मेडा पाटकर को मानहानि मामले में दोषसिद्धि, सुप्रीम कोर्ट ने 24 साल बाद दी मुहर

24 साल तक चली लंबी कानूनी लड़ाई का अंत, सार्वजनिक जीवन में आरोपों की विश्वसनीयता पर उठे सवाल।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
  • सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को 24 साल पुराने मानहानि मामले में दोषी ठहराने के फैसले को बरकरार रखा है।
  • यह मामला 2001 में दिल्ली के मौजूदा उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने दर्ज कराया था।
  • कोर्ट ने माना कि मेधा पाटकर के बयान झूठे और मानहानिकारक थे, और निचली अदालतों के फैसलों में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 11 अगस्त — सामाजिक कार्यकर्ता और “नर्मदा बचाओ आंदोलन” की नेता मेधा पाटकर को 24 साल पुराने मानहानि मामले में दोषी ठहराने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा है। यह मामला 2001 में दिल्ली के मौजूदा उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना द्वारा दायर किया गया था।

मामले की पृष्ठभूमि

यह विवाद 25 नवंबर 2000 को जारी एक प्रेस नोट से शुरू हुआ, जिसका शीर्षक था—“ट्रू फेस ऑफ पैट्रिअट” (देशभक्त का असली चेहरा)। इसमें मेधा पाटकर ने विनय कुमार सक्सेना पर हवाला लेन-देन में संलिप्त होने, एक वरिष्ठ पत्रकार की पिटाई कराने और ‘घोटालों’ में शामिल होने का आरोप लगाया था। उस समय सक्सेना खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) के सदस्य थे।

विनय कुमार सक्सेना ने इन आरोपों को झूठा और मानहानिकारक बताते हुए 2001 में आपराधिक मानहानि का मामला दर्ज कराया।

निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक

इस मामले में निचली अदालत ने 2003 में मेधा पाटकर को दोषी ठहराया और सजा सुनाई। पाटकर ने इस फैसले के खिलाफ अपील दायर की, लेकिन अपीलीय अदालत ने भी दोषसिद्धि को बरकरार रखा। इसके बाद उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

सुप्रीम कोर्ट में मेधा पाटकर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारीक ने दलील दी कि अपीलीय अदालत ने दो अहम गवाहों की गवाही को नज़रअंदाज़ कर दिया। साथ ही, जिस ईमेल को महत्वपूर्ण सबूत के तौर पर पेश किया गया, उसकी प्रामाणिकता साबित नहीं की गई थी। उन्होंने यह भी कहा कि आरोप सार्वजनिक हित में लगाए गए थे और इसमें कोई आपराधिक मंशा नहीं थी।

वहीं, विनय कुमार सक्सेना की ओर से तर्क दिया गया कि मेधा पाटकर के बयान झूठे, अपमानजनक और बिना किसी ठोस सबूत के थे, जिससे उनकी प्रतिष्ठा को गंभीर क्षति पहुंची।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

11 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत और अपीलीय अदालत के फैसलों में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मेधा पाटकर के बयान स्पष्ट रूप से मानहानिकारक थे और उनके खिलाफ उपलब्ध साक्ष्य पर्याप्त हैं। इस तरह 24 साल बाद इस मामले में अंतिम मुहर लग गई।

प्रतिक्रिया और महत्व

यह फैसला न केवल लंबे समय तक चले कानूनी संघर्ष का अंत है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सार्वजनिक जीवन में किसी पर गंभीर आरोप लगाने से पहले ठोस सबूत आवश्यक हैं। खासकर तब, जब आरोप किसी संवैधानिक पद पर रहे या सार्वजनिक जीवन में सक्रिय व्यक्ति पर लगाए जाएं।

विनय कुमार सक्सेना के समर्थकों ने इस फैसले को “सत्य की जीत” बताया, जबकि मेधा पाटकर के करीबी इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार मान रहे हैं।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.