सोहराई कला भारत की आत्मा: राष्ट्रपति मुर्मू ने पारंपरिक कला रूपों के संरक्षण पर दिया जोर

राष्ट्रपति मुर्मू ने किया सोहराई कला की तारीफ, कहा - 'यह सिर्फ पेंटिंग नहीं, हमारी जीवनशैली का प्रतिबिंब है'

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  • राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोहराई कला को ‘भारत की आत्मा’ बताया और इसके संरक्षण पर जोर दिया।
  • उन्होंने कहा कि पारंपरिक कला रूप हमारी संस्कृति और विरासत का अभिन्न अंग हैं।
  • राष्ट्रपति ने कलाकारों को प्रोत्साहन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में उनके योगदान को रेखांकित किया।

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 26 जुलाई, 2025: भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज पारंपरिक भारतीय कला रूपों के महत्व पर प्रकाश डाला, विशेष रूप से झारखंड की प्रसिद्ध सोहराई कला की। उन्होंने सोहराई कला को ‘भारत की आत्मा’ बताते हुए इसके संरक्षण और संवर्धन की आवश्यकता पर जोर दिया। राष्ट्रपति ने कहा कि ये कला रूप केवल चित्रकला नहीं हैं, बल्कि ये हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, सामाजिक जीवन और पर्यावरणीय चेतना का प्रतिबिंब हैं। उनका यह बयान पारंपरिक कलाओं को राष्ट्रीय पहचान और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सशक्तिकरण के एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में मान्यता देने के लिए आया है।

सोहराई कला: संस्कृति और जीवनशैली का संगम

राष्ट्रपति मुर्मू ने अपने संबोधन में कहा कि सोहराई कला सिर्फ एक पेंटिंग नहीं है, बल्कि यह आदिवासी समुदायों, खासकर झारखंड के हाज़ारीबाग़ क्षेत्र के लोगों की जीवनशैली और प्रकृति के साथ उनके गहरे संबंध का एक जीवंत प्रतीक है। यह कला मुख्य रूप से फसल कटाई के मौसम और मवेशियों के त्योहारों के दौरान घरों की दीवारों पर बनाई जाती है। इसमें प्रकृति से प्रेरित रूपांकनों जैसे पेड़, फूल, जानवर और ज्यामितीय पैटर्न का उपयोग किया जाता है, जो प्राकृतिक रंगों से तैयार किए जाते हैं।

राष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि भारत की जनजातीय कलाएं और पारंपरिक कला रूप न केवल सौंदर्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वे समुदायों के इतिहास, विश्वासों और रीति-रिवाजों को भी बयां करते हैं। उन्होंने कहा कि इन कलाओं का संरक्षण केवल अतीत को संजोना नहीं है, बल्कि यह भविष्य की पीढ़ियों को हमारी समृद्ध विरासत से जोड़ने का एक तरीका भी है।

कलाकारों का सम्मान और आर्थिक सशक्तिकरण

राष्ट्रपति मुर्मू ने उन प्रतिभाशाली कलाकारों के योगदान की सराहना की जो इन पारंपरिक कला रूपों को जीवित रखे हुए हैं। उन्होंने कहा कि इन कलाकारों को उचित मंच और प्रोत्साहन मिलना चाहिए ताकि वे अपनी कला को आगे बढ़ा सकें और उससे आजीविका कमा सकें। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि पारंपरिक कलाओं को बढ़ावा देने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है और स्थानीय समुदायों का सशक्तिकरण होता है, खासकर महिला कलाकारों का।

कई स्वैच्छिक संगठन और सरकारी पहल सोहराई जैसी कलाओं को शहरी और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं। इन प्रयासों से कलाकारों को उचित मूल्य मिल रहा है और उनकी कला को वैश्विक पहचान मिल रही है। राष्ट्रपति का यह बयान ऐसे प्रयासों को और बढ़ावा देगा।

सांस्कृतिक संरक्षण और राष्ट्रीय पहचान

राष्ट्रपति मुर्मू ने भारत की ‘अनेकता में एकता’ की भावना को रेखांकित किया, जहां प्रत्येक क्षेत्र की अपनी अनूठी कला और संस्कृति है जो राष्ट्रीय पहचान को समृद्ध करती है। उन्होंने कहा कि सोहराई जैसी कलाएं भारत की विविधता का प्रतिनिधित्व करती हैं और हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखती हैं।

यह संबोधन ऐसे समय में आया है जब सरकार ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी पहलों के माध्यम से देश की सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। पारंपरिक कलाओं को बढ़ावा देने से न केवल सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा मिलता है, बल्कि यह ‘लोकल फॉर वोकल’ के विचार को भी मजबूत करता है। राष्ट्रपति का संदेश स्पष्ट है: हमारी कला और संस्कृति हमारी पहचान है, और इसका संरक्षण हमारी साझा जिम्मेदारी है। यह हमारे कलाकारों को समर्थन देने और अपनी समृद्ध विरासत को गर्व के साथ दुनिया के सामने प्रस्तुत करने का आह्वान भी है।

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