोड़ नाम सूची से हट सकते हैं। इसका सीधा असर राज्य के राजनीतिक समीकरणों और संसाधनों के वितरण पर पड़ेगा। विदेशी नागरिक जो अब तक सरकारी योजनाओं का लाभ ले रहे थे, उनका अधिकार खत्म होगा और यह लाभ वास्तविक नागरिकों को मिलेगा।

निष्कर्ष

असम में SIR प्रक्रिया केवल मतदाता सूची का संशोधन नहीं, बल्कि राज्य की जनसांख्यिकी और राजनीतिक संरचना में बड़े बदलाव का संकेत है। NRC की सीमाओं को पार करते हुए यह कदम विदेशी नागरिकों की पहचान और उन्हें चुनावी प्रक्रिया से बाहर करने में मील का पत्थर साबित हो सकता है। अब यह जनता, प्रशासन और संगठनों की सामूहिक जिम्मेदारी है कि इस ऐतिहासिक अवसर का पूरा लाभ उठाया जाए, ताकि असम का भविष्य पारदर्शी और सुरक्षित हो।

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