क्या शी जिनपिंग अस्वस्थ हैं? हार्ट अटैक, तख्तापलट और चीन की सत्ताधारी साम्राज्य में तूफान!

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पूनम शर्मा
बीजिंग शांत दिख रहा है, लेकिन झोंगनानहाई की लाल दीवारों के भीतर एक राजनीतिक ज्वालामुखी फटने को तैयार है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) इस समय अपने सबसे बड़े सत्ता संकट से गुजर रही है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग—जिसे दुनिया ने ‘आजीवन सम्राट’ बना देखा—के बारे में अफवाह है कि उन्हें एक नहीं, बल्कि तीन बार हार्ट अटैक आ चुका है। उनके अचानक गायब हो जाना, वफादार अधिकारियों की बर्खास्तगी और ‘मौन तख्तापलट’ की सुगबुगाहट ने वैश्विक खुफिया एजेंसियों में हलचल मचा दी है।
सवाल अब ये है:
क्या शी जिनपिंग अब भी जीवित हैं और सत्ता में हैं?
या चीन एक नए युग में दाखिल हो चुका है—बिना दुनिया को बताए?
शी जिनपिंग कहां हैं? उनका ‘गायब हो जाना’ रहस्य क्यों बन गया है?
एशिया के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अजीब पैटर्न नजर आ रहा है—शी जिनपिंग की सार्वजनिक उपस्थिति लगभग बंद हो चुकी है।
उन्होंने मई और जून में कोई बड़ा कार्यक्रम नहीं किया। BRICS जैसे अहम शिखर सम्मेलनों से भी गायब रहे। चीनी जनता तक को आश्वस्त नहीं किया गया।

कई सूत्रों का दावा है कि मई में उन्हें गंभीर हार्ट अटैक आया और तब से वे या तो कोमा में हैं, या किसी सैन्य अस्पताल में अलग-थलग। कुछ का मानना है कि वे परदे के पीछे से सत्ता चला रहे हैं।

सरकारी चीनी मीडिया इस पूरे मामले पर बिल्कुल चुप है। और चीन जैसा राष्ट्र, जहां सत्ता हर दृश्य को योजनाबद्ध ढंग से दिखाती है, वहां ये चुप्पी बहुत कुछ कहती है।

वफादारों की सफाई: क्या हो चुका है ‘मौन तख्तापलट’?
शी के करीबी अधिकारियों को बेतहाशा हटाया जा रहा है:

खेल मंत्रालय, विधि, सेना, मीडिया और प्रचार विभागों में शी के खास लोगों को गिरफ्तार या बर्खास्त किया गया।

सैकड़ों अधिकारी जिनकी नियुक्ति स्वयं शी ने की थी—अब या तो जेल में हैं या गायब।

30 जून को पार्टी की गुप्त बैठक हुई जिसमें “पार्टी के ढांचे को दोबारा तय करने” और “कमेटियों को जवाबदेह बनाने” की बात हुई। कम से कम 300 पदाधिकारी बाहर कर दिए गए।

यह कोई सामान्य “भ्रष्टाचार विरोधी अभियान” नहीं लगता। यह सत्ता की पुनर्गठना है—या फिर शी के नाम पर चलाया जा रहा तख्तापलट, जब वे स्वयं शारीरिक रूप से अक्षम हैं।

लेकिन… 1 जुलाई को तो शी फिर दिखे?
1 जुलाई को शी जिनपिंग ने एक “आर्थिक शिखर सम्मेलन” की अध्यक्षता की। उन्होंने चीन की 2030 तक की विकास रणनीति पर बातें कीं।

तो क्या वे जीवित हैं और स्वस्थ भी?

या वह पहले से रिकॉर्ड किया गया वीडियो था?
या कोई और था जो पर्दे के पीछे से कटपुतली की तरह व्यवस्था चला रहा है?

विशेषज्ञ कहते हैं, तानाशाही शासन कभी अपनी कमजोरी दिखाता नहीं है। अगर शी बीमार भी हैं, तब भी चीन उन्हें वीडियो में दिखाएगा, कार्यक्रम स्क्रिप्ट करेगा, ताकि सत्ता का भ्रम बना रहे।

BRICS सम्मेलन से गैरहाजिरी: ग्लोबल साउथ को झटका
सबसे चौंकाने वाला घटनाक्रम—शी जिनपिंग ने BRICS सम्मेलन में हिस्सा नहीं लिया।

एक ऐसा नेता जिसने पश्चिम-विरोधी ग्लोबल साउथ की छवि गढ़ी, अब उसके सबसे अहम मंच से ही गायब हो गया। कुछ कहते हैं भारत की बढ़ती भूमिका से चीन असहज है, कुछ कहते हैं ब्राज़ील से संबंध बिगड़ गए।

पर वास्तविकता ये है:
चीन के अंदर का तूफान अब छिपाया नहीं जा सकता।

तो अब चीन कौन चला रहा है?
यह एक अरब युआन का सवाल है।

कुछ कहते हैं कि प्रधानमंत्री ली क़ियांग अब रोजमर्रा की सरकार चला रहे हैं।

कुछ का दावा है कि PLA के जनरल और पुराने कम्युनिस्ट अब पर्दे के पीछे से नियंत्रण में हैं।

और कुछ चेतावनी देते हैं कि कोई भी पूर्ण नियंत्रण में नहीं है—चीन बिना कप्तान की नाव की तरह बह रहा है।

तानाशाही देशों में उत्तराधिकार अक्सर अराजक होता है। CCP के पास 10 मिलियन कैडर्स हैं। वहां सत्ता का स्थानांतरण रक्तविहीन नहीं होता।

भारत के लिए क्यों जरूरी है हर लहर को देखना?
भारत को चीन की इस उथल-पुथल पर नजर रखनी चाहिए। क्योंकि:

सीमा पर तनाव: 2020 की गलवान झड़प ने दिखाया कि चीन दबाव में कितना खतरनाक हो सकता है।

पानी की लड़ाई: चीन हिमालयी नदियों का प्रवाह नियंत्रित करता है—सूखा या बाढ़ हथियार बन सकते हैं।

साइबर हमला: चीन के हैकर्स भारत के बैंकिंग, तेल और सुरक्षा क्षेत्रों को टारगेट कर चुके हैं।

व्यापार निर्भरता: “आत्मनिर्भर भारत” के बावजूद भारत अब भी चीन के केमिकल्स, मशीनरी और पुर्जों पर निर्भर है।

अगर बीजिंग में वाकई सत्ता संघर्ष चल रहा है, तो बाहरी आक्रामकता की संभावना ज्यादा है—भारत, ताइवान या साउथ चाइना सी में।

युद्ध नहीं, लेकिन एक नया युद्ध चल रहा है
अब टैंक या बम की जरूरत नहीं।
चीन पहले ही लड़ाई शुरू कर चुका है:

साइबर वार
आर्थिक तोड़फोड़
व्यापार में चालाकी
सोशल मीडिया और ऐप्स के ज़रिए सूचना युद्ध
पाकिस्तान जैसे मोहरों का इस्तेमाल
यह अदृश्य युद्ध है—धीमा ज़हर, जो तब तक दिखता नहीं, जब तक बहुत देर न हो जाए।
लेकिन ड्रैगन अब भी ज़िंदा है
चाहे शी जिनपिंग जीवित हों, कोमा में हों या बस कठपुतली बन चुके हों—ड्रैगन अब भी आग उगल रहा है।
चीन लगातार बदल रहा है—
चेहरे बदलेंगे
पर लक्ष्य वही रहेगा
भारत, इंडो-पैसिफिक और वैश्विक वर्चस्व पर उसकी नजर बनी रहेगी।
भारत को अब सतर्क रहना होगा—
साइबर सुरक्षा मजबूत करनी होगी
जिनपिंग जीवित हों, कोमा में हों बढ़ाने होंगे
और एक नए तरह के युद्ध के लिए तैयार रहना होगा—जहाँ कुछ भी घोषित नहीं होगा, लेकिन सब कुछ हमला होगा।

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