ऑपरेशन जेपलिन : जब मोसाद ने भारत के खिलाफ सबसे बड़ी कॉर्पोरेट साजिश को बेनकाब किया

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पूनम शर्मा                                                                                                                                                                                                                                  14 जुलाई 2022 को  जब कॉर्पोरेट इतिहास बदल गया

आज तक आपने कॉर्पोरेट वॉर, बिज़नेस राइवलरी और मार्केट की उठा-पटक के किस्से सुने होंगे। लेकिन 14 जुलाई 2022 को दुनिया ने पहली बार एक ऐसा ऑपरेशन देखा, जिसमें एक खुफिया एजेंसी ने एक भारतीय कारोबारी समूह के लिए ग्लोबल जासूसी मिशन छेड़ दिया। इस दिन की घटनाएँ  न केवल भारत बल्कि इज़राइल, अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया समेत 1711 देशों की कारोबारी रणनीतियों को हिला कर रख देती हैं।

इस दिन अडानी समूह ने इज़राइल के बेहद संवेदनशील हाइफा पोर्ट  के अधिकार खरीदे। ये पोर्ट भू-राजनीति का एक बेहद अहम केंद्र है – जो यूरोप, एशिया और अफ्रीका को जोड़ता है। इस पोर्ट को लेकर अडानी और चीनी कंपनियों के बीच भारी प्रतिस्पर्धा थी, लेकिन आख़िरकार अडानी को 1.1 बिलियन डॉलर में यह टेंडर मिला।

और यहीं से शुरू होता है ऑपरेशन “जेपलिन”

अडानी का हाइफा टेकओवर हो गया, लेकिन इसके ठीक दो दिन बाद – 11 जनवरी 2023 को – अचानक एक रिपोर्ट आती है CCRP संस्था की ओर से। रिपोर्ट में गंभीर आरोप लगते हैं – शेयर मैनिपुलेशन, फर्जी कंपनियों, विनोद अडानी द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग और मॉरिशस के जरिए फंड फ्लो।

रात 2:23 बजे कांग्रेस नेता राहुल गांधी इस रिपोर्ट को ट्वीट करते हैं। कांग्रेस और कई विपक्षी नेता खुलकर हमलावर हो जाते हैं। इसी रिपोर्ट को आधार बनाकर हिंडनबर्ग रिसर्च एक बड़ी रिपोर्ट निकालता है – “द बिगेस्ट कॉर्पोरेट फ्रॉड इन ग्लोबल हिस्ट्री।

नेतन्याहू की हँसी और एक इशारा

जनवरी 2023 में ही अडानी इज़राइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू से मिलते हैं। नेतन्याहू अडानी से कहते हैं — “आई नो ऑल द ट्रिक्स” और मुस्कुराते हैं। यहीं से इशारा होता है कि ये कोई मामूली मामला नहीं है।

एक इंजीनियर, जो असल में था मोसाद एजेंट

कुछ हफ्तों बाद एक इज़राइली इंजीनियर अमेरिका जाता है। नाम है लुईस, जो वास्तव में मोसाद एजेंट है। उसे मिलती है एक संदिग्ध संस्था की जानकारी – बीटाडाइन ईस्ट इंडिया

इसके बाद एक के बाद एक अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, चीन और भारत तक जाँच होती है। कंप्यूटर हैक किए जाते हैं, जिनमें से एक लोकेशन का IP ट्रेस होता है – शिकागो में स्थित सैम पित्रोदा का दफ्तर

कोडवर्ड “मुसाफ़िर”, “डायनेस्टी” और ऑपरेशन जेपलिन”

जब मोसाद एजेंट्स को कंप्यूटर में सुराग मिलते हैं, तो रिपोर्ट को कोडवर्ड मिलता है — मुसाफिर”। इसमें ऑपरेशन का नेतृत्व बीटाडाइन कर रहा था, जो कि इंडियन ओवरसीज कांग्रेस से जुड़ा संगठन था।

इसके साथ ही एक और महत्वपूर्ण बैठक सामने आती है – 31 मई 2023 को कैलिफोर्निया में हिंडनबर्ग रिसर्च के प्रतिनिधियों की मुलाकात होती है कुछ भारतीय मूल के व्यक्तियों से, जिनमें सैम पित्रोदा और उनकी संस्था का नाम फिर से सामने आता है।

अमेरिका और चीन, दोनों शामिल?

इस पूरे ऑपरेशन को मोसाद ने नाम दिया — “ऑपरेशन जेपलिन”

 इसका मकसद था – अडानी को ग्लोबली बदनाम करना और भारत को भू-राजनीतिक केंद्र बनने से रोकना। इसमें फंडिंग की गई 1.6 बिलियन डॉलर की मार्केट कैपिटल से।

इस रिपोर्ट के मुताबिक:

  • यूएस स्टेट डिपार्टमेंट के कुछ अधिकारियों की भूमिका रही
  • एनजीओज के नाम पर फंडिंग की गई – जिनमें जॉर्ज सोरोस और उनके फूड फाउंडेशन, एमडीआर फाउंडेशन जैसे नाम शामिल हैं
  • भारत की एक विपक्षी पार्टी की महिला नेता पर विदेशी फंडिंग लेने का आरोप है
  • कुछ मीडिया हाउस को रिपोर्ट पहले से दे दी गई थी ताकि टाइमिंग सही बैठाई जा सके

353 पन्नों की गुप्त रिपोर्ट

इस पूरे ऑपरेशन पर बनी 353 पन्नों की रिपोर्ट में सबूत के तौर पर:

  • इमेल ट्रैफिक, हैकिंग डेटा, GPS लोकेशन
  • प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले फिक्स्ड सोशल मीडिया पोस्ट
  • बिटकॉइन ट्रांजैक्शन ट्रेस
  • कांग्रेस के नेताओं के अमेरिका दौरों की समयसीमा

“ऑपरेशन जेपलिन” कोई रक्षात्मक ऑपरेशन नहीं था — यह था कॉर्पोरेट आक्रामकता का नमूना

मोसाद और भारत सरकार ने यह ऑपरेशन सिर्फ अडानी की रक्षा के लिए नहीं, बल्कि भारत की भू-राजनीतिक स्थिति को स्थिर करने के लिए चलाया। इसका उद्देश्य था भारत को ग्लोबल टेबल पर ‘चीन का विकल्प’ बनाना। इस पूरे खेल में मीडिया, राजनीति, खुफिया एजेंसियों और कॉर्पोरेट लॉबी का घालमेल सामने आता है।

आख़िर में…

  कॉर्पोरेट दुनिया में भी राष्ट्रहित के लिए मोसाद उतर आया।

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