‘भगवा आतंकवाद’ हिंदुओं को बदनाम करने की साजिश: RSS-VHP ने मालेगांव फैसले के बाद कांग्रेस पर बोला हमला
न्याय की जीत: मालेगांव केस के फैसले से संघ परिवार की हुई पुष्टि
- मालेगांव धमाका केस में आरोपियों के बरी होने के बाद RSS और VHP ने ‘भगवा आतंकवाद’ के आरोपों को खारिज किया।
- संगठनों ने इसे हिंदुओं को बदनाम करने की एक ‘शैतानी कोशिश’ बताया।
- आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार ने कहा, ‘यह उन लोगों के लिए आईना है, जिन्होंने एक धर्म को बदनाम करने की कोशिश की।’
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 1 अगस्त, 2025: 2008 के मालेगांव धमाका मामले में अदालत के फैसले ने एक बार फिर से ‘भगवा आतंकवाद’ की बहस को तेज कर दिया है। इस फैसले के बाद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने संयुक्त रूप से कांग्रेस पर तीखा हमला बोला है। दोनों संगठनों ने ‘भगवा आतंकवाद’ की थ्योरी को खारिज करते हुए इसे हिंदुओं को बदनाम करने की एक ‘शैतानी कोशिश’ बताया है। संगठनों का कहना है कि 17 साल बाद आया यह फैसला उनकी उस बात की पुष्टि करता है, जिसे वे लंबे समय से कहते आ रहे थे।
‘भगवा आतंकवाद’ हिंदुओं को बदनाम करने की साजिश
आरएसएस और वीएचपी के नेताओं ने इस मुद्दे पर एक मजबूत और एकजुट रुख अपनाया है। आरएसएस के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार ने कहा कि मालेगांव केस के फैसले ने ‘भगवा आतंकवाद’ की अफवाह फैलाने वालों को आईना दिखा दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने राजनीतिक लाभ के लिए आतंकवाद को एक धर्म से जोड़कर घिनौना काम किया।
वीएचपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने इस फैसले को ‘कांग्रेस के गाल पर करारा तमाचा’ बताते हुए कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व से हाथ जोड़कर हिंदू समाज से माफी मांगने की मांग की। बंसल ने कहा कि कांग्रेस ने हिंदुओं को आरोपी बनाने के चक्कर में असली गुनहगारों को बचाने की कोशिश की। दोनों संगठनों ने जोर देकर कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म या मजहब नहीं होता।
मालेगांव फैसला: न्याय की जीत और निर्दोषों का सम्मान
आरएसएस और वीएचपी दोनों ने मालेगांव कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए इसे न्याय की जीत बताया है। उनका मानना है कि अदालत ने उन लोगों को करारा जवाब दिया है, जिन्होंने राजनीतिक उद्देश्यों के लिए निर्दोष लोगों को फंसाया और बदनाम किया। बरी हुए सभी आरोपियों को न्याय मिला है, यह हिंदू समुदाय और उन सभी लोगों के लिए एक बड़ी राहत है, जिन्हें इस साजिश के जरिए गलत तरीके से निशाना बनाया गया था।
आरएसएस के एक नेता ने कहा, “यह फैसला दिखाता है कि कैसे एक राजनीतिक दल ने अपने स्वार्थ के लिए एक पूरे समुदाय को कलंकित करने की कोशिश की। हम उन सभी लोगों का सम्मान करते हैं, जिन्होंने इतने सालों तक झूठे आरोपों का सामना किया और अंततः न्याय जीता।”
‘झूठी जांच’ और राजनीतिक प्रतिशोध
इस बीच, मालेगांव धमाके की जांच करने वाली एटीएस टीम के पूर्व अधिकारी महबूब मुजावर ने भी एक सनसनीखेज दावा किया है। उन्होंने कहा कि उन्हें संघ के प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का आदेश मिला था, जिसका एकमात्र मकसद ‘भगवा आतंकवाद’ की थ्योरी को स्थापित करना था। मुजावर ने कहा कि कोर्ट के फैसले ने एटीएस की ‘फर्जी जांच’ को उजागर कर दिया है।
यह मामला एक बार फिर से राजनीतिक प्रतिशोध और वोट बैंक की राजनीति के गंभीर सवालों को सामने ले आया है। आरएसएस और वीएचपी अब इस मुद्दे को आगे भी जोर-शोर से उठाएंगे, जिसका असर आगामी चुनावों और राजनीतिक बहसों में देखने को मिल सकता है।