तेजस्वी यादव की ‘चुनाव बहिष्कार’ की धमकी: बिहार में वोटर लिस्ट पर संग्राम

बिहार की सियासत में भूचाल: क्या तेजस्वी यादव चुनाव का करेंगे बहिष्कार?

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  • तेजस्वी यादव ने बिहार विधानसभा चुनाव के बहिष्कार की धमकी दी, वोटर लिस्ट में धांधली का आरोप।
  • 53 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम हटाने की प्रक्रिया पर महागठबंधन का विरोध, इसे विपक्षी वोटरों को निशाना बनाने की साजिश बताया।
  • चुनाव आयोग ने प्रक्रिया को सही बताया, वहीं बीजेपी ने इसे तेजस्वी की हताशा करार दिया है।

समग्र समाचार सेवा
पटना, 24 जुलाई, 2025: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राज्य की सियासत में जबरदस्त घमासान मचा हुआ है। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता और बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने हाल ही में एक सनसनीखेज बयान देते हुए आगामी विधानसभा चुनावों के बहिष्कार की धमकी दी है। उनका आरोप है कि चुनाव आयोग द्वारा चल रहे मतदाता सूची के ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ (Special Intensive Revision – SIR) अभियान की आड़ में बड़े पैमाने पर धांधली की जा रही है, जिसका सीधा असर महागठबंधन के समर्थक मतदाताओं पर पड़ रहा है। इस बयान ने न केवल बिहार में राजनीतिक हलचल तेज कर दी है, बल्कि देश भर में इस पर बहस छिड़ गई है।

वोटर लिस्ट पर गहरा विवाद: लाखों नाम हटाने का आरोप

तेजस्वी यादव का मुख्य आरोप यह है कि मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान के तहत लगभग 53 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम हटाए जा रहे हैं, जिनमें से बड़ी संख्या में वे मतदाता शामिल हैं जो परंपरागत रूप से महागठबंधन के समर्थक माने जाते हैं। उन्होंने कहा, “अगर चुनाव में धांधली हो रही है, तो लोग वोट क्यों देंगे? ऐसे में सरकार को एक्सटेंशन दे देना चाहिए।” तेजस्वी ने यह भी इशारा किया कि अगर महागठबंधन और जनता इस दिशा में सहमत होती है, तो वे चुनाव बहिष्कार पर गंभीरता से विचार करेंगे। उन्होंने चुनाव आयोग पर भाजपा और सत्तारूढ़ एनडीए के इशारे पर काम करने का भी आरोप लगाया।

विपक्षी खेमे का दावा है कि यह पूरी प्रक्रिया एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा है, जिसके तहत गरीबों और हाशिए पर पड़े वर्गों के मतदाताओं को मतदान के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। उनका यह भी तर्क है कि यह अभियान समय से बहुत पहले और ऐसे समय में क्यों शुरू किया गया जब चुनाव नजदीक हैं। विपक्ष ने विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान इस मुद्दे पर जमकर हंगामा किया, जिससे सदन की कार्यवाही भी बाधित हुई।

चुनाव आयोग और एनडीए का पलटवार

दूसरी ओर, चुनाव आयोग (Election Commission) ने तेजस्वी यादव के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। चुनाव आयोग के अधिकारियों के अनुसार, एसआईआर का उद्देश्य मतदाता सूची को अपडेट करना और फर्जी, मृत या स्थानांतरित हो चुके मतदाताओं के नाम हटाना है, ताकि निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित हो सकें। चुनाव आयोग ने बताया कि बिहार में 7.89 करोड़ मतदाताओं में से 97.30% ने फॉर्म भरे हैं। इनमें से 52.3 लाख मतदाता अपने पते पर नहीं मिले, जिनमें 18.66 लाख मृत, 26.01 लाख स्थानांतरित, 7.09 लाख डुप्लिकेट और 1 लाख अनट्रेसेबल हैं। आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया 1 लाख बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) और 1.5 लाख राजनीतिक एजेंटों (विपक्षी दलों सहित) की देखरेख में चल रही है।

वहीं, सत्ताधारी एनडीए (NDA) ने तेजस्वी यादव के बयान को उनकी ‘हताशा’ और ‘हार के डर’ का प्रतीक बताया है। भाजपा नेताओं ने कहा कि तेजस्वी यादव जनादेश का सामना करने से बचने के लिए ऐसे बयान दे रहे हैं। उनका मानना है कि लोकसभा चुनाव 2024 में महागठबंधन को मिली हार (केवल 9 सीटें, जबकि एनडीए को 31) के बाद तेजस्वी अपनी जमीन खिसकती देख रहे हैं। भाजपा ने तेजस्वी के इस बयान को “लोकतंत्र पर सीधा हमला” और “खतरनाक” भी करार दिया है, यह कहते हुए कि लोकतंत्र में कोई भी पार्टी चुनाव बहिष्कार की बात नहीं करती है।

सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला, आगे की रणनीति

मतदाता सूची पुनरीक्षण का यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच गया है, जहाँ 28 जुलाई को इस पर फिर से सुनवाई होनी है। कांग्रेस सहित ‘इंडिया’ ब्लॉक के अन्य घटक दल भी तेजस्वी यादव के इस मुद्दे पर समर्थन में खड़े हैं। तेजस्वी यादव ने स्पष्ट किया है कि वह अपने सहयोगी दलों और जनता की राय जानने के बाद ही चुनाव बहिष्कार पर अंतिम निर्णय लेंगे।

यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि तेजस्वी यादव की यह “प्रेशर पॉलिटिक्स” चुनाव आयोग और सरकार पर कितना दबाव बना पाती है। बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले यह मुद्दा एक बड़ा सियासी घमासान पैदा कर चुका है, और इसका परिणाम राज्य की राजनीतिक दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

 

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