पूनम शर्मा
भारत में जबरन और धोखे से कराए गए धर्मांतरण की घटनाएँ पिछले कुछ वर्षों में बढ़ती जा रही हैं। इसके पीछे न केवल आंतरिक कट्टरपंथी शक्तियों का हाथ है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय फंडिंग और नेटवर्क भी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। इन परिस्थितियों में कई राज्य सरकारों ने धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम (Freedom of Religion Acts) के अंतर्गत जबरन धर्मांतरण को अपराध घोषित किया है। यह कानून धर्मांतरण को बल, धोखाधड़ी, लालच, या शादी जैसे बहानों से कराने पर सख्त दंड का प्रावधान करता है।
अब तक भारत के 12 से अधिक राज्यों—जैसे कि अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश—ने इस तरह के कानून बनाए हैं या बनाने की प्रक्रिया में हैं।
अरुणाचल प्रदेश
अरुणाचल प्रदेश में 1978 में पारित ‘धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम’ को लागू करने की दिशा में राज्य सरकार ने 2024 में आवश्यक नियमावली तैयार की। यह कानून बल, लालच या धोखे से धर्मांतरण को अपराध मानता है। दोषी पाए जाने पर 2 साल की जेल और 10,000 रुपये तक जुर्माना लगाया जा सकता है। इस कानून का उद्देश्य राज्य की मूल धार्मिक परंपराओं की रक्षा करना है।
छत्तीसगढ़
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने आदिवासी समाज को धर्मांतरण से बचाने के लिए सख्त कानून की घोषणा की है। प्रस्तावित कानून के अनुसार, महिलाओं, बच्चों, अनुसूचित जाति/जनजातियों का जबरन धर्मांतरण 2 से 10 साल की सजा और 25,000 से 50,000 रुपये तक जुर्माने के दायरे में आएगा। दस लोगों से अधिक का सामूहिक धर्मांतरण कराने वालों को कड़ी सजा मिलेगी और पीड़ितों को 5 लाख रुपये तक का मुआवजा दिया जाएगा।
गुजरात
गुजरात ने 2021 में ‘धार्मिक स्वतंत्रता संशोधन विधेयक’ लाकर जबरन विवाह और धर्मांतरण पर नकेल कसी। यह कानून लव जिहाद जैसी घटनाओं को ध्यान में रखते हुए लाया गया। कानून के अंतर्गत 3 से 5 साल की जेल, 2 लाख रुपये का जुर्माना, और अगर पीड़िता अनुसूचित जाति/जनजाति से है तो 4 से 7 साल की जेल और 3 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाता है। यह अपराध ग़ैर-जमानती है।
हरियाणा
2022 में हरियाणा ने ‘धर्मांतरण निषेध विधेयक’ पारित किया, जो झूठ, बल, प्रभाव, शादी या लालच के माध्यम से धर्मांतरण को दंडनीय बनाता है। 1 से 5 साल की जेल और कम से कम 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाता है। यदि पीड़ित महिला, नाबालिग या अनुसूचित जाति/जनजाति का सदस्य है तो 4 से 10 साल की सजा और 3 लाख रुपये का जुर्माना तय है।
हिमाचल प्रदेश
2019 में संशोधित ‘धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम’ में सजा को 7 से बढ़ाकर 10 साल किया गया। धोखे से शादी कर धर्मांतरण कराने वालों को कम से कम 3 साल की सजा और 1 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। सामूहिक धर्मांतरण की स्थिति में 7 साल की सजा और 50,000 रुपये जुर्माना तय है।
झारखंड
झारखंड ने 2017 में ‘धर्म स्वतंत्रता अधिनियम’ लागू किया। यह कानून बलपूर्वक या धोखे से धर्मांतरण को दंडनीय बनाता है। 3 साल तक की सजा और 50,000 रुपये तक जुर्माना, और यदि पीड़ित महिला, नाबालिग या अनुसूचित जाति/जनजाति से है, तो सजा बढ़ा दी जाती है। धर्म परिवर्तन से पहले जिलाधिकारी की अनुमति लेना आवश्यक है।
कर्नाटक
2022 का अधिनियम बल, धोखे, शादी के झांसे आदि से धर्म परिवर्तन को अपराध घोषित करता है। 3 से 5 साल की सजा और 25,000 रुपये का जुर्माना निर्धारित किया गया है। यदि पीड़ित महिला, नाबालिग, मानसिक रूप से अस्थिर या अनुसूचित जाति/जनजाति से है, तो 10 साल तक की सजा दी जा सकती है। हालांकि 2023 में कांग्रेस सरकार ने इस कानून को समाप्त करने की घोषणा की।
मध्य प्रदेश
2021 में लाया गया ‘धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम’ लव जिहाद जैसी गतिविधियों को रोकने के लिए था। धर्मांतरण के उद्देश्य से की गई शादी अवैध मानी जाएगी। अपराध ग़ैर-जमानती होगा। 1 से 5 साल की जेल और 25,000 रुपये तक का जुर्माना, वहीं सामूहिक धर्मांतरण पर 5 से 10 साल की जेल और 1 लाख रुपये जुर्माना। संबंधित स्कूल, चर्च या मदरसे की सरकारी सहायता और ज़मीन छीनी जा सकती है।
ओडिशा
भारत में सबसे पहले 1967 में ओडिशा ने धर्मांतरण विरोधी कानून बनाया। इसमें बल, लालच या धोखे से धर्मांतरण पर 1 साल की जेल और 5,000 रुपये का जुर्माना है। यदि पीड़ित महिला, बच्चा या अनुसूचित जाति/जनजाति का हो, तो सजा दोगुनी हो जाती है। साथ ही, धर्मांतरण से पहले 15 दिन पूर्व सूचना देना अनिवार्य है।
राजस्थान
2025 का विधेयक कहता है कि धर्म परिवर्तन से 60 दिन पहले जिलाधिकारी को आवेदन देना होगा। यदि धर्मांतरण जबरन हुआ हो, तो 2 से 10 साल की जेल और 50,000 रुपये जुर्माना, और पीड़ित यदि महिला, बच्चा या अनुसूचित जाति/जनजाति का हो, तो 25,000 रुपये अतिरिक्त जुर्माना।
उत्तराखंड
2018 का ‘धर्म स्वतंत्रता अधिनियम’ बलपूर्वक धर्म परिवर्तन को ग़ैर-जमानती अपराध घोषित करता है। 1 से 5 साल की सजा और अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए 2 साल की न्यूनतम सजा तय है। धर्मांतरण से पहले शपथ पत्र देकर जिलाधिकारी को सूचित करना अनिवार्य है।
उत्तर प्रदेश
2024 में संशोधित कानून के अनुसार, बलपूर्वक धर्मांतरण पर 3 से 10 साल की जेल, सामूहिक धर्मांतरण पर 7 से 14 साल और विदेशी फंडिंग पाए जाने पर 20 साल से आजीवन कारावास का प्रावधान है। यदि पीड़िता महिला, बच्चा या अनुसूचित जाति से हो और जबरन शादी या मानव तस्करी हुई हो, तो सजा आजीवन कारावास तक बढ़ सकती है।
निष्कर्ष
भारत के विभिन्न राज्यों में बनाए गए ये कानून न केवल हिंदू समाज की रक्षा करते हैं, बल्कि देश की सांस्कृतिक एकता और धार्मिक स्वतंत्रता को भी सुनिश्चित करते हैं। जबरन धर्मांतरण, विशेषकर लव जिहाद और विदेशी फंडिंग के नेटवर्क के खिलाफ सख्त कदम उठाना आज की आवश्यकता है। इन कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन से ही भारत की धार्मिक और सामाजिक अखंडता को सुरक्षित रखा जा सकता है।