संविधान से ‘सेक्युलर’ और ‘सोशलिस्ट’ शब्द हटाए जाएँ? RSS ने उठाया सवाल

आपतकाल के दौरान जोड़े गए शब्दों पर छिड़ी नई बहस

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 27 जून: भारतीय संविधान की प्रस्तावना में शामिल ‘सेक्युलर’ (धर्मनिरपेक्ष) और ‘सोशलिस्ट’ (समाजवादी) शब्दों को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने इन शब्दों की संवैधानिकता पर सवाल उठाया है। आरएसएस का तर्क है कि ये शब्द संविधान निर्माता डॉ. बी. आर. अंबेडकर द्वारा तैयार किए गए मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे।

आपातकाल के दौरान जोड़े गए शब्द

आरएसएस के वरिष्ठ सदस्य दत्तात्रेय होसबले ने कहा है कि ‘सेक्युलर’ और ‘सोशलिस्ट’ शब्दों को आपातकाल के दौरान संविधान में जोड़ा गया था, जब नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे और संसद भी ठीक से काम नहीं कर रही थी। उन्होंने इस बात पर सवाल उठाया कि क्या इन शब्दों को प्रस्तावना में बने रहना चाहिए। आरएसएस का मानना है कि इन शब्दों को हटाकर संविधान के मूल स्वरूप को वापस लाया जाना चाहिए।

कांग्रेस पर हमलावर RSS

आरएसएस ने इस मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी पर भी हमला बोला है। संघ का आरोप है कि कांग्रेस ने आपातकाल के दौरान अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया और संविधान की मूल भावना को कुचल दिया। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी आरएसएस के इस रुख का समर्थन करते हुए कांग्रेस से आपातकाल के लिए माफी माँगने की माँग की है।

संविधान की भावना और शब्दों की बहस

यह बहस भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर आई है, जहाँ एक तरफ़ संविधान के मूल सिद्धांतों की बात हो रही है, तो दूसरी तरफ़ राजनीतिक दल एक-दूसरे पर हमलावर हैं। आरएसएस के इस बयान ने संविधान की प्रस्तावना में हुए संशोधनों पर फिर से बहस छेड़ दी है।

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