आशा भोसले: दर्द से संजोया संगीत, संघर्षों से गढ़ी गई पहचान

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पूनम शर्मा
भारतीय संगीत जगत में आशा भोसले का नाम ऐसा है जिसे सुनते ही सुर, लय और मधुरता की दुनिया आँखों  के सामने उतर आती है। लेकिन इस चमकदार दुनिया के पीछे एक ऐसी दर्दनाक कहानी है, जो हाल ही में प्रकाशित हुई उनकी जीवनी ‘Asha Bhosle: A Life In Music’ में सामने आई है। इस किताब को राम्या शर्मा ने लिखा है और अमरिलिस (Manjul Publishing House की एक इम्प्रिंट) ने प्रकाशित किया है।

पति के साथ दर्दनाक रिश्ता
इस जीवनी का सबसे चौंकाने वाला हिस्सा है आशा भोसले का अपने पहले पति गणपत राव भोसले के साथ रिश्ता। गणपत राव उनसे पूरे 20 साल बड़े थे। आशा जब महज़ 16 साल की थीं, तब उन्होंने इस रिश्ते में कदम रखा। उन्होंने अपने परिवार की मर्जी के खिलाफ जाकर यह विवाह किया, लेकिन यह कदम उनके जीवन को लंबे समय तक दर्द में डुबोने वाला साबित हुआ।

किताब में आशा लिखती हैं, “परिवार बहुत रूढ़िवादी था और वे एक गायिका बहू को स्वीकार नहीं कर सकते थे। मेरे पति गुस्सैल थे। शायद उन्हें दूसरों को तकलीफ देना अच्छा लगता था। शायद वे एक सैडिस्ट थे।” उन्होंने बताया कि वह हमेशा पति का आदर करती रहीं, कभी विरोध नहीं किया, क्योंकि हिंदू धर्म में पत्नी का धर्म होता है पति की सेवा करना।

आत्महत्या की कोशिश – जीवन का सबसे अंधकारमय मोड़
आशा भोसले के जीवन की सबसे भावुक और तकलीफदेह घटना तब घटी जब वह चार महीने की गर्भवती थीं। उन्होंने बताया कि वह बीमार थीं और जिस अस्पताल में उन्हें भर्ती किया गया था, वहाँ  की दशा इतनी खराब थी कि उन्हें लगा कि वे नर्क में आ गई हैं।

इस मानसिक पीड़ा के दौर में उन्होंने आत्महत्या करने की कोशिश की। उन्होंने पूरी नींद की गोलियों की शीशी निगल ली। लेकिन उनके गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए जो प्यार था, वही उन्हें मौत के मुंह से खींच लाया। वह लिखती हैं, “मुझे लगा मैं मर जाऊं, लेकिन मेरे होने वाले बच्चे के लिए मेरा प्रेम इतना गहरा था कि मैं बच गई। मौत मुझे नहीं ले जा सकी। जीवन की ओर खींच लाई।”

संगीत बना जीवन का संबल
अपने दर्द को भुलाकर, आशा भोसले ने संगीत को अपने जीवन का आधार बना लिया। उन्होंने कभी हार नहीं मानी। धीरे-धीरे उन्होंने खुद को एक ऐसी गायिका के रूप में स्थापित किया, जिसकी आवाज़ ने हर पीढ़ी को छुआ। चाहे वह लता मंगेशकर की छाया में रहना हो, या बॉलिवुड में अपने लिए अलग मुकाम बनाना, आशा ने हर चुनौती को स्वीकार किया।

उनका करियर करीब सात दशकों तक फैला है। उन्होंने हर तरह के गाने गाए—क्लासिकल, कैबरे, रोमांटिक, डांस नंबर्स, और ग़ज़लें। पंचम दा यानी आर.डी. बर्मन के साथ उनका संगीत और निजी रिश्ता भी खूब चर्चा में रहा, जिसने उनके जीवन में नये रंग भरे।

दर्द को सुरों में ढाला
जीवनी के ज़रिये आशा भोसले ने एक साहसी कदम उठाया है। एक महिला के रूप में उन्होंने जिस मानसिक और शारीरिक पीड़ा को सहा, उस पर आजतक कोई बात नहीं करता था। लेकिन अब, उनके शब्दों ने उन तमाम स्त्रियों को आवाज़ दी है जो घर की चारदीवारी में चुपचाप जुल्म सहती हैं।

उनका यह बयान, “मैंने कभी सवाल नहीं किया, बस अपने धर्म का पालन किया,” भारतीय समाज में विवाह, स्त्री धर्म और आत्मसम्मान जैसे विषयों पर गहरी बहस छेड़ता है।

प्रेरणा की जीवित मूर्ति
आज आशा भोसले सिर्फ एक गायिका नहीं, बल्कि संघर्ष और सफलता की प्रतीक हैं। उनके जीवन की यह कहानी न सिर्फ उनके प्रशंसकों के लिए, बल्कि हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है जो कठिन हालातों से जूझ रहा है। यह जीवनी साबित करती है कि कला का रास्ता आसान नहीं होता, लेकिन अगर हौसले मजबूत हों, तो दर्द भी सुर बन जाता है।

आशा भोसले की आत्मकथा एक ऐसी दस्तावेज़ बनकर सामने आई है जो यह बताती है कि संगीत के पीछे कितने घाव छुपे हो सकते हैं। यह न केवल उनके करियर का दस्तावेज़ है, बल्कि एक महिला के अस्तित्व, आत्मबल और पुनर्जन्म की कहानी भी है। आशा भोसले की आवाज़ की तरह ही उनकी जीवनी भी हमारे दिलों में देर तक गूंजती रहेगी।

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