समग्र समाचार सेवा नागपुर, 6 जून : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने जनजातीय क्षेत्रों में हो रहे धर्मांतरण को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने इसे एक “सुनियोजित साजिश” करार देते हुए कहा कि यह केवल धर्म परिवर्तन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक विनाश और राष्ट्रीय एकता के लिए बड़ा खतरा है।
नागपुर में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान डॉ. भागवत ने कहा कि कुछ संगठित ताकतें जनजातीय समाज की अस्मिता को मिटाने के उद्देश्य से काम कर रही हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य और सेवा के नाम पर जनजातीय लोगों को बहकाया जा रहा है और उन्हें उनके मूल धर्म से दूर किया जा रहा है। उन्होंने इस प्रवृत्ति को एक “नरम आक्रमण” बताया जो दिखता तो मानवीय है, लेकिन उसके पीछे गहरे राजनीतिक और धार्मिक एजेंडे छिपे हुए हैं।
भागवत ने कहा, “धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं कि किसी की भोलेपन का फायदा उठाकर उसका धर्म बदला जाए।” उन्होंने जोर देकर कहा कि आदिवासी समाज मूलतः हिंदू संस्कृति का ही हिस्सा है और उसे अलग दिखाना या बनाना भारत की आत्मा के खिलाफ है।
उन्होंने यह भी बताया कि संघ और उससे जुड़े अनेक संगठन वर्षों से जनजातीय क्षेत्रों में शिक्षा, संस्कार और सेवा कार्यों के माध्यम से सामाजिक चेतना फैलाने का काम कर रहे हैं। “हमें जनजातीय समाज को उनके सांस्कृतिक मूल से जोड़ना होगा, ताकि वे अपनी अस्मिता को पहचानें और उस पर गर्व करें,” उन्होंने कहा।
सरसंघचालक ने सरकार से भी अपील की कि वह इस विषय को गंभीरता से ले और ऐसे तत्वों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जो जनजातीय समाज को भ्रमित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर अभी सचेत नहीं हुए, तो आने वाले वर्षों में यह संकट और गहरा हो जाएगा।
डॉ. भागवत का यह बयान संघ के भावी एजेंडे की दिशा भी स्पष्ट करता है — अब धर्मांतरण विरोध का आंदोलन और अधिक संगठित व सक्रिय रूप ले सकता है।