पूनम शर्मा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीसरी पारी के शुरुआती दो महीनों में जो राजनीतिक घटनाक्रम सामने आए हैं, वे साफ संकेत देते हैं कि सत्ता और संगठन—दोनों में बड़े फैसले जल्द लिए जा सकते हैं। हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के मामले की सक्रियता, अमित शाह के इधर-उधर के दौरे, और राष्ट्रपति से हो रही बैठकों की आवृत्ति एक बड़ा संकेत दे रही हैं—क्या भाजपा के भीतर नेतृत्व परिवर्तन की तैयारी चल रही है?
अमित शाह की गृह मंत्री से संगठन में वापसी की अटकलें
सूत्रों की मानें तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा जोरों पर है। मौजूदा अध्यक्ष जे. पी. नड्डा को पहले ही दो बार एक्सटेंशन दिया जा चुका है। पार्टी के अंदरूनी गलियारों में यह चर्चा आम है कि संगठन में अब नए सिरे से ऊर्जा भरने के लिए मोदी फिर से शाह पर दांव खेलने वाले हैं।
नड्डा की कार्यशैली और संगठन पर पकड़ को लेकर कई सवाल उठ चुके हैं। विशेषकर लोकसभा चुनावों के बाद भाजपा की उत्तर भारत में सीटों की गिरावट और बंगाल-बिहार में कमजोर प्रदर्शन ने यह साफ कर दिया है कि पार्टी को फिर से ‘मिशन मोड’ में लाने के लिए शाह जैसा रणनीतिकार चाहिए।
योगी आदित्यनाथ की भूमिका में बदलाव?
एक और चर्चित नाम है—योगी आदित्यनाथ का। क्या उन्हें उत्तर प्रदेश से हटाकर केंद्र में कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है? कई बार यह चर्चा उठी है कि योगी को गृहमंत्री बनाया जाए या उन्हें उपप्रधानमंत्री का पद दिया जाए। हालांकि, उत्तर प्रदेश की राजनीति में उनकी पकड़ और लोकप्रियता इतनी गहरी है कि उन्हें वहां से हटाना खुद भाजपा के लिए आत्मघाती कदम हो सकता है।
परंतु केंद्र में यदि अमित शाह को संगठन की जिम्मेदारी दी जाती है, तो गृहमंत्रालय खाली होगा। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी को किसी मजबूत, निर्णायक और प्रशासनिक अनुभव वाले नेता की जरूरत होगी, और योगी आदित्यनाथ इस भूमिका के सबसे प्रबल दावेदार माने जा सकते हैं।
विपक्ष की रणनीति और मानसून सत्र का दबाव
विपक्ष इस समय सरकार पर हमलावर है—मणिपुर से लेकर संसद में अविश्वास प्रस्ताव तक। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने एक साथ 46 सांसदों को सस्पेंड करके संदेश दिया है कि राज्यसभा में सरकार किसी भी प्रकार की अराजकता बर्दाश्त नहीं करेगी। लेकिन इसी के साथ यह भी स्पष्ट है कि सरकार अब निर्णायक फैसलों की ओर बढ़ रही है।
मोदी के तीसरे कार्यकाल में अब तक बहुत सीमित फैसले लिए गए हैं, और संगठन के भीतर बेचैनी का आलम है। यह माना जा रहा है कि मोदी अब एक बार फिर अपने भरोसेमंद सहयोगी शाह को संगठन में लाकर पार्टी को 2029 के लिए तैयार करना चाहते हैं।
क्या अमित शाह के लिए संगठन अधिक उपयुक्त है?
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि अमित शाह ने 2014 से 2019 तक भाजपा को जिस ऊँचाई पर पहुँचाया , वह भारतीय राजनीति में एक केस स्टडी बन चुका है। उनकी संगठनात्मक क्षमता, जमीनी पकड़ और राज्यवार रणनीतियों में महारत ने पार्टी को लगातार चुनावों में जीत दिलाई।
गृह मंत्री के रूप में उन्होंने CAA-NRC जैसे बड़े और विवादास्पद फैसले लिए, लेकिन कोरोना और कानून व्यवस्था के मुद्दों पर उनकी नीति को लेकर आलोचनाएं भी हुईं। अब जबकि देश को एक बार फिर संगठन की मजबूती की जरूरत है, तो अमित शाह को फिर से अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा अस्वाभाविक नहीं है।
संभावित कैबिनेट फेरबदल: संकेत और समय
प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्रा से लौटने के बाद यह कयास लगाए जा रहे हैं कि एक बड़ा कैबिनेट फेरबदल हो सकता है। लगातार हो रही उच्चस्तरीय बैठकें, राष्ट्रपति से मुलाकातें और मंत्रियों के बीच चर्चा एक बड़े निर्णय की ओर इशारा करती हैं।
संभव है कि अगला भाजपा अध्यक्ष नियुक्त किया जाए और साथ ही गृहमंत्री की जिम्मेदारी नए सिरे से तय हो। यदि योगी आदित्यनाथ को यह जिम्मेदारी मिलती है, तो यह उनके लिए एक बड़ा प्रमोशन होगा, और भाजपा को उत्तर प्रदेश में नया नेतृत्व खड़ा करना होगा।
क्या देश को मोदी के बड़े फैसले का इंतज़ार करना चाहिए?
देश की राजनीति में जब भी नरेंद्र मोदी चुप होते हैं, कुछ बड़ा जरूर होता है। इस समय उनका मौन, अमित शाह की सीमित सक्रियता, और संगठन की उथल-पुथल—तीनों मिलकर संकेत दे रहे हैं कि कुछ बड़ा पक रहा है। शाह की वापसी भाजपा अध्यक्ष के रूप में, योगी का केंद्र में आना, और संगठन-सत्ता का पुनर्संतुलन—ये सब मोदी के तीसरे कार्यकाल की नई दिशा तय करेंगे।
अब देखना यह होगा कि क्या मानसून सत्र के बाद भाजपा और देश को एक नई संरचना मिलती है। क्या मोदी एक बार फिर चौंकाने वाला निर्णय लेंगे? आने वाले सप्ताहों में इसका उत्तर मिल सकता है।