कंगना रनौत ने खोली सांसदों के खर्चों की पोल, बताया ‘महंगा शौक’ है राजनीति!

सांसद की सैलरी पर उठा विवाद, सोशल मीडिया पर छिड़ी बहस

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  • कंगना रनौत ने सांसद की सैलरी को ‘महंगा शौक’ बताया।
  • ₹1.24 लाख मासिक सैलरी में से निजी खर्चों के बाद बहुत कम बचते हैं।
  • राजनीति में ईमानदारी से टिके रहने के लिए निजी संसाधनों की जरूरत।

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 18 जुलाई 2025: हाल ही में सांसद बनीं अभिनेत्री कंगना रनौत ने एक इंटरव्यू में भारतीय राजनीति की वित्तीय चुनौतियों पर खुलकर बात की है। उन्होंने कहा है कि एक सांसद की मासिक सैलरी ₹1.24 लाख होने के बावजूद, उन्हें अपनी जेब से लाखों रुपये खर्च करने पड़ते हैं, जिससे राजनीति “एक बहुत महंगा शौक” बन जाती है। उनके इस बयान ने सोशल मीडिया पर एक नई बहस छेड़ दी है, जहां कुछ लोग उनके विचारों का समर्थन कर रहे हैं, तो कुछ आलोचना कर रहे हैं।

सांसद की सैलरी: कितनी आती है, कितनी जाती है?

कंगना के बयान के अनुसार, सांसदों को सरकारी बेसिक सैलरी के साथ ₹70,000 क्षेत्रीय भत्ता और ₹60,000 कार्यालय खर्च की मंजूरी होती है। मार्च 2025 में सांसदों की तनख्वाह में 24% की वृद्धि हुई थी, जिसके बाद कुल ₹1,24,000 मासिक मिलते हैं। हालांकि, कंगना का कहना है कि कुक और ड्राइवर के वेतन काटने के बाद उनके पास मुश्किल से ₹50-60 हजार ही बचते हैं। उनका आरोप है कि राजस्व फोन, स्टाफ, यात्रा, स्टेशनरी, ईंधन और आवास जैसे कई खर्चे सांसदों को खुद ही उठाने पड़ते हैं।

“लाखों में होता है खर्च”: यात्रा और स्टाफ का बोझ

मंडी क्षेत्र से सांसद बनीं कंगना ने अपने निर्वाचन क्षेत्र की विशालता का हवाला दिया। उन्होंने बताया कि उन्हें मंडी क्षेत्र में अक्सर 300-400 किलोमीटर की यात्राएँ करनी पड़ती हैं, जिससे लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं। कंगना ने यह भी कहा, “अगर आपको स्टाफ के साथ यात्रा करनी है, तो खर्च लाखों में होता है।” उनके मुताबिक, यह दर्शाता है कि सरकारी वेतन केवल एक छोटा सा हिस्सा है, जबकि वास्तविक खर्च कहीं अधिक है।

राजनीति एक ‘प्रोफेशन’ नहीं, ‘ईमानदारी’ की चुनौती

कंगना रनौत का मानना है कि राजनीति को “प्रोफेशन” से अलग नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अगर कोई राजनेता ईमानदार है, तो उसे नौकरी भी करनी होगी या अन्य तरीकों से फंड जुटाना होगा। उन्होंने बताया कि बहुत से सांसद इन भारी खर्चों को पूरा करने के लिए वकील या अपना बिजनेस करते हैं। मीडिया रिपोर्टों ने उनके बयान को राजनीति की महंगी प्रकृति की सच्चाई के रूप में देखा है, जहां ईमानदार लोगों के लिए टिके रहना मुश्किल होता है।

MPLADS फंड और उसके उपयोग की सीमाएं

सांसदों को अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास के लिए MPLADS (सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना) के रूप में प्रति वर्ष ₹5 करोड़ मिलते हैं। हालांकि, कंगना ने बताया कि इस फंड के उपयोग में भी कई नियम और सीमाएं हैं। विश्लेषण में यह भी सामने आया है कि कई सांसद MPLADS का पूरा उपयोग नहीं कर पाते, क्योंकि उसका पारदर्शी और नियमों के अनुसार उपयोग करना जटिल होता है। यह स्थिति सांसदों को अपने निजी संसाधनों पर अधिक निर्भर रहने के लिए मजबूर करती है।

अमिताभ बच्चन का उदाहरण और ‘नेट सैलरी’ का सवाल

कंगना ने दिग्गज अभिनेता अमिताभ बच्चन का भी जिक्र किया, जिन्होंने कुछ समय के लिए राजनीति में प्रवेश किया था। कंगना के अनुसार, राजनीति का जोखिम और खर्च उन्हें “महंगा पड़ा”। उनका यह बयान इस बात पर जोर देता है कि राजनीति में सिर्फ सरकारी वेतन से गुज़ारा मुमकिन नहीं है, और ₹50,000 की ‘नेट सैलरी’ से एक सांसद का जीवन चलना मुश्किल है। यह सवाल उठाता है कि क्या वर्तमान वेतन संरचना ईमानदार और योग्य व्यक्तियों को राजनीति में आने और टिके रहने से हतोत्साहित करती है।

सोशल मीडिया पर छिड़ी बहस

कंगना रनौत के इस बयान को लेकर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं। एक तरफ, कुछ लोग उनकी बात का समर्थन करते हुए कहते हैं कि यह राजनीति की जमीनी हकीकत है, जहां खर्च बहुत ज्यादा हैं। वहीं, दूसरी ओर, कुछ लोग उनकी आलोचना कर रहे हैं और सवाल उठा रहे हैं कि अगर राजनीति इतनी महंगी है, तो राजनेता इससे इतना धन कैसे कमाते हैं। यह बहस भारतीय राजनीति की वित्तीय पारदर्शिता और सांसदों के वेतन-भत्तों पर एक नई चर्चा का विषय बन गई है।

 

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