तमिलनाडु :‘कस्टडी’ में क्रूरता, सरकार चुप

अजीत कुमार की पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने खोली पुलिस बर्बरता की परतें

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समग्र समाचार सेवा
चेन्नई, 4 जुलाई –तमिलनाडु में मंदिर रक्षक अजीत कुमार की पुलिस हिरासत में हुई मौत अब राज्य सरकार के लिए एक शर्मनाक और खतरनाक मानवाधिकार उल्लंघन का प्रतीक बन गई है।  पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार अजीत कुमार के शरीर पर कुल 44 गंभीर चोटों के निशान मिले हैं, जिनमें मांसपेशियों तक गहरी सूजन, मस्तिष्क में रक्तस्राव, और आंतरिक अंगों की चोटें शामिल हैं। यह स्पष्ट रूप से अत्यधिक और लगातार शारीरिक उत्पीड़न को दर्शाता है।

यह सवाल अब हर किसी के मन में है कि क्या तमिलनाडु की पुलिस को कानून से ऊपर मान लिया गया है? पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सिर, छाती, हाथ-पैर और आंतरिक अंगों पर कई जगहों पर 28 सेमी तक लंबे, गहरे और समांतर चोटों के निशान पाए गए हैं — जो स्पष्ट रूप से डंडों, रॉड्स या लाठियों से की गई पिटाई का प्रमाण हैं।
मस्तिष्क के दोनों लोब्स में रक्तस्राव (cerebral haemorrhage), खोपड़ी पर गहरे नीले निशान (ecchymosis), और स्कैल्प के नीचे सूजन (subscalp contusion) यह दर्शाते हैं कि अजीत के सिर पर बार-बार प्रहार किया गया था — जिससे उनकी मौत होना तय था।

चोटें शरीर के ऐसे हिस्सों पर पाई गई हैं जिन्हें आम तौर पर कपड़ों या शरीर की संरचना से छिपाया जा सकता है — जैसे पैर के तलवे और नितंब। यह दिखाता है कि उसे इस तरह प्रताड़ित किया गया ताकि बाहरी दुनिया को कुछ न दिखे, पर भीतर से शरीर टूट जाए।
यह सिर्फ एक हत्या नहीं, एक सोच-समझकर की गई राज्य प्रायोजित हत्या है। तमिलनाडु सरकार और उसकी पुलिस प्रणाली को कठघरे में खड़ा करना ज़रूरी है, वरना यह घटनाएँ जारी रहेंगी और ‘कानून के रखवाले’ ही जनता के जल्लाद बन जाएँगे।
सरकार चुप क्यों है?
राज्य सरकार ने अब तक न तो जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की है और न ही पीड़ित परिवार को कोई न्याय दिलाने की ठोस प्रक्रिया शुरू की है। क्या यही है ‘ड्रविड़ मॉडल’ की असली तस्वीर? मानवाधिकार आयोग और केंद्र सरकार को इस पर संज्ञान लेना चाहिए।

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